।। श्रीहरिः ।।

              


आजकी शुभ तिथि–
   आश्विन शुक्ल षष्ठी, वि.सं.-२०७८, सोमवार
                             

नामजप और सेवासे भगवत्प्राप्ति


एक बड़ी मार्मिक बात है, कृपया ध्यान दें । भगवान्‌से हमें कुछ नहीं लेना है । भगवान्‌ने तो कृपा करके मानव-शरीर दे दिया, अब और क्या चाहते हो उनसे ?

कबहुँक करि करुना नर देही । देत ईस बिनु हेतु सनेही ॥

(मानस, उत्तर ४४/६)

प्रभुने कम कृपा नहीं की है । देवताओंके लिये भी दुर्लभ शरीर दे दिया । इसके साथ ही यत्किंचित् पारमार्थिक रूचि हो गयी, यह कोई मामूली चीज नहीं है । हजारों-लाखों आदमियोंके भीतर भी भगवान्‌की तरफ रूचि नहीं है, पर वह रूचि हमारेमें हो गयी‒यह विलक्षण बात है । भगवान्‌के दरबारमें सबसे दुर्लभ और बढ़िया-से-बढ़िया चीज है‒भगवान्‌के प्यारे भक्त ! भगवान्‌ कहते हैं‒

साधवो हृदयं मह्यं      साधूनां हृदयं त्वहम् ।

मदन्यत् ते न जानन्ति नाहं तेभ्यो मनागपि ॥

(श्रीमद्भागवत ९/४/६८)

‘सन्त मेरे हृदय हैं और मैं उन सन्तोंका हृदय हूँ । वे मेरे सिवाय कुछ नहीं जानते तथा मैं भी उनके सिवाय और कुछ नहीं जानता ।’

ऐसे प्यारे भगवान्‌के प्यारे सन्तोंकी वाणी, उनका संग, उनका इतिहास हमारेको मिल जाय तो यह भगवान्‌की कम कृपा है क्या ? हनुमान्‌जी लंकामें विभीषणजीसे मिलते हैं तो वहाँ विभीषणजी कहते हैं‒

अब मोहि भा भरोस हनुमंता । बिनु हरि कृपा मिलहिं नहीं संता ॥

(मानस, सुन्दर ७/४)

हनुमान्‌जी ! अब मुझे भरोसा हो गया कि भगवान्‌ मेरेपर कृपा करेंगे । आप मिल गये, इससे यह मालूम देता है कि भगवान्‌ भी मिलेंगे ! भगवान्‌ने अपने दरबारकी बढ़िया-से-बढ़िया चीज दे दी है, फिर भी भगवान्‌से माँगते हैं कि वह दो, अमुक चीज दो ! आप समझते ही नहीं कि भगवान्‌से क्या माँगा जाय । भगवान्‌की दी हुई वस्तुका मूल्य भी नहीं आँक सकते ।

एक मार्मिक बात बताता हूँ । सज्जनो ! आपसे भगवान्‌ भी मिलें, भगवान्‌के अभावकी पूर्ति भी आपसे हो‒ऐसी विलक्षण योग्यता, अधिकार भगवान्‌ने आपको दिया है ! आपने संसारमें जितनी ममता कर ली, उतनी भगवान्‌के साथ आत्मीयता छूट गयी अर्थात्‌ उतना भगवान्‌में अभाव आ गया ! किसी माँका बालक दूसरेकी माँकी गोदमें चला जाय और अपनी माँकी गोदमें न आये, माँको याद ही न करे, पसन्द ही न करे, तो क्या माँको खुशी होगी ? ऐसे ही हम भगवान्‌को छोड़कर संसारमें लग गये हैं । अगर हम भगवान्‌में लग जायँ, भगवान्‌के सम्मुख हो जायँ,  तो भगवान्‌ निहाल हो जायँगे । हमारी भगवान्‌में श्रद्धा नहीं है, प्रेम नहीं है, अपनापन नहीं है तो उतना भगवान्‌में अभाव आ गया । हम भगवान्‌में श्रद्धा, प्रेम, अपनापन करते हैं तो उस अभावकी पूर्ति हो जाती है । इस प्रकार भगवान्‌के भी अभावकी पूर्ति करनेकी योग्यतावाले मनुष्य-शरीरको पाकर भी हम नाशवान्‌ पदार्थोंके पीछे-पीछे दौड़ते हैं, जो हमारी कदर करते ही नहीं !