।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
    आषाढ़ कृष्ण अष्टमी, वि.सं.-२०७९, मंगलवार

गीतामें आहारीका वर्णन


रस्यस्निग्धादिषु प्रीतिः सात्त्विकानां स्वभावतः ।

तीक्ष्णरूक्षादिषु  प्रीती   राजसानां   सुदुःखदा ॥

यातयामादिषु   प्रीतिस्तामसानां    स्वभावजा ।

आहारिणः    परीक्षार्थमाहारा    वर्णितास्ततः ॥

मनुष्योंकी जो स्वाभाविक वृत्ति, स्थिति, भाव बनता है, उसके बननेमें कई कारण होते हैं । उनमें आहार भी एक कारण है । कहावत भी है कि ‘जैसा खाये अन्न, वैसा बने मन । अतः आहार जितना सात्त्विक होता है, मनुष्यकी वृत्ति उतनी ही सात्त्विक बनती है अर्थात् सात्त्विक वृत्तिके बननेमें सात्त्विक आहारसे सहायता मिलती है ।

गीतामें आहारका स्वतन्त्ररूपसे वर्णन नहीं हुआ है, प्रत्युत आहारी (व्यक्ति)-का वर्णन होनेसे आहारका वर्णन हुआ है; जैसे‒सात्त्विक व्यक्तिको प्रिय होनेसे सात्त्विक आहारका, राजस व्यक्तिको प्रिय होनेसे राजस आहारका और तामस व्यक्तिको प्रिय होनेसे तामस आहारका वर्णन हुआ है (१७ । ८‒१०) । अतः गीतामें जहाँ-जहाँ आहारकी बात आयी है, वहाँ-वहाँ भगवान्‌ने आहारीका ही वर्णन किया है; जैसे‒‘नियताहाराः’ (४ । ३०) पदमें नियमित आहार करनेवालेका, ‘नात्यश्रतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः’ (६ । १६) पदोंमें अधिक खानेवाले और बिल्कुल न खानेवालेका, ‘युक्ताहारविहारस्य’ (६ । १७) पदमें नियमित खानेवालेका, ‘यदश्रासि’ (९ । २७) पदमें भोजनके पदार्थको भगवान्‌के अर्पण करनेवालेका, और ‘लघ्वाशी’ (१८ । ५२) पदमें अल्प भोजन करनेवालेका वर्णन किया गया है ।

गीतामें जो तीनों (सत्त्व, रज और तम) गुणोंका वर्णन हुआ है, उनमें भी तारतम्य रहता है । सात्त्विक मनुष्यमें सत्त्वगुणकी प्रधानता होनेपर भी साथमें राजस-तामस भाव रहते हैं । राजस मनुष्यमें रजोगुणकी प्रधानता होनेपर भी साथमें सात्त्विक-तामस भाव रहते हैं । तामस मनुष्यमें तमोगुणकी प्रधानता होनेपर भी साथमें सात्त्विक-राजस भाव रहते हैं । इसका कारण यह है कि सम्पूर्ण सृष्टि त्रिगुणात्मक है (१८ । ४०) । दो गुणोंको दबाकर एक गुण प्रधान होता है (१४ । १०) । अतः सात्त्विक मनुष्यको सात्त्विक पदार्थ स्वाभाविक प्रिय लगनेपर भी तीनों गुणोंका मिश्रण रहनेसे अथवा पहले राजस-तामस पदार्थोंके सेवनके अभ्याससे अथवा शरीरमें किसी पदार्थकी कमी होनेसे अथवा शरीर बीमार हो जानेसे कभी-कभी राजस-तामस भोजनकी इच्छा हो जाती हे । जैसे, खूब नमक या नमकीन पदार्थ पानेकी मनमें आ जाती है अथवा अधपका साग आदि पदार्थ पानेकी मनमें आ जाती है ।

राजस मनुष्यको राजस पदार्थ स्वाभाविक प्रिय लगनेपर भी तीनों गुणोंका मिश्रण रहनेसे अथवा पहले सात्त्विक-तामस पदार्थोंके सेवनके अभ्याससे अथवा अन्य किसी कारणसे कभी-कभी सात्त्विक-तामस पदार्थोंकी इच्छा हो जाती है । जैसे, पहले दूध, काजू, पिस्ता, बादाम आदिका सेवन किया है, तो बीमारीके कारण शरीर कमजोर होनेपर बल बढ़ानेके लिये उन सात्त्विक पदार्थोंकी इच्छा हो जाती है । ऐसे ही कभी-कभी लहसुन, प्याज आदि तामस पदार्थोंकी भी इच्छा हो जाती है ।

तामस मनुष्यको तामस पदार्थ स्वाभाविक प्रिय लगनेपर भी शरीरमें कमजोरी आ जाने आदि कारणोंसे दूध, घी आदि सात्त्विक तथा खट्टे, नमकीन आदि राजस पदार्थोंकी इच्छा हो जाती है ।