।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
वैशाख कृष्ण सप्तमी, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
मुक्तिका सुगम उपाय



प्रभु-कृपासे जो यह मनुष्यजन्म मिला है, इसको हमें सफल करना है । अगर पशुओंकी तरह खाने-पीने, सोने-जागने आदिमें ही समय बरबाद कर दिया तो मनुष्यजन्म सफल नहीं हुआ । मनुष्यजन्म तभी सफल होगा, जब भगवान्‌का भजन किया जाय । भजनके बिना मनुष्य मुर्देकी तरह है‒‘रामदास कहे जीव जगतमें मुर्दा-सा फिरता !’ केवल प्राणोंके चलनेसे ही जीना नहीं होता । लुहारकी धौंकनी भी फू-फा, फू-फा करती है, पर वह जीना नहीं कहलाता । अतः केवल श्वास लेने-छोड़नेसे हमारा जीना सिद्ध नहीं होगा । जीना तभी सिद्ध होगा, जब हम मनुष्यके योग्य काम करें । चाहे मनुष्य कहो, चाहे भगवत्प्राप्तिका अधिकारी कहो, एक ही बात है । भगवत्प्राप्ति मनुष्यजन्ममें ही हो सकती है और बड़ी सुगमतासे हो सकती है ।

हम सब साक्षात् भगवान्‌के अंश हैं । भगवान् स्वयं कहते हैं‒‘ममैवाशो जीवलोके’ (गीता १५ । ७), ‘सब मम प्रिय सब मम उपजाए’ (मानस, उत्तर ८६ । २) । हम सब भगवान्‌के ही उत्पन्न किये हुए उनके प्यारे अंश हैं । ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं है, जो भगवान्‌का प्यारा न हो । हमें यहाँ भगवान्‌ने ही जन्म दिया है । कोई भी व्यक्ति यह नहीं बता सकता कि मैंने अपनी मरजीसे यहाँ जन्म लिया है । पालन-पोषण भी भगवान् ही करते हैं । रक्षा भी भगवान् ही करते हैं । किसीमें यह कहनेकी हिम्मत नहीं है कि मैं इतने वर्ष ही जीऊँगा, इतने वर्ष ही यहाँ रहूँगा । तात्पर्य है कि हम भगवान्‌की मरजीसे यहाँ आये हैं, भगवान्‌की मरजीसे जी रहे हैं और भगवान्‌की मरजीसे जायँगे । इसलिये हम भगवान्‌के ही हैं । एक सन्तसे किसीने पूछा कि किधर जाओगे ? तो वे बोले कि फुटबालको क्या पता कि वह किधर जायगा ? खिलाड़ी जिधर ठोकर लगायेगा, वहीं जायगा । इसी तरह भगवान्‌ जहाँ भेजेंगे, वहीं जायँगे, जैसा रखेंगे, वैसे रहेंगे‒ऐसा विचार करके निश्चित हो जायँ । अपनी कोई इच्छा न रखें; न जीनेकी, न मरनेकी । भगवान्‌ चाहे नरकोंमें भेजें, चाहे स्वर्गमें भेजें, चाहे वैकुण्ठमें भेजें, चाहे मनुष्यलोकमें भेजें, जैसी उनकी मरजी, हम उनके भरोसे निश्चिन्त हो जायँ । अपनी अलग कोई इच्छा न रखकर भगवान्‌की इच्छामें अपनी इच्छा मिला दें । केवल इतनेसे ही हमारा जीवन सफल हो जायगा, लम्बी-चौड़ी बात ही नहीं है । बैठे हैं तो भगवान्‌की मरजीसे, जाते हैं तो भगवान्‌की मरजीसे । हमें कोई दुःख नहीं, कोई सन्ताप नहीं । अगर अभी मर जायँ तो क्या हर्ज है ?

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्यकी खोज’ पुस्तकसे