।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा, वि.सं.-२०७४, रविवार
         भगवान्‌ आज ही मिल सकते है



(गत ब्लॉगसे आगेका)

भगवान्‌ कैसे मिलें ? कैसे मिलें ? ऐसी अनन्य लालसा हो जायगी तो भगवान्‌ जरुर मिलेंगे, इसमें सन्देह नहीं है । आप और कोई इच्छा न करके, केवल भगवान्‌की इच्छा करके देखो कि वे मिलते है कि नहीं मिलते हैं ! आप करके देखो तो मेरी भी परीक्षा हो जायगी कि मैं ठीक कहता हूँ कि नहीं ! मैं तो गीताके बलपर कहता हूँ । गीतामें भगवान्‌ने कहा हैये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्’ (/११) जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार आश्रय देता हूँ । हमें भगवान्‌के बिना चैन नहीं पड़ेगा । हम भगवान्‌के बिना रोते हैं तो भगवान्‌ भी हमारे बिना रोने लग जायँगे ! भगवान्‌के समान सुलभ कोई है ही नहीं ! भगवान्‌ कहते हैं

अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः ।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः ॥
                                         (गीता ८ । १४)
                                              
हे पृथानन्दन ! अनन्य चित्तवाला जो मनुष्य मेरा नित्य-निरन्तर स्मरण करता है, उस नित्य-निरन्तर मुझमें लगे हुए योगीके लिये मैं सुलभ हूँ अर्थात उसको सुलभतासे प्राप्त हो जाता हूँ ।

भगवान्‌ने अपनेको तो सुलभ कहा है, पर महात्माको दुर्लभ कहा है

बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यन्ते ।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥
                                                                   (गीता ७ । १९)

बहुत जन्मोंके अन्तिम जन्ममें अर्थात् मनुष्यजन्ममें सब कुछ परमात्म ही हैं’—इस प्रकार जो ज्ञानवान मेरे शरण होता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है ।

हरि दुरलभ नहिं जगत में,    हरिजन दुरलभ होय ।
हरि हेर्‌याँ सब जग मिलै, हरिजन कहिं एक होय ॥

भगवान्‌के भक्त तो सब जगह नहीं मिलते, पर भगवान्‌ सब जगह मिलते हैं । भक्त जहाँ भी निश्चय कर लेता है, भगवान्‌ वहीं प्रकट हो जाते हैं

आदि अंत जन अनंत    के,      सारे   कारज सोय ।
जेहि जिव ऊर नहचो धरै, तेहि ढिग परगट होय ॥

प्रह्लादजीके लिये भगवान्‌ खम्भेमेंसे प्रकट हो गये

प्रेम बदौं प्रहलादहिको, जिन पाहनतें परमेस्वरु काढे ॥
                                                              (कवितावली ७/१२७)
   
    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
—‘मानवमात्रके कल्याणके लिये’ पुस्तकसे