।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.२०७२, शुक्रवार
प्रवचन‒६


संसारमें हम देखते है कि प्रत्येक वस्तुका कोई उत्पादक होता है, कोई मालिक होता है । यह जो पृथ्वी, समुद्र, सूर्य, चन्द्रमा, वायु, आकाश आदि दीखते है और विभिन्न प्रकारके प्राणी, जीव-जन्तु, दीखते है, इस (सृष्टि) का भी एक मालिक है । वह सबका मालिक है, पर उसका कोई मालिक नहीं है । वह सबका उत्पादक है, पर उसका कोई उत्पादक नहीं है । उसीको परमात्मा कहते है । आश्चर्यकी बात यह है कि उस परमात्माकी रची हुई वस्तुओंमें तो मनुष्य आकर्षित होते है, उन्हें अपना मानते है । उन्हें महत्त्व देते है, उनसे अपनेमें बड़प्पनका अनुभव करते है, पर उनका जो उत्पादक है, मालिक है, उसकी तरफ ध्यान ही नहीं देते !

भगवान् अर्जुनसे कहते है‒

इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद् द्रष्टुमिच्छसि ॥
                                        (गीता ११ । ७)

‘हे गुडाकेश ! अब इस मेरे शरीरमें तू एक जगह स्थित चराचरसहित सम्पूर्ण जगत्को देख तथा और भी जो कुछ देखना चाहता है, वह (भी) देख ।’

तात्पर्य यह है कि चराचरसहित पूरा-का-पूरा जगत् तू मेरे शरीरमें केवल एक ही जगह देख, और अभी देख‒‘पश्याद्य’ और कहाँ देख ‘मम देहे’ अर्थात् मेरे शरीरमें देख । अर्जुन भी कहते है कि ‘मैं समूर्ण देवोंको आपके शरीरमें देखता हूँ’‒‘पश्यामि देवास्तव देव देहे’ (११ । १५) । और संजय भी कहते है कि अर्जुनने ‘सम्पूर्ण जगत्को भगवान्के शरीरमें एक जगह स्थित देखा‒‘अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा ॥’ (११ । १३) । ‘गुडाका’ नाम निद्राका है और उसके मालिक (निद्राको जीतनेवाले) को गुडाकेश कहते है । अर्जुनको ‘गुडाकेश’ कहनेका तात्पर्य है कि आलस्यरहित होकर बड़ी सावधानीसे देख । और कुछ देखना चाहता है तो वह भी देख‒‘यच्चान्यद् द्रष्टुमिच्छसि’ । भगवान् उसके मनकी बात जानते हैं कि वह और क्या देखना चाहता है । अर्जुन देखना (जानना) चाहते थे कि हमें युद्ध करना चाहिये या नहीं करना चाहिये और जीत हमारी होगी या उनकी होगी‒‘न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः ।’ (गीता २ । ६)

दसवें अध्यायके अन्तमें भगवान्ने कहा था कि अर्जुन ! बहुत जाननेसे क्या होगा; मैं अपने एक अंशसे सम्पूर्ण जगत्को धारण करके स्थित हूँ । मैं तेरे सामने बैठा हूँ; अतः तुझे मेरी विभूतियोंको बहुत जाननेकी क्या जरूरत है, तू मेरी तरफ देख । तभी अर्जुनको वह रूप देखनेकी इच्छा हुई‒‘द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरम्’ (११ । ३) तो यह संसार भगवान्के एक अंशमें स्थित है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘साधकोंके प्रति’ पुस्तकसे