।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.-२०७४, सोमवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताशरणागत भक्तका आचरण, व्यवहार कैसा होना चाहिये ? उसमें क्या सावधानी बरतनी चाहिये ?

स्वामीजीशरणागतके लिये मुख्य बात यही है कि मैं भगवान्का हूँ । यह होनेसे भगवान्के नाते सब बर्ताव अच्छा होगा । स्वतः-स्वाभाविक त्यागका, प्रेमका, आदरका, स्नेहका बर्ताव होगा । भगवान् सबके परम सुहद् हैं‘सुहृद सर्वभूतानाम्’ (गीता ५ । २९); अतः वह भी सबका परम सुहद् होगा । वह सबको अच्छा लगेगा, प्यारा लगेगा, और सबकी सेवा करेगा । तनसे, मनसे, वचनसे, धनसे, विद्यासे, बुद्धिसे, योग्यतासे, शक्तिसे सबकी सेवा करेगा ।

श्रोता आपने कहा था कि भजनसे भी ज्यादा शुद्धि भगवान्को अपना माननेसे होती है इस बातको थोड़ा विस्तारसे बतानेकी कृपा करें

स्वामीजीभगवान्का सेवन, भगवान्का प्रेम, भगवान्के शरण होनाइन सबका नाम ‘भजन’ है । परन्तु इनसे भी बढ़कर भगवान्को अपना मानना है । जैसे बच्चा अपनेको माँका मानता है, ऐसे अपनेको भगवान्का मान ले ।

भजन, स्मरण आदि तो साधन हैं, पर ‘मैं भगवान्का हूँ’यह साधन नहीं है । साधनको तो हरदम याद रखना पड़ता है, पर ‘मैं भगवान्का हूँ’यह याद रहता है, रखना नहीं पड़ता । ‘माँ मेरी है’यह याद रखना नहीं पड़ता और भूलता है ही नहीं ! भगवान्का होनेका तात्पर्य है कि सदा भगवान्का हो गया । अब याद करना नहीं पड़ेगा । आप अपने माँ-बापके सम्बन्धको याद करते हो क्या ? याद नहीं करते, तो भी स्वतः अटूट सम्बन्ध रहता है । मैं माँका हूँ, माँ मेरी हैइसके लिये कुछ करना नहीं पड़ता । ‘मैं भगवान्का हूँ’इसमें भूल होती ही नहीं । भूल तब मानी जाय, जब यह मान ले कि ‘मैं भगवान्का नहीं हूँ’ । संसारके सभी सम्बन्ध कच्चे हैं, पर भगवान्का सम्बन्ध पक्का है । हम अपनेको भगवान्का नहीं मानते थेयह भूल थी । अगर यह स्वीकार कर लो कि ‘हम भगवान्के हैं’ तो निहाल हो गये ! निहाल हो गये ! निहाल हो गये !! मैं प्रायः हरेक व्याख्यानमें इस बातपर जोर देता हूँ । मात्र जीव भगवान्के हैंयही सार बात है, यही असली बात है । यही स्मृति प्राप्त होना है‘नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा’ (गीता १८ । ७३) भगवान् मेरे हैं, मैं भगवान्का हूँयह असली भजन है ।

श्रोतामैं भगवान्को गुरु मानता हूँ साधु-सन्त मिलते हैं तो पूछते हैं कि तुम्हारा सम्प्रदाय और गुरु कौन है ? मैं कहता हूँ कि मेरे तो भगवान् गुरु हैं वे कहते हैं कि सम्प्रदाय और गुरुके बिना तुम आगे नहीं बढ़ सकते


स्वामीजीउनसे कहो कि आगे आप नहीं बढ़ सकते, हम बढ़ सकते हैं ! बढ़ेंगे क्या, हम तो आगे बढ़ गये !! भगवान् मेरे हैंयह माननेमें संकोच मत करो । बिल्कुल निश्चिन्त हो जाओ । सम्प्रदाय तो पैदा किये हुए हैं, पर भगवान् सदासे हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे