भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय
(गत ब्लॉगसे आगेका)
८. भगवान्को अपना मानना
(१९)
मेरा कुछ नहीं है और भगवान् मेरे हैं‒ये दो बातें
अगर आप स्वीकार कर लें तो बेड़ा पार है ! बहुत जल्दी आपकी आध्यात्मिक उन्नति हो जायगी
। अन्य उपायोंकी अपेक्षा यह उपाय
बहुत जल्दी सिद्धि करनेवाला है । ‘मेरा कुछ नहीं है’‒यह होनेपर ‘मेरेको कुछ नहीं चाहिये’‒यह अपने-आप हो जायगा । मेरी कोई चीज मानते ही ‘चाहिये’
पैदा हो जायगी । शरीर मेरा है तो रोटी भी चाहिये,
कपड़ा भी चाहिये, मकान भी चाहिये, औषध भी चाहिये । ‘चाहिये-चाहिये’ की लाइन लग जायगी । जब मेरी वस्तु कोई है ही नहीं तो फिर मेरेको
क्या चाहिये ? मेरा कुछ नहीं है तो फिर मौज हो जायगी !
जो तत्त्वज्ञान चाहते हैं,
उनके लिये तो यह बहुत ही सुगम बात है कि अपनी कोई चीज है ही
नहीं । मात्र इतना माननेसे कितना ही झंझट मिट जायगा । पढ़ना,
सुनना, समझना, श्रवण करना, मनन करना, निदिध्यासन करना, ध्यान करना, समाधि करना, सविकल्प-निर्विकल्प करना,
सबीज-निर्बीज करना,
सब आफत मिट जायगी !
प्राप्त वस्तुमें ममता न करे और अप्राप्त वस्तुकी
इच्छा न करे । मेरा कुछ नहीं है‒यह जान लें और भगवान् मेरे हैं‒यह मान लें । माननेसे
भगवान् माने हुए नहीं रहेंगे, प्रत्युत प्राप्त हो जायँगे । सारा संसार भगवान्का है और भगवान् मेरे हैं‒इस तरह संसारके
साथ भी हमारा सम्बन्ध हुआ, पर बीचमें भगवान् आ गये;
अतः संसारका विष नहीं चढ़ेगा,
अभिमान नहीं आयेगा । जैसे,
तालाबमें डुबकी लगाते हैं तो सैकड़ों मन जल ऊपर आ जाता है,
पर भार होता ही नहीं । पर बाहर निकलनेपर एक घड़ा भी उठा लें तो
भार हो जाता है । जहाँ ममता की और भार हुआ ! ममता नहीं की तो भार नहीं हुआ । ममता न हो तो सब संसार होते हुए भी कोई बाधा नहीं है । मेरा मान
लिया तो फँस गये !
हम भगवान्के हैं, भगवान् हमारे हैं । इतनी बातसे बहुत जल्दी भगवान्की प्राप्ति
हो जायगी । छोटी-बड़ी सब भूल मिट जायगी; क्योंकि अपनी असली जगह आ गये !
(२०)
उद्धारके लिये मुझे सबसे बढ़िया यह बात मालूम दी कि ‘हम भगवान्के हैं’ । हम भगवान्के हैं‒ऐसा मान लो तो इसको मैं सबसे बढ़िया भिक्षा
मानता हूँ । आप उम्रभर मुझे भिक्षा दो तो उसमें इतना फायदा
नहीं है, जितना इस एक बातको माननेमें है कि ‘मैं
भगवान्का हूँ’ ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे
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