।। श्रीहरिः ।।

                                                       


आजकी शुभ तिथि–
     ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी, वि.सं.२०७८ सोमवार

    सत्यकी स्वीकृतिसे कल्याण


प्रश्न‒बात समझमें तो आती है, पर भीतरमें स्वीकृति नहीं होती, क्या करें ?

उत्तर‒विचार करें, आप इस बातकी स्वीकृति होना ठीक समझते हैं अथवा स्वीकृति न होना ठीक समझते हैं ? अगर स्वीकृति होना ठीक समझते हैं तो फिर मना कौन करता है ? अगर कोई लाभकी बात हो तो उसको जबर्दस्ती मान लेना चाहिये । मान लेनेपर फिर वह बात सुगम हो जाती है । वास्तवमें आप भीतरसे चाहते नहीं हैं । हमारी समझसे इसका मूल कारण है‒सुखलोलुपता । सुखलोलुपताके कारण ही सच्ची बातकी स्वीकृति नहीं हो रही है ।

आप आँखें मीचकर, दाँत भींचकर, छाती कड़ी करके यह मान लो कि हम भगवान्‌के हैं और भगवान्‌ हमारे हैं । शरीर अपना नहीं है, नहीं है, नहीं है । जब शरीर भी अपना नहीं है, तो फिर संसारमें क्या चीज अपनी है ?

प्रश्न‒सामने कोई चीज देखते हैं तो उसका असर पड़ता है; ऐसी स्थितिमें क्या करें ?

उत्तर‒असरको इतना आदर मत दो । कोई वस्तु देखते हैं तो वह हमारेको अच्छी लगती है, प्यारी लगती हैं, उसको प्राप्त करनेकी इच्छा होती है तो ऐसा असर पड़नेपर भी भीतरसे यह भाव होना चाहिये कि यह वस्तु हमारी नहीं है । वस्तुके असरका आदर न करके सच्ची बातका आदर करो । असरको महत्त्व देकर आप असली चीज खो रहे हो ! आजसे हृदयमें पक्का विचार कर लो कि अब हम असरको नहीं मानेंगे, प्रत्युत सच्ची बातको मानेंगे । असर कभी-कभी पड़ता है, हरदम नहीं पड़ता, पर आप इसको स्थायी मान लेते हो । यह भूल है । वास्तवमें आप शरीर नहीं हो । बालकपनमें जो आपका शरीर था, वह आज नहीं है, पर आप वे-के-वे ही हो । इसलिए कृपा करके आप असरको महत्त्व मत दो । सच्ची बातका असर पड़ना चाहिये । झूठी बातका असर पड़ जाय तो उसको आदर मत दो । सच्ची बात यह है कि हम शरीर नहीं हैं, शरीर हमारा नहीं है ।

मुक्ति प्राप्त करनेमें, भगवान्‌की तरफ चलनेमें स्थूल, सूक्ष्म या कारण, कोई भी शरीर काम नहीं आता । शरीर कुटुम्बके लिये, समाजके लिये और संसारके लिये काम आता है, हमारे लिये काम आता ही नहीं । इसलिये शरीरको कुटुम्ब, समाज और संसारकी सेवामें लगा दो । यह बड़ी भारी दामी बात है । इसको मान लो तो आप सदाके लिये सुखी हो जाओगे । शरीरसे हमारेको लाभ हो जायगा‒यह कोरा वहम है ।

स्थूल, सूक्ष्म और कारण‒कोई भी शरीर हमारे काम नहीं आता‒इस बातको समझ लेनेसे बहुत लाभ होता है । स्थूलशरीरसे क्रिया होती है, सूक्ष्मशरीरसे चिन्तन होता है और कारणशरीरसे स्थिरता तथा समाधि होती है । क्रिया, चिन्तन, स्थिरता और समाधि आपके लिये नहीं है । इनके भरोसे मत रहना । आपके काम आनेवाली चीज है‒कुछ भी चिन्तन न करना । ग्रन्थोंमें समाधिकी बड़ी महिमा आती है, पर वह भी आपके काम नहीं आयेगी । आपके काम न क्रिया आयेगी, न चिन्तन आयेगा, न स्थिरता आयेगी, न समाधि आयेगी । इसी तरह प्राणायाम, कुण्डलिनी-जागरण, एकाग्रता आदि कोई कामके नहीं हैं । ये सब प्राकृत चीजें हैं, जबकि आप परमात्माके अंश हो । ये आपकी जातिके नहीं हैं । आप इन सबसे अलग हो । आपकी एकता परमात्माके साथ है । आप चाहे अद्वैत मानो, चाहे द्वैत मानो; चाहे ज्ञान मानो, चाहे भक्ति मानो, कम-से-कम इतनी बात तो स्वीकार कर ही लो कि शरीर हमारे कामका नहीं है, इसके साथ हमारा सम्बन्ध नहीं है ।