।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आषाढ़ शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७७ सोमवार
गीताका ज्ञेय-तत्त्व


सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेद्रियविवर्जितम् ।
असक्तं सर्वभृच्‍चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च ॥
                      (१३/१४)

‘सम्पूर्ण इन्द्रियोंसे रहित होते हुए भी वे सम्पूर्ण इन्द्रियोंका कार्य करते हैं और आसक्तिरहित होते हुए भी सबका धारण-पोषण करते हैं । सर्वथा निर्गुण होते हुए भी सम्पूर्ण गुणोंके भोक्ता हैं ।’

बहिरन्तश्च    भूतानामचरं    चरमेव    च ।
सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयं दूरस्थं चान्तिके च तत् ॥
                                                (गीता १३/१५)

वे सब प्राणियोंके बाहर-भीतर हैं और चर-अचर प्राणिमात्र भी वे ही हैं । अत्यन्त सूक्ष्म होनेसे वे अविज्ञेय हैं; क्योंकि वे ‘अणोरणीयान्’–अणुसे भी अणु हैं । जाननेमें आनेवाले जड पदार्थोंकी अपेक्षा उनका ज्ञान सूक्ष्म है और ज्ञानकी अपेक्षा ज्ञाता अत्यधिक सूक्ष्म है । फिर वह जाननेमें कैसे आ सकता है ? श्रुति भी कहती है–

‘विज्ञातारमरे केन विजानीयात् ?’

उसकी चित्-शक्तिसे बुद्धि, मन और इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयोंको जाननेमें समर्थ होती हैं । वह ज्ञेय-तत्त्व दूर-से-दूर और समीप-से-समीप है । देशकी दृष्टिसे देखनेपर पृथ्वीसे समीप शरीर, शरीरसे समीप प्राण, प्राणसे समीप इन्द्रियाँ, इन्द्रियाँसे समीप मन, मनसे समीप बुद्धि, बुद्धिसे समीप जीवात्मा तथा उसका भी प्रेरक और प्रकाशक सर्वव्यापी परमात्मा है और दूर देखनेपर शरीरसे दूर पृथ्वी, पृथ्वीसे दूर जल, जलसे दूर तेज, तेजसे दूर वायु, वायुसे दूर आकाश, आकाशसे दूर समष्टि मन, मनसे दूर महत्तत्त्व, महत्तत्त्वसे दूर परमात्माकी प्रकृति तथा प्रकृतिसे अति दूर स्वयं परमात्मा है । अतः देशकी दृष्टिसे परमात्मा दूर-से-दूर है । इसी प्रकार कालकी दृष्टिसे परमात्मा दूर-से-दूर तथा समीप-से-समीप है । वर्तमानकालमें तो वह परमात्मा है; क्योंकि जड वस्तुमात्र प्रत्येक क्षण नाशको प्राप्त हो रही है; अतएव उनकी तो सत्ता है ही नहीं । यदि सत्ता मानें भी तो उससे भी समीप वह सत्य-तत्त्व है और भूतकालकी ओर देखें तो दिन, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, वर्ष, युग, चतुर्युग, कल्प, परार्ध, ब्रह्माकी आयु तथा उससे भी पूर्व–

‘सदेव सोम्येदमग्र आसीदेकमेवाद्वितीयम् ।’


वे सजातीय, विजातीय तथा स्वागत-भेदसे शून्य सत्स्वरूप परब्रह्म परमात्मा ही थे तथा भविष्यमें भी उसी प्रकार क्षण, पल, दण्ड, घड़ी, प्रहर, दिन, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, वर्ष, युग, चतुर्युग, कल्प, परार्ध तथा ब्रह्माकी आयुके बाद भी वे परमात्मा रहेंगे–‘शिष्यते शेषसंज्ञः ।’ अतएव दूर-से-दूर भी वही तत्त्व विद्यमान है ।