।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.-२०७४, मंगलवार
कल सायं चन्द्रग्रहण है
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोतामुझे भोग प्यारे लगते हैं, भगवान् प्यारे नहीं लगते ! क्या करूँ ?

स्वामीजीयह प्रार्थना करो कि ‘हे प्रभो, आप हमें प्यारे लगो’ । मेरी एक ही माँग है, और कोई माँग नहीं ।

अरथ न धरम न काम रुचि गति न चहउँ निरबान ।
जनम जनम  रति  राम  पद   यह बरदानु न आन ॥
                                        (मानस, अयोध्या २०४)

(भरतजी बोले‒) मुझे न धनकी, न धर्मकी तथा न कामकी ही रुचि (इच्छा) है, और न मैं मोक्ष ही चाहता हूँ । मैं तो बस यही वरदान माँगता हूँ कि जन्म-जन्ममें मेरा श्रीरामजीके चरणोंमें प्रेम हो । इसके सिवाय और कुछ नहीं चाहता ।’

आप रात और दिन कहते रहो कि ‘हे नाथ, आप मुझे प्यारे लगो’ । आपकी इच्छा जितनी तेज होगी, उतना जल्दी काम होगा । हम भूलसे संसारी हैं । वास्तवमें तो हम भगवान्के ही अंश हैं ।

श्रोताभगवान्की कृपा कैसे प्राप्त हो ?

स्वामीजीभगवान्की कृपा सबपर है । यह मनुष्यशरीर उस कृपाकी पहचान है !

कबहुँक करि करुना नर देही ।
देत  ईस   बिनु  हेतु  सनेही ॥
                           (मानस, उत्तर ४४ । ३)

चौरासी लाख योनियाँ पूरी नहीं हुईं, पर भगवान्ने कृपा करके बीचमें ही मनुष्यशरीर दे दिया कि यह अपना कल्याण कर ले । मनुष्यशरीरकी बारी आनेसे पहले ही भगवान्ने मनुष्यशरीर दे दिया, अपने उद्धारका मौका दे दिया ! फिर मनमें अपने उद्धारकी जागृति पैदा की । फिर यहाँ उत्तराखण्डमें गंगाजीके किनारे लाये और यहाँ सत्संगमें बैठाया । यह कोरी कृपा-ही-कृपा है ! हमारा कल्याण तो होगा ही !! सेठजीने साफ कहा था कि तीन आदमियोंको यहाँ सत्संगमें लाकर बैठा दो, तुम्हारी मुक्ति हो जायगी ! यह कमीशन है ! कमीशनसे ही मुक्ति हो जाय !!


हृदयसे यह मान लो कि भगवान्के सिवाय अपना कोई नहीं है, कोई नहीं है, कोई नहीं है ! अपने केवल भगवान् हैं, केवल भगवान् हैं, केवल भगवान् हैं ! यह बात दृढ़तासे हृदयमें धारण कर लो । जब मेरा कोई नहीं है, तो फिर मेरेको कुछ भी नहीं चाहिये । शरीर अपना हो तो रोटी चाहिये, पानी चाहिये, कपड़ा चाहिये, मकान चाहिये । पर शरीर भी अपना नहीं है । यह निरन्तर छूट रहा है, और छूट जायगा । जितने वर्ष बीत गये, उतना तो छूट ही गया ! मीराबाईका खास वेदवाणीकी तरह यह वाक्य है‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे