।। श्रीहरिः ।।

 


आजकी शुभ तिथि–
   आश्विन कृष्ण सप्तमी, वि.सं.-२०७८, मंगलवार
                             
    जीव लौटकर क्यों आता है ?



श्रीमद्भागवद्गीतामें भगवान्‌ने कहाहै कि यह जीव साक्षात् मेरा ही अंश है‒

ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः ।

(१५/७)

‘यह मेरा अंश यहाँ जीवलोक अर्थात्‌ संसारमें आकर जीव बना है ।’ और‒

यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ।

(१५/६)

‘मेरा परमधाम ऐसा है, जहाँ जानेके बाद वापस लौटकर आना नहीं पड़ता ।’ तो फिर जीवको भगवान्‌के धाममें जाना चाहिये । जैसे, कोई सन्तान अपने पिताके घर जाती है । इसी प्रकार जीवको भगवान्‌के धाममें जाना चाहिये । यह जीव पुनः संसारमें लौटकर क्यों आता है ?

अब आप ध्यान देकर इस प्रश्नका उत्तर सुनें । जैसे आप हम-सभी यहाँ सत्संगके लिये आये है और समय पूरा होनेपर यहाँसे चल देंगे । यदि जाते समय हमारी चद्दर भूलसे यहाँ छूट गयी या कोई भी चीज यहाँ रह गयी तो हमें उसे लेनेके लिये वापस आना पड़ेगा । इसी तरह इस जीवने संसारकी जिन-जिन चीजोंमें ममता कर ली; चाहे वे घर, परिवार, जमीन, रुपये कुछ भी हों, उनके छूटनेपर ममताके कारण इसे लौटकर आना पड़ता है । संसारमें जिन वस्तुओंको अपना माना है, वहाँ लौटकर आना पड़ेगा । यह शरीर तो सदा रहेगा नहीं, अतः दूसरा शरीर धारण करके आना पड़ेगा । अब किसी भी योनिमें जन्म लें, उसे फिर उन वस्तुओंके पास आना पड़ेगा ।

हमने एक कथा सुनी है । एक बार श्रीगुरु नानकजी महाराज कहीं जा रहे थे । उनके साथ उनके दो-चार शिष्य भी थे । किसी शहरकी धान-मण्डीमेंसे होकर निकले । धान-मण्डीमें गेहूँ, जौ, बाजरा, मोठ, चना आदि अनाजके बहुत-से ढेर पड़े थे । इतनेमें एक बकरा आया और एक मोठकी ढेरीमेंसे मोठ खाने लगा । वहाँपर उस ढेरीका मालिक बैठा था । उसने बकरेके केश पकड़ लिये और उसके मुखपर डंडे मारने लगा । काफी मार-पीटके बाद उसने उसके मुखसे दाने निकलवा लिये । इस दृश्यको देखकर श्रीगुरु नानकजी महाराज हँसे । साथमें चल रहे शिष्योंको आश्चर्य हुआ । उन्होंने पूछा‒‘महाराज ! बकरेके तो मार पड़ रही है और आप हँस रहे हैं । सन्तोंकी हर क्रिया किसी प्रयोजनको लेकर होती है । अतः महाराज ! हमें बतायें, आप हँसे क्यों ?’ तब नानकजी महाराज बोले‒ देखो ! जो मार रहा है, वह बनिया इस बकरेका बेटा है और यह बकरा इस बनियेका बाप है । इससे पहले जन्ममें यह इस दूकानका मालिक था । इस दूकानमें इसका बैठनेका स्वभाव था । भीतर दूकान और बाहर जो यह बरामदा है, इसीमें यह बैठा रहता था । इसलिये आजकल भी रातमें यह बकरा यहाँ ही बैठता है । इसको याद नहीं है । लेकिन इसको यह जगह ही अच्छी लगती है । इसने बड़े-बड़े देवताओंकी मनौती करके इस पुत्रको पाया था । कमाया हुआ बहुत-सा धन इसी बकरेका है, लेकिन आज थोड़े-से दानोंमें भी इसका हिस्सा नहीं है । खानेके लिये आता है तो मार पड़ती है और मुँहसे दाने निकाल लिये जाते हैं । लोग फिर भी संग्रह करते हैं ।’