।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
बिन्दुमें सिन्धु


(गत ब्लॉगसे आगेका)

आजकल गाय और हिन्दू‒इन दोनोंके ऊपर बड़ी भारी आफत आयी हुई है ! परिवार-नियोजन हिन्दुओंपर बड़ी भारी आफत है ! इससे बड़ा भारी नुकसान है ! आप मेरी बातपर ध्यान दें, मेरा तात्पर्य हिन्दुओंकी वृद्धि करना नहीं है, प्रत्युत कल्याण करना है । कारण कि मुक्तिका मार्ग जितना हिन्दुओंके शास्त्रोंमें बताया गया है, उतना किसी देशकी भाषामें नहीं बताया गया है । मैंने इस विषयमें खोज की है । जनताको बढ़ाना या घटाना मेरा काम नहीं है । मेरा काम कल्याण करना है । हिन्दूधर्ममें कल्याणकी बहुत सुगम-सुगम बातें बतायी गयी हैं । वैसी बातें मैंने किसी धर्ममें सुनी नहीं हैं । जीवका कल्याण कैसे हो‒इसपर हिन्दुओंके ऋषियों-मुनियोंने जितना ध्यान दिया है, उतना किसीने नहीं दिया है । मनुष्यका उद्धार कैसे हो‒इस विषयमें मेरेको बहुत सुगम बातें मिली हैं, और फिर भी मैं इस विषयमें खोज कर रहा हूँ ।

कल्याणके लिये खास चीज है‒लगन । जैसे अन्नकी भूख लगे, जलकी प्यास लगे, ऐसे भगवान्‌की लगन लगे तो भगवान्‌का मिलना सुगम हो जायगा ।

श्रोता‒हिन्दू समाजमें एकता कैसे रहे ?

स्वामीजी‒यह बात बड़ी मुश्किल है ! यदि हिन्दू समाज एकता रखता तो उसमें आँच नहीं आ सकती थी । हिन्दुओंमें जो शूरवीरता, दैवी सम्पत्ति मिलती है, वह औरोंमें नहीं मिलती, पर वह एकता नहीं रखता, यह उसमें बड़ी भारी कमी है !

आपलोग बालकोंको ईसाईयोंके स्कूलोंमें भेजते हो, जिससे वे भीतरसे ईसाई बन जाते हैं । मैं कहता हूँ कि आपलोग अपने स्कूल बनाओ और उसमें बालकोंको अपने धर्मकी, गीता-रामायणकी शिक्षा दो । उसमें अच्छे शिक्षकोंको रखो । आपके बालक ठीक होंगे, तभी देशकी उन्नति होगी । हमारे हिन्दू भाई पैसा कमानेमें बड़े तेज हैं । व्यापार करनेमें, पैसा कमानेमें मारवाड़ी जातिके सिवाय दूसरा नहीं है, पर वे इस तरफ ख्याल नहीं करते कि स्त्रियाँ किधर जा रही हैं, बालकोंकी क्या दशा हो रही है । लड़के-लड़कियों उद्दण्ड हो रहे हैं । वे माँ-बापका कहना नहीं मानते । माँ-बापका कहना नहीं मानना बड़ा भारी पाप है, अन्याय है !

श्रोता‒राग-द्वेष कैसे नष्ट हों ?

स्वामीजी‒राग-द्वेषको मिटानेका उपाय भगवान्‌ने बताया है‒‘तयोर्न वशमागच्छेत्’ (गीता ३ । ३४) । राग-द्वेष हो जायँ तो घबराओ मत, पर इनके वशीभूत मत होओ अर्थात् इनके वशमें होकर क्रिया मत करो । क्रिया करनेसे ये पुष्ट होते हैं । जैसे किसी पहलवानको खुराक न दी जाय तो वह अपने-आप कमजोर हो जाता है, ऐसे ही राग-द्वेषके वशीभूत होकर क्रिया न करनेसे राग-द्वेषको खुराक नहीं मिलेगी और वे कमजोर पड़ जायँगे । मेरेमें राग-द्वेष नहीं हैं‒ऐसे अभिमानके भी वशीभूत नहीं होना है ।

जब राग-द्वेष हो जायँ, क्रोध आ जाय, तो आप चुप हो जाओ । मुँहमें पानी भर लो । पानीको न थूको, न निगलो । बादमें उसको थूक दो । यह स्थूल उपाय है । उनके वशमें मत होओ, यह सूक्ष्म उपाय है ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे