।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
बिन्दुमें सिन्धु


     (गत ब्लॉगसे आगेका)

एक मार्मिक बात है कि सांसारिक पदार्थोंकी चाहना करनेपर तो वे आते नहीं, पर चाहना छोड़ दें तो वे गरज करेंगे । सन्त-महात्मा कुछ नहीं चाहते तो सब उनको भोजन, वस्त्र आदि देना चाहते हैं । उनकी सेवामें रुपया लग जाय तो मानते हैं कि हमारा रुपया सफल हो गया ! जिसके भीतर चाहना है, उसके पास लाखों-करोड़ों-अरबों रुपये हों तो भी वह दरिद्र है‒‘को वा दरिद्रो हि विशालतृष्णः’ (प्रश्नोत्तरी ५)

जो सर्वोपरि परमात्मा हैं, वे हमारे हैं, फिर अन्यकी जरूरत ही क्या है ? दुःख इस बातका है कि भगवान्‌को अपना न मानकर संसारको अपना मानते हैं ! जो संसारको अपना मानता है, वह दुःख पायेगा ही; क्योंकि संसार रहता नहीं । भगवान्‌के भक्तके पास कोई अभाव आता ही नहीं । चाहना होनेपर वस्तु बड़ी तंगीसे, कठिनतासे मिलती है । चाहना न हो तो वस्तु खुली मिलती है । मनमें लेनेकी इच्छा होती है तो ताला लग जाता है । चोरोंके लिये ताला लगता है, सन्तोंके लिये नहीं । सन्तोंके लिये सभी चीजें खुली रहती हैं । योगदर्शनमें आया है‒

अस्तेयप्रतिष्ठायां सर्वरत्नोपस्थानम् ।
                                    (योगदर्शन, साधन ३७)

अस्तेय (चोरीके अभाव)-की दृढ़ स्थिति होनेपर योगीके सामने सब प्रकारके रत्न प्रकट हो जाते हैं ।’

जो पासमें कुछ रखता है, उसको वस्तुएँ तंगीसे मिलती हैं । जो साधु पासमें कुछ नहीं रखता, उसके लिये खजाना खुल जाता है ! वस्तुएँ उसके पास अपने-आप आती हैं ।

जब मनुष्य भगवान्‌को अपना मान लेता है, तब उसकी दरिद्रता मिट जाती है । आप भगवान्‌को अपना मान लोगे तो दरिद्रता आपके पड़ोसमें भी नहीं रहेगी ! परन्तु संसारको अपना मानोगे तो दरिद्रता कभी मिटेगी नहीं । आप धनी आदमीको बड़ा सुखी समझते हैं, पर वास्तवमें वह बड़ा दुःखी है ! उसपर दया आनी चाहिये ! धनी आदमी साधुसे, ब्राह्मणसे भी डरते हैं कि ये कुछ माँग न लें ! वे राजकीय आदमियोंसे भी डरते हैं, चोर-डाकुओंसे भी डरते हैं, यहाँतक कि बेटे-पोतोंसे भी डरते हैं कि ये धन नष्ट कर देंगे ! अब उनको सुख, शान्ति कैसे मिलेगी ?


अगर आपका भगवान्‌में प्रेम होगा तो गृहस्थमें भी मौजसे रहोगे, और संसारमें प्रेम होगा तो रोना पड़ेगा ही, रोये बिना रह सकते नहीं !

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे