।। श्रीहरिः ।।

  


आजकी शुभ तिथि–
   आश्विन कृष्ण अष्टमी, वि.सं.-२०७८, बुधवार
                             
    जीव लौटकर क्यों आता है ?


यह जीव किसी भी वस्तु या जगहमें आसक्ति, प्रियता या वासना रखेगा, उसे मृत्युके बाद चाहे कोई भी योनि मिले, उसी जगह आना पड़ेगा । पशु-पक्षी, चिड़िया, चूहे आदि उसी घरमें जाते हैं । जिसमें पूर्व-जन्ममें राग था ।

कारणं गुणसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ।

(गीता १३/२१)

ऊँच-नीच योनियोंमें जन्म होनेमें कारण है‒गुणोंका संग, आसक्ति, प्रियता, वासना । जो जड़ चीजोंमें प्रियता रखेगा, उसको लौटकर आना पड़ेगा । जिसकी जड़ वस्तुओंमें आसक्ति या प्रियता नहीं और भगवान्‌के साथ प्रेम है, वह भगवान्‌को प्राप्त हो जाता है । इतनी विलक्षणता है कि अन्तकालमें भी भगवान्‌का स्मरण करनेवाला निःसन्देह भगवान्‌को प्राप्त हो जाता है । अन्तकालमें भी याद कर ले तो बेडा पार है‒

अन्तकाले च मामेव   स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् ।

यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥

(गीता ८/५)

अन्तकालके स्मरणसे भी यह जीव भगवान्‌को प्राप्त हो जाता है, क्योंकि इसका भगवान्‌से घनिष्ठ सम्बन्ध है । भगवान्‌का अंश होनेके कारण यह भगवान्‌के सम्मुख होते ही भगवान्‌को प्राप्त हो जाता है । इसमें सन्देहकी कोई बात नहीं । फिर यह लौटकर क्यों आता है ? इसमें खास कारण यह है कि संसारकी चीजोंमें अपनापन कर लेनेसे इसको विवश होकर यहाँ आना पड़ता है । इस (जीव)-का मन संसारमें खिंच जाता है तो भगवान्‌ फिर वैसा ही मौका दे देते हैं अर्थात्‌ जन्म दे देते हैं । इसलिये जीवको उचित है कि यहाँ रहता हुआ भी निर्लेप रहे । भीतरमें ममता, आसक्ति करके फँसे नहीं ।

ऐसा माने कि ठाकुरजीका संसार है, ठाकुरजीका परिवार है, ठाकुरजीके रुपये हैं, ठाकुरजीका घर है । हम तो ठाकुरजीका काम करते हैं । मुनीमकी तरह रहें । मालिक न बनें । जो काम करें उसका अहसान ठाकुरजीपर रखें कि महाराज ! हम आपका काम करते हैं । हमारा यहाँ क्या है ? परिवार आपका, घर आपका, धन आपका, जमीन आपकी । यह ही सच्ची बात है, क्योंकि जब जन्मे थे, नंग-धड़ंग आये थे । एक धागा भी पासमें नहीं था और मरेंगे तो यह लाश भी यहीं पड़ी रहेगी । लाशको भी साथ नहीं ले जा सकते, तो धन-सम्पत्ति, वैभव-परिवार साथमें ले जा सकेंगे क्या ?

साथमें लाये नहीं, साथमें ले जा सकते नहीं और यहाँ रहते हुए भी इन सबको अपने मन-मुताबिक बना सकते नहीं । आपका प्रत्यक्ष अनुभव है कि आपके लड़के-लड़की आपका कहना नहीं मानते, स्त्रियाँ नहीं मानती कुटुम्बी-जन नहीं मानते । तो सिद्ध हुआ कि आप इनको अपने मन-मुताबिक नहीं बना सकते और जितने दिन चाहें साथमें रख नहीं सकते, बदल नहीं सकते । स्वभाव बदल दें या रंग बदल दें‒यह आपके आपके हाथकी बात नहीं । फिर भी इनको कहते हैं‒‘मेरी चीजें’ । ये ‘मेरे’ कैसे हुए, बताइये ? अतः मानना ही होगा कि ये सब मेरे नहीं है; भगवान्‌के दिये हुए हैं और भगवान्‌के हैं ।