।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                                                                                 




           आजकी शुभ तिथि–
माघ पूर्णिमा वि.सं.२०७७, शनिवा

सदुपयोगसे कल्याण


संसारका राग, खिंचाव अज्ञानका चिह्न है, मूर्खताकी खास पहचान है‒‘रागो लिंगमबोधस्य चित्तव्यायामभूमिषु ।’ जितने दर्जेका नाशवान्‌में खिंचाव है, उतने ही दर्जेका मूर्ख है । वृक्षके कोटरमें आग लगा दे और फिर ऊपरकी तरफ देखकर प्रतीक्षा करे कि वृक्ष कब हरा होगा, उसमें कब फल-फूल लगेंगे, तो यह मूर्खता ही है । इसी तरह संसारमें तो राग है और देखते हैं कि सुख-शान्ति मिलेगी, प्रसन्नता होगी ! यह होगा नहीं कभी ।

मनुष्य क्या करते हैं ? राग तो बढ़ाते जाते हैं और चाहते हैं शान्ति । इतना धन हो जाय तो सुख हो जायगा, इतनी सम्पत्ति हो जाय तो सुख हो जायगा । अरे भाई ! धन-सम्पत्तिके होनेसे सुख नहीं होता । आपको वहम हो तो परीक्षा करके देख लें । जिसके पास ज्यादा-से-ज्यादा धन हो, उससे मिलकर पूछो कि आपको किसी तरहका दुःख तो नहीं है ? किसी तरहकी अशान्ति तो नहीं है ? वह पोल निकाल देगा तो आपका समाधान हो जायगा !

एक घरमें चूहे बहुत हो गये । उनको मारना तो ठीक नहीं, पकड़कर दूर जंगलमें छोड़ दें, जहाँ सुरक्षित रहें‒ऐसा सोचकर चूहोंको पकड़नेके लिये तारोंसे बना पिंजड़ा ले आये । उसमें रोटीके टुकड़े रख दिये और उसको अँधेरेमें रख दिया । अब चूहे आते हैं और चारों तरफ चढ़ते हैं कि किसी तरहसे पिंजड़ेमें पड़ी रोटी मिल जाय तो हम निहाल हो जायँ ! ढूँढ़ते-ढूँढ़ते दरवाजा मिल जाता है । उधर जाते ही स्प्रिंग लगी हुई पट्टी (बोझ पड़नेपर) नीचे झुक जाती है और चूहा पिंजड़ेमें चला जाता है । भीतर जाते ही पट्टी वापस ऊपर हो जाती है । इधर बाहर खटका लगता है और उधर चूहेके भीतर खटका लगता है । अब वह रोटी खाना भूलकर इधर-उधर दौड़ता है और बाहर निकलनेका उद्योग करता है कि कैसे निकलूँ कैसे ? बाहरवाले चूहे समझते हैं कि यह भीतरवाला चूहा बड़ी मौजमें है । अन्दर कितनी रोटी पड़ी है और कितनी मौजमें धूमता है । हम ही बाहर रह गये । उनमेंसे कोई दरवाजा ढूँढ़ लेता है और भीतर चला जाता है तो मुश्किल हो जाती है । दोनों पिंजड़ेके भीतर लड़ते हैं और इधर-उधर दौड़ते हैं । बाहरके चूहे देखते हैं कि ये तो मौज करते हैं, हम बाहर वञ्चित रह गये । इस तरह चूहे उसमें फँसते जाते हैं । यह पिंजड़ा तो दूसरोंका बनाया हुआ होता है । परन्तु जिस पिंजड़ेमें हम फँसते हैं, वह हमारा ही बनाया हुआ होता है ।

जिसके पास धन कम होता है, वे देखते हैं कि झूठ, कपट, बेईमानी, चोरी आदि करके किसी तरहसे अधिक-से-अधिक धन इकठ्ठा कर लें तो हम सुखी हो जायँगे । धन हो जानेसे खूब मौज हो जायगी, आनन्द हो जायगा । जिनका विवाह नहीं हुआ है, वे देखते हैं कि विवाह किये हुए बड़ी मौजमें हैं, हम रीते ही रह गये । किसी तरहसे हमारा विवाह हो जाय ! जब उनका विवाह हो जाता है और पूछते हैं‒जै रामजीकी ! क्या ढंग है ? तब वे कहते हैं‒फँस गये ! बड़े शहरोंमें नौकरी करते हैं । अकेले होते तो कहीं भी रह जाते, पर अब बड़ी मुश्किल हो गयी ! बाल-बच्चोंको कहाँ रखें ? कैसे रहें ? उनकी पढ़ाई आदिका प्रबन्ध करना है । वे बड़े हो जायँ तो उनका विवाह करना है । बड़ी आफत आ जाती है । ऐसे ही लोग कहते हैं कि बड़े धनी आदमी हैं, बड़े सुखी हैं, बड़े आराममें हैं । उनके पास रहकर देखो । उनको रातमें चैनसे नींद नहीं आती । समयपर भोजन नहीं कर सकते । दोपहरके दो बज जायँ तो भी रोटी खानेकी फुरसत नहीं मिलती । रातमें ग्यारह-बारह बज जाते हैं । मेरे सामने अनेक उदहारण आये हैं । मैं केवल पुस्तककी बात नहीं कहता । देखी हुई बात भी कहता हूँ । पुस्तकोंकी बातें सच्ची हैं ही; क्योंकि ऋषि-मुनियोंने अनुभव करके लिखा है ।