।। श्रीहरिः ।।

                       


आजकी शुभ तिथि–
       वैशाख कृष्ण तृतीया, वि.सं.२०७८ गुरुवार
   करनेमें सावधानी, होनेमें प्रसन्नता


इस वास्ते अर्जुनने पूछा‒‘अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः । अनिच्छन्नपि....’ न चाहता हुआ भी पुरुष पापका आचरण क्यों करता है ? तो भगवान्‌ने उत्तर दिया‒ ‘काम एष’‒यह जो कामना है कि यह मिलना चाहिये, यह नहीं मिलना चाहिये, यह होना चाहिये, यह नहीं होना चाहिये‒यह सम्पूर्ण पापोंकी, अनर्थोंकी जड़ है । यह भी कामना है कि कामिनी, कंचन, कीर्ति मिले । परन्तु कामनाका मूल है कि मेरे मनके अनुकूल बात हो जाय और मेरे मनके प्रतिकूल न हो ।

जबतक कामना रहेगी, तबतक मनुष्य परतन्त्र रहेगा, परवश रहेगा । और इस कामनाके रखने-मिटानेमें हम बिलकुल स्वतन्त्र हैं ।

इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ ।

तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ ॥

(गीता ३/३४)

इन्द्रियोंमें राग-द्वेष छिपे हैं, उन दोनोंके वशमें न होवे । यदि राग-द्वेषके कहनेमें चलेगा तो राग-द्वेषको पुष्टि मिलेगी परन्तु राग-द्वेषके वशीभूत न होनेसे राग-द्वेष मिट जायँगे । अतः राग-द्वेषके वशीभूत न होनेकी बात बतायी । तो राग-द्वेषको मिटाकर यन्त्रको शुद्ध कर लो ।

और एक दूसरा उपाय बताया‒‘तमेव शरणं गच्छ’‒कि जो ईश्वर सम्पूर्ण प्राणियोंको घुमाता है, उसकी शरण जा । शरण जानेपर क्या होगा ? भगवान्‌ कहते हैं‒

मन्मना भव मद्‌भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।

मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ॥

(गीता १८/६५)

ऐसे भगवान्‌की शरण होनेपर सब कुछ ठीक हो जायगा और भगवान्‌को ही प्राप्त होगा । अतः उपाय हुआ कि चाहे तो राग-द्वेषको मिटाकर यन्त्रको शुद्ध कर लो या भगवान्‌की शरण हो जाओ ।

अतः जीव जबतक कर्तृत्व-अभिमानपूर्वक अपने मनके अनुसार कार्य करेगा तो उसका फल उसे भोगना पड़ेगा और दुःख पाना पड़ेगा ।

इस वास्ते यह सोचना है कि हम जो करते हैं ईश्वर-प्रेरणासे करते हैं, गलत है । हम जैसा कर्म करते हैं, हमें उसके अनुसार फल भोगना पड़ेगा । यह भगवान्‌का विधान है कि ऐसा करोगे तो ऐसा फल होगा । अतः करनेमें सदा सावधान रहें और जो होता है, उसमें प्रसन्न रहें कि सब हमारे प्रभुके विधानके अनुसार होता है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒ ‘जीवनका सत्य’ पुस्तकसे