।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.-२०७५, गुरुवार
                      श्रीमहावीर-जयन्ती
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 



(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताममता छूटनेका उपाय क्या है ?

स्वामीजीएक ज्ञानमार्ग है और एक विश्वासमार्ग है । विश्वासमार्गकी दृष्टिसे देखें तो एक भगवान्‌के सिवाय दूसरा कोई मेरा है ही नहीं‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ । विश्वास, प्रेम, अपनापन सब एक भगवान्‌में ही हो । फिर ममता छूट जायगी । भगवान् ही साथमें थे, भगवान् ही साथमें हैं और भगवान् ही साथमें रहेंगे, और कोई साथमें रहनेवाला है ही नहीं, फिर किसमें ममता करें ? अतः ममता एक जगह (भगवान्‌में) ही होनी चाहिये, दो जगह नहीं । यह विश्वासमार्ग सबसे श्रेष्ठ, सबसे ऊँचा है ।

माता, पिता, स्त्री, भाई आदि जो अभी संसारमें नहीं हैं, उनमें अगर ममताके कारण मन जाता है तो उनके निमित्त नामजप करो, कीर्तन करो, गीता-रामायणका पाठ करो, विष्णुसहस्रनामका पाठ करो, हनुमानचालीसाका पाठ करो । जिनमें ममता दीखे, उनकी सेवा कर दो और बदलेमें कुछ मत चाहो । उनको दो, लो मत । इससे ममता मिट जाती है । जैसे, पचीस वर्षका जवान सहसा मर जाय तो दुःख होता है । परन्तु सत्रह वर्षकी अवस्थासे आठ वर्षतक वह बीमार रहा और उसकी सेवा कर दी, रुपये भी लगा दिये, रातों जगे, वह मर जाय तो दुःख नहीं होगा । तात्पर्य है कि सेवा करनेसे ममता टूटती है ।

सुखकी आशा और सुखका भोगये दोनों ममताको दृढ़ करते हैं । इसलिये इन दोनोंको छोड़कर दूसरेको सुख पहुँचाओ । पहले जिनसे सुख लिया है, उनका हमारे ऊपर कर्जा है । वह कर्जा जबतक रहेगा, तबतक ममता छूटनी कठिन है । इसलिये सुख लेना नहीं है, देना है । सुख लेते रहोगे तो ममता छूटेगी नहीं । सत्तर-अस्सी वर्षका बूढ़ा मर जाय तो दुःख नहीं होता; क्योंकि अब उससे सुख लेनेकी आशा नहीं रही । वे हमारा कुछ काम करेंगे, यह आशा नहीं रही ।

जो मर गये हैं, उनकी ममता, चिन्ता-शोक मिटानेके लिये मैं तीन बातें कहता हूँ) उनकी याद आये तो उनको भगवान्‌के धाममें, भगवान्‌के चरणोंमें देखो, ) छोटे-छोटे बालकोंको खिलौने अथवा मिठाई दो, जिससे वे राजी हों और ३) गीता, रामायण आदिका पाठ, नामजप, दान-पुण्य करो और उनके अर्पण कर दो ।

श्रोताभगवान्‌के अनेक नाम बताये हैं, उनमें हमलोगोंके लिये कौन-सा नाम श्रेष्ठ है ? इस कलियुगमें कौन-से नामसे जल्दी कल्याण होता है ?


स्वामीजीऐसे तो ‘राम’नामको सबसे श्रेष्ठ बताया गया है‘राम सकल नामन्ह ते अधिका’ (मानस, अरण्य४२ । ४) परन्तु आपको जो नाम हृदयसे प्यारा लगे, वही नाम आपके लिये सर्वश्रेष्ठ है । आप जो नाम जपते हो, जिसपर आपकी श्रद्धा है, जिसमें आपका प्रेम है, जिसपर आपका विश्वास है, वह नाम आपके लिये श्रेष्ठ है । उसीका जप करनेसे आपकी निष्ठा बनेगी । मेरी तो यही प्रार्थना है कि उस नामको आप छोड़ना मत । कोई सन्त-महात्मा कुछ भी कह दें, उसको छोड़ना नहीं । उसमें तत्परतासे लगे रहो । उससे आपकी निष्ठा बनेगी ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे