(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक बार नारदजीने पार्वतीके शंका पैदा कर दी कि ‘भोले बाबासे पूछो तो सही कि ये रुण्डमाला जो पहने हुए हैं, यह माला क्या है ?’ पार्वतीने पूछा‒‘महाराज ! आपने यह माला पहन रखी है यह क्या है ?’ शंकर टालने लगे । ‘क्या करोगी पूछकर ?’ पर उसने कहा‒‘नहीं महाराज ! आप बताओ ।’ तो शंकर कहने लगे‒‘बात यह है कि तुम्हारे इतने जन्म हुए हैं । तुम्हारा एक-एक मस्तक लेकर इतनी माला बना ली हमने ।’ पार्वतीको आश्चर्य हुआ । वह बोली‒‘महाराज ! मेरे तो इतने जन्म हो गये और आप वही रहे, इसमें क्या कारण है ?’ उन्होंने बताया कि हम अमरकथा जानते हैं । ‘फिर तो अमरकथा हमें भी जरूर सुनाओ ।’ हठ कर लिया ज्यादा, तो एकान्तमें जाकर कहा‒‘अच्छा तुमको सुनायेंगे, पर हरेकको नहीं सुनायेंगे ।’ भगवान् शंकर सुनाने लगे, भगवान्का नाम और भगवान्का चरित्र
। अमरकथा यही है । भगवान् शंकरने सब पक्षियोंको उड़ानेके लिये तीन बार ताली बजायी । उस समय और दूसरे सभी पक्षी उड़ गये, पर एक सड़ा गला तोतेका अण्डा पड़ा था, उसने इस कथाको सुन लिया । पार्वतीने हठ तो कर लिया; परंतु उसे नींद आ गयी ।
एक तो प्रेमसे सुननेकी स्वयंकी उत्कण्ठा होती है और एक दूसरेकी प्रेरणासे इच्छा की जाती है । पार्वतीने नारदजीकी प्रेरणासे इच्छा की थी, इस कारण नींद आ गयी । जिसके स्वयंकी लगन होती है, उसको नींद नहीं आती । पार्वतीको नींद आ गयी, तोता सुनते-सुनते हाँ-हाँ कहने लगा । भगवान् शंकर मस्त होकर भगवान्का चरित्र कहे जा रहे हैं और उसीमें मस्त हो रहे हैं । आँख खोलकर जब देखा तो तोता बैठा है और सुन रहा है । ‘अरे ! इसने चोरीसे नाम सुन लिया !’ वह वहाँसे उड़ा, शंकरभगवान् पीछे भागे । त्रिशूल हाथमें लिये हुए पीछे-पीछे गये । उस समय वेदव्यासजीकी स्त्री सिर गुँथा रही थी । उसको भी नींद आ रही थी थोड़ी । उसका मुख खुला था । वह मुखके भीतर प्रवेश कर गया । वे ही शुकदेव हुए शुकदेवमुनि जो राजा परीक्षित्को मुक्ति दिलानेवाले, भागवतसप्ताह सुनानेवाले हुए । वे शुकदेवजी माँके पेटमें ही नाम-जपमें लग गये । शुकदेव मुनि इस तरहसे श्रेष्ठ हुए । पार्वतीको अमरकथा सुनायी, जिससे पार्वती भी अमर हो गयी ।
अमर कैसे हों ? ‘नाम-प्रसाद’‒नामकी कृपासे भगवान् शंकर अविनाशी हो गये । उनका साज देखा जाय तो महाराज ! सर्प है, मुर्देकी राख है, मुण्डमाला है । ऐसा अमंगल साज है, विचित्र ढंगका साज है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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