।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र कृष्ण पंचमी, वि.सं.२०७१, मंगलवार 
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

ये गुण किसी साधनसे नहीं होते, आपकी कृपासे ही होते हैं । मैं जो काम, क्रोध और लोभमें फँसा हूँ, इसमें कारण है कि आपने कृपा नहीं की । मेरा दोष नहीं है इसमें । तुम्हरी कृपाँ पाव कोइ कोई ॥’ आपकी कृपासे कोई-कोई पाता है । इसलिये यह हमारेमें अवगुण नहीं, यह अवगुण आपका ही है । विषयी आदमी भोगोंमें फँसे रहते हैं और कह देते हैं‒भगवान्‌की माया है । भगवान्‌की मायाने ऐसा कर दिया । इस कारण हम फँस गये, क्या करें ? हम तो दूधके धोये शुद्ध हैं । ये जो विषयी-पामर जीव संसारमें रात-दिन भोगोंमें लगे रहते हैं, वे रामजीके ऊपर ही दोषारोपण करते हैं कि हम क्या करें ? बताओ जीव बेचारे क्या करें ? यह तो भगवान् कृपा करे, तब छूटे ।

ऐसे वचन विभीषण या निषादराज गुहके प्रसंगमें कहीं नहीं आयेंगे, क्योंकि ऐसी बात साधक और सिद्ध भक्त नहीं कहते । विषयोंमें डूबे हुए पामर जीव ही ऐसा कहते हैं । निषादराज गुहको तो भगवान्‌से मिलनेपर बड़ा दुःख होता है वह कहता है‒

कैकयनंदिनि  मंदमति  कठिन  कुटिलपनु  कीन्ह ।
जेहि रघुनंदन जानकिहि सुख अवसर दुखु दीन्ह ॥
(मानस, अयोध्याकाण्ड, दोहा ९१)

कैकयराजकी पुत्री मंदमति कैकेयीने बड़ी ही कुटिलता की है, जो रघुनन्दन श्रीरामजीको और जानकीजीको सुखके अवसरपर दुःख दिया है, वनवास दे दिया, इस बातसे बड़ा दुःख हुआ । लक्ष्मणजीने वहाँ समझाया कि यह दुःख-सुख कुछ नहीं है ऐसे लक्ष्मण-गीता’ का वहाँ उपदेश हुआ है । रामजीसे जब निषादराज मिला तो उसने कहा‒‘महाराज ! आप हमारे घरपर पधारो । यह आपका ही घर है, बाल-बच्चे सब आपके ही हैं । आप कृपा करो, घरपर पधारों ।’ तब भगवान्‌ने कहा‒‘भाई ! इस समय हम गाँवमें किसीके घरपर नहीं जा सकते; क्योंकि हमारी माता कैकेयीने वनवास दे दिया है‒तापस बेष बिसेषि उदासी चौदह बरिस रामु बनबासी ॥’ चौदह वर्षका वनवास है, इस कारण हम गाँवमें नहीं जाते हैं । जब विभीषण भगवान्‌के शरण आया तो कहने लगा‒

श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥
(मानस, सुन्दरकाण्ड, दोहा ४५)

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे