(गत ब्लॉगसे आगेका)
रचि महेस निज मानस राखा
।
पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा ३५ । ११)
रामचरितको रचकर अपने मनमें ही रखा और अवसर पाकर पार्वतीको उपदेश
दिया । वाल्मीकिबाबाने देखा कि रामायणको रखनेवाले भगवान् शंकर हैं,
इसलिये सब-की-सब सौ करोड़ श्लोकोंवाली रामायण उनके सामने रख दी
। सौ करोड़ श्लोकोंकी रामायण देखी तो महाराज भगवान् शंकर बहुत खुश हुए । बड़े लोगोंका
स्वभाव होता है कि जब वे प्रसन्न होते हैं और किसी चीजसे लाभ देखते हैं तो वे चाहते
हैं कि भैया ! यह चीज तो सबको ही मिलनी चाहिये । श्रेष्ठ
पुरुष उदार होते हैं । शंकरभगवान्ने देखा कि रामायण इतनी बढ़िया है कि इसे सबको
ही देना चाहिये । इसलिये तीन विभाग करके त्रिलोकीको बाँटने लगे । तीनों लोकोंको तैंतीस-तैंतीस
करोड़ दिया तो एक करोड़ बच गया । उस एक करोड़के तीन भाग किये तो एक लाख बच गया । एक लाखके
फिर तीन भाग किये तो एक हजार बच गया । एक हजारके तीन भाग किये तो सौ बच गया । उसके
भी तीन भाग किये तो एक श्लोक बचा । इस प्रकार रामायणमें जो सौ करोड़ श्लोक हैं,
उनको तीन भाग करके बाँटते-बाँटते अन्तमें एक अनुष्टुप् श्लोक
बच गया । एक अनुष्टुप् छन्दके श्लोकमें बत्तीस अक्षर होते हैं । उनमेंसे दस-दस करके
तीनोंको दे दिया । तो अन्तमें दो अक्षर बचे । भगवान् शंकरने विचार किया कि तीन अक्षर
होते तो उनको भी बाँट देते । अब इन दो अक्षरोंको किसको देवें और किसको नहीं देवें ।
इसलिये ये दो अक्षर ‘रा’ और ‘म’ हम रख लेंगे । बँटवारेमें कुछ मिलना चाहिये न ! भगवान् शंकरने
कहा‒‘बस हमारे तो सार यही है । राम राम !’ इन दो अक्षरोंके अन्तर्गत ही है सब रामायण । जितने शास्त्र हैं,
जो कुछ भी है, भगवान्के नामके अन्तर्गत ही हैं । भगवान् भी वशमें हो जायँ,
औरोंकी बात ही क्या है ? इसलिये यह ‘राम’ नाम निर्गुण और सगुण दोनोंसे ही बढ़कर है ।
चारों वेद ढंढोर के अन्त कहोगे राम ।
सो रज्जब पहले कहो एते ही में काम ॥
नामका प्रभाव
अब आगे भगवान्के नाम लेनेवाले भक्तोंको गिनाते हैं । उन लोगोंने
कैसे नाम लिया, वह भी बताते हैं ।
नाम प्रसाद संभु अबिनासी
।
साजु अमंगल मंगल रासी ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा २६ । १)
नामके प्रसादसे ही शिवजी अविनाशी हैं और अमंगल वेषवाले होनेपर
भी मंगलकी राशि हैं । शंकर अविनाशी किससे हुए ?
तो कहते हैं ‘नाम-प्रसाद’‒नामके प्रभावसे ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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