।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद कृष्ण द्वादशी, वि.सं.–२०७५, शुक्रवार
                 दुर्गतिसे बचो



तुलसीदासजी महाराजको भगवद्दर्शनकी लगन लगी हुई थी; अतः उन्होंने कहा‒मेरेको भगवान् रामके दर्शन करा दो ! प्रेतने कहा‒दर्शन तो मैं नहीं करा सकता, पर दर्शनका उपाय बता सकता हूँ । तुलसीदासजीने कहा‒उपाय ही सही, बता दो । उसने कहा‒अमुक स्थानपर रातमें रामायणकी कथा होती है । वहाँपर कथाको सुननेके लिये हनुमान्‌जी आया करते हैं । तुम उनके पैर पकड़ लेना, वे तुमको भगवान्‌के दर्शन करा देंगे । तुलसीदासजीने कहा‒वहाँ तो बहुत-से लोग आते होंगे, उनमेंसे मैं हनुमान्‌जीको कैसे पहचानूँ ? प्रेतने कहा‒हनुमान्‌जी कोढ़ीका रूप धारण करके और मैले-कुचैले कपड़े पहनकर आते हैं तथा कथा समाप्त होनेपर सबके चले जानेके बाद जाते हैं । तुलसीदासजी महाराजने वैसा ही किया तो उनको हनुमान्‌जीके दर्शन हुए और हनुमान्‌जीने उनको भगवान् रामके दर्शन करा दिये‒

तुलसी नफा पिछानिये, भला बुरा क्या काम ।
प्रेतसे  हनुमत  मिले,    हनुमत  से  श्री  राम ॥

प्रेतोंके नामसे पिण्ड-पानी दिया जाय, ब्राह्मणोंको छाता आदि दिया जाय तो वे वस्तुएँ प्रेतोंको मिल जाती हैं । परन्तु जिसके नामसे छाता आदि दिया जाय, उसके साथी प्रेत अगर प्रबल होते हैं, तो वे बीचमें ही छाता आदि छीन लेते हैं, उसको मिलने ही नहीं देते । अतः बड़ी सावधानीसे, उसके नामसे ही उसके निमित्त ही पिण्ड-पानी आदि दे तो वह सामग्री उसको मिल जाती है ।

प्रश्न‒भूत-प्रेतकी बाधाको दूर करनेके क्या उपाय हैं ?

उत्तर‒प्रेतबाधाको दूर करनेके अनेक उपाय हैं; जैसे‒

(१) शुद्ध पवित्र होकर, सामने धूप जलाकर पवित्र आसनपर बैठ जाय और हाथमें जलका लोटा लेकर ‘नारायणकवच’ (श्रीमद्भागवत, स्कन्ध ६, अध्याय ८ में आये) का पूरा पाठ करके लोटेपर फूँक मारे । इस तरह कम-से-कम इक्कीस पाठ करे और प्रत्येक पाठके अन्तमें लोटेपर फूँक मारता रहे । फिर उस जलको प्रेतबाधावाले व्यक्तिको पिला दे और कुछ जल उसके शरीरपर छिड़क दे ।

(२) गीताप्रेससे प्रकाशित ‘रामरक्षास्तोत्र’ को उसमें दी हुई विधिसे सिद्ध कर ले । फिर रामरक्षास्तोत्रका पाठ करते हुए प्रेतबाधावाले व्यक्तिको मोरपंखोंसे झाड़ा दे ।

(३) शुद्ध-पवित्र होकर ‘हनुमानचालीसा’ के सात, इक्कीस या एक सौ आठ बार पाठ करके जलको अभिमन्त्रित करे । फिर उस जलको प्रेतबाधावाले व्यक्तिको पिला दे ।

(४) गीताके ‘स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या....’ (११ । ३६)‒इस श्लोकके एक सौ आठ पाठोंसे अभिमन्त्रित जलको भूतबाधावाले व्यक्तिको पिला दे ।