।। श्रीहरिः ।।

                


आजकी शुभ तिथि–
   आश्विन शुक्ल अष्टमी, वि.सं.-२०७८, बुधवार
                             

नामजप और सेवासे भगवत्प्राप्ति


भगवान्‌ राजी कैसे हों ? भगवान्‌से भी कुछ नहीं लेना है, प्रत्युत देना है । जैसे बच्चा माँसे दूर चला जाय तो माँको बहुत याद आती है । माताओंकी ऐसी बातें मैंने सुनी हैं । दीपावली, अक्षय तृतीया आदि त्यौहार आते हैं तो माताएँ कहती हैं कि क्या बनायें ? लड़का तो घरपर है नहीं, अच्छी चीज बनाकर किसको खिलायें ? लड़का घरपर होता तो माताएँ बढ़िया-बढ़िया चीजें बनाती हैं और लड़केको खिलाकर खुश होती हैं । ऐसे ही भगवान्‌के लड़के हमलोग चले गये विदेशमें ! अब भगवान्‌ कहते हैं कि क्या करूँ ? क्या दूँ ? लड़का तो घरपर ही नहीं है ! वह तो धन-सम्पत्तिकी तरफ लगा हुआ है, खेल-कूदमें लगा हुआ है !

सनमुख होई जीव मोहि जबहीं ।

जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ॥

(मानस, सुन्दर४४/२)

परन्तु आज सम्मुख हो रहे हैं रुपयों-पैसोंके, वस्तुओंके, कुटुम्बके, आरामके, मान-आदरके, स्वाद-शौकीनीके !

जो संसारसे आशा रखता है और भगवान्‌का भजन भी करता है, वह भजन नहीं करनेवालेकी अपेक्षा तो अच्छा है । किसी तरहसे भगवान्‌में मन लग जाय तो बड़ा अच्छा है‒‘तस्मात् केनाप्युपायेन मनः कृष्णे निवेशयेत्’ (श्रीमद्भागवत ७/१/३१) । परन्तु यदि आप नाम-जपका माहात्म्य तत्काल देखना चाहते हैं तो वह भी देखनेमें आयेगा, जब आप सच्चे हृदयसे भगवान्‌में लग जायँगे । जिन लोगोंने भजन किया है, उन लोगोंमें विलक्षणता आयी है । हमने ऐसे कई देखे हैं कि नाम-जपसे पहले उनकी क्या अवस्था थी और नाम-जपमें लगनेके बाद उनकी क्या अवस्था हो गयी ! परन्तु वे लगनसे जपते थे ।

जब मैं पढ़ता था, उन दिनोंकी बात है । रात्रिके दस बजेतक पाठ वगैरह होता था । एक दिन रात्रिके दस बजेके बाद मैं बाहर गया । जंगलमें एक सरोवर था, उसके किनारेपर एक साधु बैठे थे, जो हमारे परिचित थे । वे राम-राम कह रहे थे और रो रहे थे । बात क्या है ? भगवद्‌भजनके बिना बहुत-से दिन खाली चले गये, अब क्या करूँ ? वह गया हुआ समय सार्थक कैसे बने ? ऐसे विचारसे उनके आँसू टपक रहे थे । जो समय हाथसे चला गया, वह पीछे नहीं आयेगा । आज साक्षात् भगवान्‌ मिल जायँ तो भी गये हुए समयकी पूर्ति नहीं होगी ! अगर समय खाली न जाता तो भगवान्‌ पहले ही मिल जाते, इतने दिन हम भगवान्‌के वियोगमें न रहते !

एक भी स्वास  खाली  खोय न  खलक  बिच,

कीचड़  कलंक  अंक  धोय  ले  तो  धोय  ले ।

उर  अँधियारो  पाप  पुंज  सु  भरोयो   देख,

ज्ञान की चिरागां चित्त  जोय ले तो जोय ले ।

मिनखा  जनम  फिर  ऐसो  न  मिलेगो  मूढ़,

परम  प्रभू  से  प्यारो  होय  ले  तो  होय  ले ।

यह  छिनभंगु  देह  तामे   जन्म  सुधारबो  है,

बिजली के झपाके मोती पोय ले तो पोय ले ॥

जब बिजलीका प्रकाश होता है, उस समय मोती पिरो ले, नहीं तो फिर अँधेरा हो जायगा । ऐसे ही इस मनुष्य-शरीरके रहते-रहते भजन कर ले, भगवान्‌को प्राप्त कर ले । यह मौका फिर नहीं मिलेगा !