।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
माघ कृष्ण नवमी, वि.सं. २०७५ मंगलवार
नाममें अरुचिका कारण



वाल्मीकिजीको अल्पप्राणवाला नाम भी क्यों नहीं आया ? कारण क्या था ? ध्यान दें ! ‘राम’ नाम उच्‍चारण करनेमें सुगम है; परन्तु जिसके पाप अधिक हैं, उस पुरुषद्वारा नाम-उच्‍चारण कठीन हो जाता है । एक कहावत है

मजाल क्या है जीव की, जो राम-नाम लेवे ।
पाप  देवे थाप  की,  जो   मुण्डो  फोर  देवे ॥

जिनका अल्प पुण्य होता है, वे ‘राम’ नाम ले नहीं सकते । श्रीमद्भगवद्गीतामें आया है

येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् ।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता   भजन्ते  मां दृढव्रताः ॥
                                                    (७/२८)

जिनके पाप नष्ट हो गये हैं, वे ही दृढ़व्रत होकर भगवान्‌के भजनमें लग सकते हैं ।  ‘राम’ नामके विषयमें भी ऐसी बातें शास्त्रोंमें पढ़ते हैं, सन्तोंसे सुनते हैं । ऐसे ही हमने एक घटना सुनी है

बाँकुड़ाकी  बात है । एक सज्जन थे श्रीबद्रीदासजी गोयन्का । वे अपनी बीती घटना सुनाने लगे । एक बुढ़ा बंगाली सरोवरके किनारे मछलियाँ पकड़ रहा था । श्रीजयदयालजी गोयन्का एवं बद्रीदासजीने उसे देखा और कहा‘यह बूढ़ा हो गया, बेचारा भजनमें लग जाय तो अच्छा है ।’ उससे जाकर कहा कि तुम भगवन्नाम- उच्‍चारण  करो तो, उसे ‘राम’ नाम आया ही नहीं । वह मेहनत करनेपर भी सही उच्‍चारण नहीं कर सका । कई नाम बतानेके बादमें अन्तमें ‘होरे-होरे’ कहने लगा । इस नामका उच्‍चारण हुआ और कोई नाम आया ही नहीं । उससे पूछा गया कि ‘तुम्हें एक दिनमें कितने पैसे मिलते हैं ?’ तो उन्होंने बताया कि इतनी मछलियाँ मारनेसे इतने पैसे मिलते हैं । तो उन्होंने कहा कि ‘उतने पैसोंके चावल हम तुम्हें दे देंगे । तुम हमारी दूकानमें बैठकर दिनभर होरे-होरे (हरि-हरि) किया करो ।’ उसको किसी तरह ले गये दूकानपर । वह एक दिन तो बैठा । दूसरे दिन देरसे आया और तीसरे दिन आया ही नहीं । फिर दो-तीन दिन बाद जाकर देखा, वह उसी जगह धूपमें मछली पकड़ता हुआ मिला । उन्होंने उसे कहा कि ‘तू वहाँ दूकानमें छायामें बैठा था । क्या तकलीफ थी ? तुमको यहाँ जितना मिलता है, उतना अनाज दे देंगे केवल दिनभर बैठा हरि-हरि कीर्तन किया कर ।’ उसने कहा‘मेरेसे नहीं होगा ।’ वह दूकानपर बैठ नहीं सका । ऐसी बीती हुई घटना बतायी । हमारे विश्वास हुआ कि बात तो ठीक है भाई ! पापीका शुभ काममें लगना कठीन होता है । श्रीतुलसीदासजी महाराजने कहा है

तुलसी  पूरब पाप ते हरि चर्चा न सुहात ।
जैसे ज्वरके जोरसे  भूख  बिदा  हो  जात ॥

जब ज्वर (बुखार) का जोर होता है तो अन्न अच्छा नहीं लगता । उसको अन्नमें भी गन्ध आती है । जैसे भीतरमें बुखारका जोर होता है तो अन्न अच्छा नहीं लगता, वैसे ही जिसके पापोंका जोर ज्यादा होता है, वह भजन कर नहीं सकता, सत्संगमें जा नहीं सकता ।


इसलिये सज्जनो ! एक बातपर ध्यान दें । जो भाई सत्संगमें रुचि रखते हैं, सत्संगमें जाते हैं, नाम लेते हैं, जप करते हैं, उन पुरुषोंको मामूली नहीं समझना चाहिये । वे साधारण आदमी नहीं हैं । वे भगवान्‌का भजन करते हैं, शुद्ध हैं और भगवान्‌के कृपा-पात्र हैं । परन्तु जो भगवान्‌की तरफ चलते हैं, उनको अपनी बहादुरी नहीं माननी चाहिये कि हम बड़े अच्छे हैं । हमें तो भगवान्‌की कृपा माननी चाहिये, जिससे हमें सत्संग, भजन-ध्यानका मौका मिलता है । हमें ऐसा समझना चाहिये कि ऐसे कलियुगके समयमें हमें भगवान्‌की बात सुननेको मिलती है, हम भगवान्‌का नाम लेते हैं, हमपर भगवान्‌की बड़ी कृपा है ।