।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   वैषाख शुक्ल द्वादशी, वि.सं.-२०७९, शुक्रवार

गीतामें श्रीकृष्णकी भगवत्ता


नरो  न  योगी  न   तु  कारकश्च  नांशावतारो  न  नयप्रवीणः ।

भवाश्रयत्वाच्च गुणाश्रयत्वात्कृष्णस्तु साक्षाद् भगवान्‌ स्वयं हि ॥

शास्त्रमें भगवत्ताके लक्षण इस प्रकार बताये गये हैं‒

उत्पत्तिं  प्रलयं  चैव   भूतानामागतिं   गतिम् ।

वेत्ति विद्यामविद्यां च स वाच्यो भगवानिति ॥

(विष्णुपुराण ६ । ५ । ७८)

‘जो सम्पूर्ण प्राणियोंके उत्पत्ति-प्रलय एवं आवागमनको और विद्या-अविद्याको जानता है, उसका नाम भगवान् है ।’

गीताको देखनेसे पता चलता है कि भगवत्ताके ये सभी लक्षण भगवान् श्रीकृष्णमें विद्यमान हैं; जैसे‒

भगवान् गीतामें कहते हैं‒महासर्गके आदिमें मैं अपनी प्रकृतिको वशमें करके सम्पूर्ण प्राणियोंकी उत्पत्ति करता हूँ और महाप्रलयके समय सम्पूर्ण प्राणी मेरी प्रकृतिको प्राप्त हो जाते हैं (९ । ७-८) । ब्रह्माजीके दिनके आरम्भमें (सर्गके आदिमें) सम्पूर्ण प्राणी ब्रह्माजीके सूक्ष्मशरीरसे पैदा हो जाते हैं और ब्रह्माजीकी रातके आरम्भमें (प्रलयके समय) सम्पूर्ण प्राणी ब्रह्माजीके सूक्ष्मशरीरमें लीन हो जाते हैं । (८ । १८-१९) । इस तरह भगवान् श्रीकृष्ण सम्पूर्ण प्राणियोंके उत्पत्ति-प्रलयको जानते हैं ।

भगवान् कहते हैं कि मैं भूतकालके, वर्तमानके और भविष्यके सभी प्राणियोंको जानता हूँ (७ । २६) । जो स्वर्गप्राप्तिकी इच्छासे यज्ञ, दान आदि शुभकर्म करके स्वर्गादि लोकोंमें जाते हैं, वे उन लोकोंमें अपने पुण्योंका फल भोगकर पुनः मृत्युलोकमें आ जाते हैं (९ । २०-२१) । शुक्ल और कृष्ण‒ये दो गतियाँ (मार्ग) हैं । इसमेंसे शुक्लगतिसे गया हुआ प्राणी लौटकर नहीं आता और कृष्णगतिसे गया हुआ प्राणी लौटकर आता है (८ । २६) । आसुर स्वभाववाले प्राणी बार-बार आसुरी योनियोंमें जाते हैं और फिर वे उससे भी अधम गतिमें अर्थात् भयंकर नरकोंमें चले जाते हैं (१६ । १९-२०) । इस तरह भगवान् श्रीकृष्ण सम्पूर्ण प्राणियोंके आवागमनको जानते हैं ।

अर्जुन भगवान्‌से कहते हैं कि गतियोंके विषयमें आपके सिवाय दूसरा कोई नहीं बता सकता, आप ही मेरे गतिविषयक सन्देहको मिटा सकते हैं (६ । ३९) । अर्जुनके इस कथनसे भी सिद्ध होता है कि प्राणियोंकी गतियोंको, आवागमनको भगवान् श्रीकृष्ण पूर्णतया जानते हैं ।

भगवान् कहते हैं कि मैं सम्पूर्ण प्राणियोंमें व्याप्त हूँ और सम्पूर्ण प्राणी मेरेमें स्थित हैं तथा मैं सम्पूर्ण प्राणियोंमें नहीं हूँ और सम्पूर्ण प्राणी मेरेमें नहीं हैं, अर्थात् सब कुछ मैं-ही-मैं हूँ (९ । ४-५)‒यह विद्या (राजविद्या) है । आसुर भाववाले मूढ़ मनुष्य मेरे शरण नहीं होते (७ । १५)‒यह अविद्या है । इस तरह भगवान् श्रीकृष्ण विद्या और अविद्याको जानते हैं ।

इस प्रकार सम्पूर्ण प्राणियोंके उत्पत्ति-प्रलय, आवागमन और विद्या-अविद्याको जाननेके कारण श्रीकृष्ण साक्षात् भगवान् हैं‒यह सिद्ध होता है ।