।। श्रीहरिः ।।

                                                         


आजकी शुभ तिथि–
   मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.-२०७८, मंगलवार
          मनुष्य-जीवनकी सफलता


शरीर-निर्वाहके लिये वस्तुओंकी आवश्यकता होती है, रुपयोंकी नहीं । कारण कि वस्तुएँ स्वयं काम आती हैं, पर रुपये स्वयं काम नहीं आते । रुपये वस्तुओंके द्वारा काम आते हैं, अतः रुपयोंसे वस्तुएँ विशेष आवश्यक हैं । वस्तुओंसे भी आवश्यक शरीर है । शरीरके लिये ही वस्तुएँ होती हैं । शरीरका जो महत्व है, वह वस्तुओंका नहीं है । पशु आदिके शरीर भी बहुत कामके हैं; क्योंकि उनसे मनुष्यके निर्वाहकी कई वस्तुएँ पैदा होती हैं; जैसेगायसे दूध, भेड़से ऊन आदि । परन्तु उनसे भी बढ़कर है मनुष्यका शरीर, जिससे यह लोक और परलोक दोनों सुधर सकते हैं ।

शास्त्रोंमें मनुष्य-शरीरकी बड़ी महिमा आती है । इस शरीरमें बढ़िया चीज क्या है ? इसमें बढ़िया चीज हैविवेक । जिससे सार-असार, नित्य-अनित्य, कर्तव्य-अकर्तव्यइन बातोंका ठीक तरहसे बोध होता है, उसे ‘विवेक’ कहते हैं । यह विवेक सर्वोपरि है । इस विवेककी ही महिमा है । यह विवेक जितना अधिक होगा, उतना ही मनुष्य श्रेष्ठ होगा । व्यवहारमें भी किसी मनुष्यका अधिक आदर होता है तो उसमें विवेक ही कारण है । मनुष्यमें विवेक-शक्ति जितनी अधिक जाग्रत्‌ होगी, उतना ही अधिक वह आदरणीय हो जायगा । कारण कि विवेक-शक्तिसे वह हरेक बातका ठीक-ठीक निर्णय करेगा । इस विवेक-शक्तिकी महिमा मनुष्यसे भी बढ़कर है । कारण कि विवेक-शक्ति होनेसे ही मनुष्य-शरीरकी इतनी महिमा है । मनुष्यके इस ढाँचे (शरीर)-की आकृतिकी महिमा नहीं है ।

विवेकसे भी बढ़कर क्या है ? विवेकसे भी बढ़कर हैपरमात्मा । विवेकके द्वारा सार-असार, नित्य-अनित्यको समझकर नित्य, निर्विकार और सर्वोपरि परमात्मतत्त्वको प्राप्त कर लेनेमें ही मनुष्य-शरीरकी सफलता है । उसे प्राप्त न करके सांसारिक भोगोंमें ही समय लगा दिया तो मनुष्य-शरीर सफल नहीं हुआ । भोगका सुख तो पशु-पक्षियोंको भी मिलता है, वे भी आरामसे रहते है । मैंने ऐसे कुत्तोंको देखा है, जिनकी देखभालके लिये आदमी रहते हैं । उनके रहनेके कमरोंमें गर्मीके दिनोंमें खसखसके टाटे लगे रहते हैं, बैठनेके लिये बहुत अच्छा बिछौना होता है, ऊपर पंखे लगे रहते हैं, टहलनेके लिये जाते हैं तो आदमी साथ रहते हैं, मोटर, हवाई जहाजमें वे यात्रा करते हैं, आदि । मनुष्योंमें भी बहुत कम आदमियोंको ऐसा आराम मिलता है । अतः सांसारिक सुखभोग और आराम मिलना होगा तो कुत्ते, गधे आदिकी योनिमें भी मिल जायगा । परन्तु परमात्मतत्त्वकी प्राप्ति इस मनुष्यमें ही हो सकती है । मनुष्यको छोड़कर दूसरे जितने भी पशु-पक्षी हैं, वे परमामतत्त्वको समझ भी नहीं सकते ।

पशुओंमें सबसे उत्तम गाय मानी गयी है । गोबर और गोमूत्रसे पवित्रता आती है, रोगोंका नाश होता है । गाय पृथ्वीको पुष्ट करती है और पृथ्वी गायको पुष्ट करती हैइन दोनोंकी पुष्टिसे सब मनुष्योंका पालन होता है, उनके शरीरोंका निर्वाह होता है । इतनी श्रेष्ठ गायको भी आप परमात्मतत्त्वके विषयमें नहीं समझा सकते कि परमात्मा ऐसे हैं ।