।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल द्वितीया, वि.सं.२०७३, रविवार
बिन्दुमें सिन्धु


(गत ब्लॉगसे आगेका)

कलियुग उनके लिये खराब है, जो भगवान्‌का भजन-स्मरण नहीं करते । भगवान्‌का भजन-स्मरण करनेवालोंके लिये तो कलियुग बहुत बढ़िया है ! रामायणमें आया है‒

कलिजुग सम जुग आन नहि जौ नर कर बिस्वास ।
गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनाह प्रयास ॥
                                        (मानस, उत्तर १०३ क)

अगर भाई-बहन अभी तत्परतासे लग जायँ तो भगवान्‌की प्राप्ति बहुत जल्दी हो जाय ! भगवान्‌के भजनमें लगनेसे, सत्संग करनेसे हमारी वृत्तियाँ ठीक हो गयीं, हमें इतना लाभ हो गया‒ऐसा अनुभव बहुत कम होता है‒अनुभव भगवद्‌भजन का भाग्यवान् को होय’ । परन्तु आज कलियुगमें ऐसी बात है कि अगर सत्संग सुनानेवाला और सुननेवाला‒दोनों ठीक हों तो दोनोंको बड़ा भारी लाभ होता है । सत्संग करनेके लाभका प्रत्यक्ष अनुभव होता है । कलियुगके समयमें भजन-स्मरणका असर ज्यादा होता है ।

लोग जैसे संसारमें झूठ-कपटसे धन कमाते हैं, ऐसे ही वे समझते हैं कि झूठ-कपटसे कल्याण भी हो जायगा, पर झूठ-कपटसे कल्याण नहीं होता । वे समझते हैं कि किसी तरह झूठ-कपटसे स्वामीजीके पैरोंमें हाथ लगानेसे कल्याण हो जायगा, पर ऐसा करनेसे कल्याण होना दूर रहा, उल्टे बाधा लगेगी, अपराध होगा ! जबर्दस्ती पैर छूनेसे, डाका डालनेसे, चोरी करनेसे कल्याण नहीं होता, प्रत्युत दण्ड होता है । आध्यात्मिक उन्नति सन्तोंकी प्रसन्नतासे होती है, जबर्दस्ती नहीं होती । जब भैंस भी राजी हुए बिना दूध नहीं देती, फिर सन्त-महात्मा राजी हुए बिना कल्याण कैसे कर देंगे ? पारमार्थिक मार्गमें झूठ-कपटसे काम नहीं होता । यहाँ सत्संग-स्थलमें डण्डे इसलिये लगाये हुए हैं कि आप उसके पार नहीं जायँ । आड़ (डण्डे) पशुओंके लिये लगायी जाती है, मनुष्योंके लिये नहीं । मनुष्योंके लिये इसलिये लगायी जाती है कि मनुष्य मानते नहीं, जबर्दस्ती करते हैं । उनका सब कामोंमें अन्याय करनेका स्वभाव पड़ गया है । इसलिये आप जो भी आचरण करें, ठीक तरहसे, विधि-विधानसे, शास्त्रकी आज्ञाके अनुसार करें । मनमाना आचरण करनेसे कल्याण नहीं होगा । परन्तु आजकल उल्टी रीति चल रही है और पशुओंकी तरह रहनेकी शिक्षा दी जा रही है । श्रेष्ठ पुरुषोंको आदर्श न मानकर पशुओंको आदर्श माना जा रहा है ! उल्टी बातोंको ठीक माननेकी आदत पड़ गयी है । रामायणमें कलियुगका वर्णन करते समय आरम्भमें ही यह बात आयी है‒

बरन  धर्म  नहिं  आश्रम  चारी ।
श्रुति बिरोध रत सब नर नारी ॥
                               (मानस, उत्तर ९८ । १)

पहले क्षत्रिय राज्य करते थे, आज जिसको ज्यादा वोट मिले, वह राज्य करता है, चाहे वह कैसा ही स्वभाववाला क्यों न हो ! अयोग्य आदमी ऊँचे पदपर बैठ जाते हैं । शास्त्रमें लिखा है कि जहाँ अपूज्योंका पूजन होता है और पूज्यजनोंका तिरस्कार होता है, वहाँ तीन बातें होंगी‒अकाल पड़ेगा, चोर-डाकुओंका भय होगा और मृत्यु होगी‒

अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूज्यपूजाव्यतिक्रमः ।
त्रीणि तत्र प्रजायते   दुर्भिक्ष मरणं भयत् ॥
                                (स्कन्दपुराण, मा के ३ । ४८)

आप मर्यादा छोड़ोगे तो प्रकृतिकी मर्यादा भी बिगड़ेगी, जिससे अकाल, अनावृष्टि, अतिवृष्टि, तूफान, बाढ़, भूकम्प आदि प्रकृतिक प्रकोप होंगे ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे