।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक अमावस्या, वि.सं.२०७३, रविवार
दीपावली
स्त्री-सम्बन्धी बातें


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒ अगर पति मांस-मदिरा आदिका सेवन करता हो तो पत्नीको क्या करना चाहिये ?

उत्तर‒पतिको समझाना चाहिये, निषिद्ध आचरणसे छुड़ाना चाहिये । अगर पति न माने तो लाचारी है, पर पतिको समझाना स्त्रीका धर्म है, अधिकार है । पत्नीको तो अपना खान-पान शुद्ध ही रखना चाहिये ।

प्रश्न‒पति मार-पीट करे, दुःख दे तो पत्नीको क्या करना चाहिये ?

उत्तर‒पत्नीको तो यही समझना चाहिये कि मेरे पूर्वजन्मका कोई बदला है, ऋण है, जो इस रूपमें चुकाया जा रहा है; अतः मेरे पाप ही कट रहे हैं और मैं शुद्ध हो रही हूँ । पीहरवालोंको पता लगनेपर वे उसको अपने घर ले जा सकते हैं; क्योंकि उन्होंने मार-पीटके लिये अपनी कन्या थोड़े ही दी थी !

प्रश्न‒अगर पीहरवाले भी उसको अपने घर न ले जायँ तो वह क्या करे ?

उत्तर‒फिर तो उसको अपने पुराने कर्मोंका फल भोग लेना चाहिये, इसके सिवाय बेचारी क्या कर सकती है ! उसको पतिकी मार-पीट धैर्यपूर्वक सह लेनी चाहिये । सहनेसे पाप कट जायँगे और आगे सम्भव है कि पति स्नेह भी करने लग जाय । यदि वह पतिकी मार-पीट न सह सके तो पतिसे कहकर उसको अलग हो जाना चाहिये और अलग रहकर अपनी जीविका-सम्बन्धी काम करते हुए एवं भगवान्‌का भजन-स्मरण करते हुए निधड़क रहना चाहिये ।

पुरुषको कभी भी स्त्रीपर हाथ नहीं चलाना चाहिये । शिखण्डी भीष्मजीको मारनेके लिये ही पैदा हुआ था; परन्तु वह जब युद्धमें भीष्मजीके सामने आता है, तब भीष्मजी बाण चलाना बन्द कर देते हैं । कारण कि शिखण्डी पूर्वजन्ममें स्त्री था और इस जन्ममें भी स्त्रीरूपसे ही जन्मा था, पीछे उसको पुरुषत्व प्राप्त हुआ था । अतः भीष्मजी उसको स्त्री ही मानते हैं और उसपर बाण नहीं चलाते ।

विपत्तिके दिन किसी पापके कारण ही आते हैं । उसमें उत्साहपूर्वक भगवान्‌का भजन-स्मरण करनेसे दुगुना लाभ होता है । एक तो पापोंका नाश होता है और दूसरा भगवान्‌को पुकारनेसे भगवद्विश्वास बढ़ता है । अतः विपत्ति आनेपर स्त्रियोंको हिम्मत नहीं हारनी चाहिये ।

विपत्ति आनेपर आत्महत्या करनेका विचार भी मनमें नहीं लाना चाहिये; क्योंकि आत्महत्या करनेका बड़ा भारी पाप लगता है । किसी मनुष्यकी हत्याका जो पाप लगता है, वही पाप आत्महत्याका लगता है । मनुष्य सोचता है कि आत्महत्या करनेसे मेरा दुःख मिट जायगा, मैं सुखी हो जाऊँगा । यह बिलकुल मूर्खताकी बात है; क्योंकि पहलेके पाप तो कटे नहीं, नया पाप और कर लिया !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे