।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
   आश्विन कृष्ण पंचमी, वि.सं.-२०७८, रविवार
                             
         वास्तविक बड़प्पन


एक परमात्मा ही सत्य हैं, शेष सब असत्य हैं । असत्यका अर्थ हैजिसका अभाव हो । जो वस्तु नहीं है, वह असत्य कहलाती है । जिस वस्तुका अभाव होता है, वह दिखायी नहीं देती, पर संसार दिखायी देता है । फिर संसार असत्य कैसे ? वास्तवमें असत्य होते हुए भी यह संसार सत्य-तत्त्व परमात्माके कारण ही सत्य प्रतीत होता है । तात्पर्य यह कि इस संसारकी स्वतन्त्र सत्ता नहीं है । जैसे दर्पणमें मुख दीखता तो है, पर वहाँ है नहीं, ऐसे ही संसार दीखता तो है, पर वास्तवमें है नहीं । वास्तवमें एक परमात्माकी ही सत्ता है । परमात्मा अपरिवर्तशील हैं और प्रकृति (संसार) निरन्तर परिवर्तनशील है । जिसमें निरन्तर परिवर्तनरूप क्रिया होती रहती है, उसका नाम प्रकृति हैप्रकर्षेण करणं प्रकृतिः । संसार तथा उसका अंश शरीर निरन्तर बदलनेवाले हैं, और परमात्मा तथा उसका अंश जीव कभी नहीं बदलनेवाले हैं । न बदलनेवाला जीव बदलनेवाले संसारका आश्रय लेता है, उससे सुख चाहता हैयही गलती है । निरन्तर बदलनेवाला क्या न बदलनेवालेको निहाल कर देगा ? उसका साथ भी कबतक रहेगा ? अतः संसारको अपना मानना, उससे लाभ उठानेकी इच्छा रखना, उसपर भरोसा रखना, उसका आश्रय लेनायह गलती है । इस गलतीका ही हमें सुधार करना है । इसीलिये गीतामें भगवान्‌ने कहामामेकं शरणं व्रज एक मेरी शरणमें आ । हाँ, सांसारिक वस्तुओंका सदुपयोग तो करो, पर उन्हें महत्त्व मत दो, सांसारिक वस्तुओंके कारण अपनेको बड़ा मत मानो ।

पासमें अधिक धन होनेपर मनुष्य अपनेको बड़ा मान लेता है । पर वास्तवमें वह बड़ा नहीं होता अपितु छोटा ही होता है । ध्यान दें, धनके कारण मनुष्य बड़ा हुआ, तो वास्तवमें वह स्वयं (धनके बिना) छोटा ही सिद्ध हुआ ! धनका अभिमानी व्यक्ति अपना तिरस्कार व अपमान करके तथा अपनेको छोटा करके ही अपनेमें बड़प्पनका अभिमान करता है । वास्तवमें आप स्वयं निरन्तर रहनेवाले हैं और धन, मान, बड़ाई, प्रशंसा, नीरोगता, पद, अधिकार आदि सब आने-जानेवाले हैं । इनसे आप बड़े कैसे हुए ? इनके कारण अपनेमें बड़प्पनका अभिमान करना अपना पतन ही करना है । इसी प्रकार निर्धनता, निन्दा, रोग आदिके कारण अपनेको छोटा मानना भी भूल है । आने-जानेवाली वस्तुओंसे कोई छोटा या बड़ा नहीं होता ।