।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
माघ कृष्ण दशमी, वि.सं. २०७५ बुधवार
                   एकादशी-व्रत कल है
नाममें अरुचिका कारण
        


जैसे नदीका प्रवाह समुद्रकी तरफ जा रहा है, ऐसे ही इस समय संसारका प्रवाह नरकोंकी तरफ बड़े जोरोंसे जा रहा है । पढ़ाईमें, रस्म-रिवाजमें, कानून-कायदोंमें, व्यापार आदि कार्योंमें जहाँ कहीं भी देखो, पापका बड़े जोरोंसे प्रवाह चल रहा है । गोस्वामीजीने वर्णन किया है

कलि  केवल  मल  मूल मलिन ।
पाप पयोनिधि जन मन मीना ॥
                                    (मानस, बालकाण्ड, २७/४)

कलियुगमें ऐसा जोरोंसे पाप छा जायगा कि मनुष्योंका मन जलमें मछलीकी तरह पापोंमें रम जायगा अर्थात् जैसे मछलीको जलसे दूर कर देनेपर वह घबरा जाति है, उसको पहले अगर यह समझमें आ जाय कि तुम्हें जलसे दूर कर देंगे तो वह घबरा जायगी; क्योंकि वह जलके बिना जी नहीं सकती, ऐसे ही ‘पाप पयोनिधि’पापरूपी तो हुआ समुद्र और उसमें ‘जन मन मीना’यह मनुष्योंका मन मछली हो गया ।

आज अगर कहा जाय कि ब्लेक मत करो, झूठ-कपट मत करो, बेईमानी मत करो, न्यायसे काम करो तो कहते हैं, ‘महाराज ! झूट-कपटके बिना आजके जमानेमें काम नहीं चलता । ईमानदारीसे अगर काम करें तो बड़ी मुश्किल हो जायगी । हमारेसे यह नहीं होगा ।’ पापसे दूर करनेकी बात सुनाते ही काँपते हैं । वे कहते हैं कि पाप छोड़ देंगे तो गजब हो जायगा, फिर तो हमारा निर्वाह होगा ही नहीं । हमारा तो झूठ-कपट-बेईमानीसे ही काम चलता है ।

इन बातोंसे ऐसा नहीं मानना चाहिये कि दुराचारी-पापी, अन्यायी मनुष्य भजनमें नहीं लग सकता । गीता कहती है

अपि चेत् सुदुराचारो भजते मामानन्यभाक् ।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥
                                                       (९/३०)

सांगोपांग दुराचारी भी यदि पक्‍का विचार करके भजनमें लग जाय तो उसे मामूली आदमी नहीं समझना चाहिये । भगवान् कहते हैं‘उसे साधु ही मानना चाहिये; क्योंकि उसने निश्चय पक्का कर लिया ।’


भगवान्‌ने गीतामें चार प्रकारके भक्त बतायें हैं‘आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ’आर्त और अर्थार्थी भक्त भगवान्‌का नाम लेते हैं । जिज्ञासु भी उनका नाम लेता है । परन्तु ज्ञानी तो ‘प्रभुहि बिसेषि पियारा’, ‘ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्’वह तो भगवान्‌की आत्मा ही है ।