।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                                                                               




           आजकी शुभ तिथि–
माघ शुक्ल त्रयोदशी वि.सं.२०७७, गुरुवा

सदुपयोगसे कल्याण


एक बधिकने वनमें एक मृगको मारा और उसको उठाकर चला । रास्तेमें प्यास और थकावटसे व्याकुल होकर वह एक पेड़की छायामें आकर बैठ गया । उस वृक्षपर एक पालतू तोता बैठा हुआ था, जो पिंजड़ेसे निकलकर भाग आया था । इतनेमें एक साँप निकला और उसने बधिकको काट लिया । वहाँ उस तोतेने दो बार ‘राम-राम’ कहा, बधिकने भगवान्‌का नाम सुना तो उसके मुखसे भी दो बार ‘राम-राम’ निकला और वह मर गया । मरनेपर उसे ले जानेके लिये यमराजके दूत आये, पर उधरसे उसे वैकुण्ठमें ले जानेके लिये भगवान्‌के पार्षद भी आ गये । यमदूतोंने उनको रोका और कहा कि इसको कैसे ले जाते हो ? इसने तो बहुत जीवोंको मारा है, बहुत पाप किये हैं । इसलिये यह नरकोंमें जायगा । भगवान्‌के पार्षदोंने कहा कि इसने अन्तसमयमें भगवान्‌का नाम लिया है, इसलिये इसका कल्याण होगा । दोनोंमें विवाद छिड़ गया । फैसला करनेके लिये सम्पूर्ण पापोंको और नामको तौला गया तो नाम बड़ा वजनदार निकला । अतः बधिकको निर्भय धाम मिल गया‒

व्याध एक मारियो मिरग, व्याल डस्यो तरु छाँय ।

तृषा मरत शुक सुनि गिरा,   नाम प्रगट उर माँय ॥

उभय वार श्रवणां सुणे,   उभय  वार  मुख  गाय ।

अन्तकाल  ऐसो   भयो,    ततछिन  भए  सहाय ॥

जमकिंकर   बंधे  महा,      बंध     छुड़ाई   ताय ।

हरिपुरवासी  आय  के,     लेखै   न्याव   चुकाय ॥

एके   चेलै   अघ   सबै,         एके   चेलै   नाम ।

ऐसी  विधि  भव   तारणा,  निर्भय  दीधो  धाम ॥

(करुणासागर ६७‒७०)

भगवान्‌का नाम अपार, अनन्त शक्ति रखता है । उसके सामने पाप कितने हैं‒ऐसी गणना नहीं हो सकती । जैसे, सेरभर रूईको जलानेके लिये एक दियासलाई होनी चाहिये तो मनभर रूईको जलानेके लिये चालीस दियासलाई होनी चाहिये ? नहीं । एक ही दियासलाई सबको जला देगी । वहाँ यह माप-तौल नहीं होता कि जितनी रूई है, उसको जलानेके लिये अग्नि भी उतनी ही हो । इसी तरह पाप कितने हैं और भगवान्‌का नाम कितना है‒यह गिनती नहीं होती । मकानमें ठसाठस अँधेरा भरा हो तो एक दीपककी लौ करते ही सब (अँधेरा) भाग जाता है । संसार क्षणभंगुर है, नश्वर है, जा रहा है, नष्ट हो रहा है । परन्तु भगवान्‌, भगवान्‌का नाम, भगवान्‌की महिमा, भगवान्‌का प्रभाव नित्य-निरन्तर रहनेवाला है । उस रहनेवालेके सामने यह बहनेवाला कुछ ताकत नहीं रखता ।

शरीर, इन्द्रियाँ आदि नाशवान्‌ हैं, परिवर्तनशील है और स्वयं (जीवात्मा) अविनाशी है, अपरिवर्तनशील है । इन दोनोंका ठीक तरहसे ज्ञान हो जाय अथवा नाशवान्‌का आश्रय लेना, उसको अपना मानना बहुत बड़ी गलती है । रुपयोंसे मेरा काम हो जायगा, कुटुम्बियोंसे काम हो जायगा, शरीरसे ऐसे हो जायगा; मेरेमें बड़ी भारी योग्यता है, मेरेमें बड़ी विद्या है, मेरेको बड़ा पद मिला हुआ है, मैं बड़ा अधिकारी हूँ‒ये सब बदलनेवाले और मिटनेवाले हैं । अगर इन सबका सहारा छोड़कर केवल भगवान्‌का सहारा ले लिया जाय तो निहाल हो जायँ !