।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                      




           आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.२०७७, मंगलवा

“ गीता मे हृदयं पार्थ ”


कैमरेका काँच जैसे सामने दीखनेवाले रूपको खींच लेता है । उससे अत्यन्त अधिक विलक्षणताके साथ भगवान्‌को खींचनेका आकर्षण भगवद्भक्तके प्रेममें होता है । कैमरा तो सामनेकी जड़ वस्तुकी उस आकृतिमात्रको ही खींचता है, परन्तु भगवद्भक्तका प्रेम चिन्मय परमात्माको अपने मनचाहे रूपमें खींच लेता है । इसलिये भगवान्‌ कहते हैं–

ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्याहम् ।

श्रीमद्भागवतमें भगवान्‌ कहते हैं–

साधवो  हृदयं  मह्यं   साधूनां  हृदयं  त्वहम् ।

मदन्यत् ते न जानन्ति नाहं तेभ्यो मनागपि ॥

(९/४/६८)

‘साधुओंका मैं हृदय हूँ और सन्तलोग मेरे हृदय हैं । वे मेरे सिवा और किसीको नहीं जानते और मैं उनके सिवा किसीको कुछ भी नहीं जानता ।

भगवान्‌को अपने भक्त जितने प्यारे हैं, उतनी अर्धांगिनी लक्ष्मी, गरुड़ आदि पार्षद और अपना शरीर भी प्रिय नहीं है । भागवतमें भगवान्‌ उद्धवसे कहते हैं–यदि भक्तोंके प्रतिकूल मेरी भुजा भी उठे तो उसे काटकर फेंक दूँ–

‘छिन्द्या स्वबाहुमपी वह प्रतिकूलावृत्तिम्’ ।

भक्त नीच घरका हो तो भी भगवान्‌ उसके यहाँ पधारते हैं ।

यहाँ एक शंका होती है कि जब भजनेवालेको ही भगवान्‌ भजते हैं–जो जिस भावसे भजता है, उसे उसी भावसे वे भी भजते हैं–तब जो भगवान्‌की आज्ञाके सर्वथा विरुद्ध चलनेवाला, भगवान्‌का विरोध करनेवाला, भगवान्‌के द्वारा निषेध किये हुए कर्मोंको आसक्तिपूर्वक करनेवाला अर्थात् भगवान्‌का सर्वथा विरोधी हो, वह यदि भजन करे तो क्या भगवान्‌ उसे भी अपनाते हैं ? इसका उत्तर है–‘अवश्य’ ।

अपि चेत् सुदुराचारो  भजते मामनन्यभाक् ।

साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥

                                                      (९/३०)

अर्थात् ‘यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभावसे मेरा भक्त हुआ मुझे निरन्तर भजता है तो वह साधु ही माननेयोग्य हैं; क्योंकि वह यथार्थ निश्चयवाला है अर्थात् उसने भली प्रकार निश्चय कर लिया है कि परमेश्वरके भजनके समान अन्य कुछ भी नहीं है ।’

यहाँ भगवान्‌ स्पष्ट कहते हैं कि चाहे दुराचारी-से-दुराचारी भी हो, परन्तु जो अनन्यभावसे मेरा भक्त होकर भजन करता है, उसे साधु ही मानना चाहिये; क्योंकि उसने उत्तम निश्चय कर लिया है । दुराचारी चाहे इस जन्मका हो चाहे पूर्वजन्मका, भक्तके उस पाप और दुराचारको भगवान्‌ नष्ट कर देते हैं । भगवान्‌ रामायणमें कहते हैं–

कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू ।

आएँ सरन  तजऊँ नहिं ताहू ॥

करोड़ों ब्राह्मणोंकी हत्या करनेवाला भी यदि शरणमें आ जाय तो भगवान्‌ उसके पापको नष्ट कर देते हैं । एक जन्मके नहीं, अनेकों जन्मोंके पापका भी नाश कर देते हैं ।