(गत ब्लॉगसे आगेका)
भगवान् शंकरके साज विचित्र हैं ! भगवान् शंकरके साज अमंगल हैं, केवल इतनी
ही बात नहीं है, बड़ी आफत है महाराज ! इधर तो
खुदका गहना साँप है और उधर गणेशजीका वाहन चूहा है । इधर आपका वाहन बैल है तो भवानीका वाहन सिंह है । इस प्रकार घरमें एक-दूसरेकी कितनी कलह है, इसको तो वे ही जानें । भगवान् शंकर ही निभाते हैं । विरोधी-ही-विरोधी इकट्ठे हुए हैं सभी । सर्प गलेमें बैठा है तो कार्तिकेयके मयूर है । मयूर साँपको खाने
दौड़े तो साँप चूहेको खाने दौड़े । ऐसे एक-एकके वैरी हैं । यह दशा है घरमें । ऐसे साज हैं अमंगलराशि ! फिर भी मंगलराशि हैं । ‘शिव-शिव’ कहनेसे कल्याण हो जाय, उद्धार हो जाय, मंगल हो जाय । सदा ही सबके मंगल कर दे । इसमें कारण क्या है ? यह नाम महाराजकी कृपा है ।
सनकादि सिद्ध मुनि जोगी ।
नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २६ । २)
शुकदेव मुनि, वही तोता जिसने अमरकथा सुनी और सनकादि सिद्ध, मुनि और योगी लोग हरदम भगवान्का नाम लेते हुए भगवान्के चरणोंमें ही रहते हैं । सनकादि हमेशा पाँच वर्षकी बालक-अवस्थामें ही रहते हैं । ये ब्रह्माजीसे सबसे पहले प्रकट हुए सृष्टि पीछे हुई, ऐसे इतने पुराने; परंतु देखनेमें छोटे-छोटे बच्चे, चार-पाँच वर्षके । वे सदा नग्न रहनेवाले महात्माकी तरह घूमते फिरते हैं ।
सदैव ‘हरिः शरणम्’ ऐसे रटते रहते हैं । वे नामके प्रसादसे ब्रह्मसुख लेते हैं ।
नारद जानेउ नाम प्रतापू ।
जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २६ । ३)
संसारको तो विष्णुभगवान् प्यारे लगते हैं, वे संसारका पालन-पोषण करनेवाले हैं । जैसे बालकको माँ बड़ी प्यारी लगती है ‘मात्रा समं नास्ति शरीरपोषणम्’‒ शरीरका पालन करनेमें माँके समान कोई नहीं है । कोई आफत हो तो बालकको माँ याद आती है । हम भाई-बहन जितने हैं, हम सबका पालन-पोषण माँने ही किया है । माँकी तरह संसारमात्रका पालन करनेवाली शक्ति (माँ) है भगवान् हरि (विष्णु) । नारदजी भगवान्के नामका कीर्तन करते हैं । इस नामके कारण भगवान् विष्णुको और भगवान् शंकरको भी प्यारे लगने लगे । इस प्रकार सबको प्रिय लगनेवाले नारदजी महाराज हो गये ।
नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू ।
भगत सिरोमनि भे प्रहलादू ॥
(मानस, बालकाण्ड दोहा २६ । ४)
नाम महाराजकी कृपासे प्रह्लादजी महाराज भक्तशिरोमणि हो गये । जहाँ भागवतोंको नमस्कार किया, वहाँ प्रहादजीका नाम पहले और गुरुजी‒नारदबाबाका नाम पीछे है ।
प्रह्लादनारदपराशरपुण्डरीक-
व्यासाम्बरीषशुकशौनकभीष्मदादाल्भ्यान् ।
रुक्माङ्गदार्जुनवसिष्ठविभीषणादीन्
पुण्यानिमान्परमभागवतान्स्मरामि ॥
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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