।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.२०७२, शनिवार
चैत्र नवरात्रारम्भ, ‘किलक’ संवत्सर
श्रीकृष्ण-संवत २०७२
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

रचि महेस निज  मानस राखा ।
पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा ३५ । ११)

रामचरितको रचकर अपने मनमें ही रखा और अवसर पाकर पार्वतीको उपदेश दिया । वाल्मीकिबाबाने देखा कि रामायणको रखनेवाले भगवान् शंकर हैं, इसलिये सब-की-सब सौ करोड़ श्लोकोंवाली रामायण उनके सामने रख दी । सौ करोड़ श्लोकोंकी रामायण देखी तो महाराज भगवान् शंकर बहुत खुश हुए । बड़े लोगोंका स्वभाव होता है कि जब वे प्रसन्न होते हैं और किसी चीजसे लाभ देखते हैं तो वे चाहते हैं कि भैया ! यह चीज तो सबको ही मिलनी चाहिये । श्रेष्ठ पुरुष उदार होते हैं । शंकरभगवान्‌ने देखा कि रामायण इतनी बढ़िया है कि इसे सबको ही देना चाहिये । इसलिये तीन विभाग करके त्रिलोकीको बाँटने लगे । तीनों लोकोंको तैंतीस-तैंतीस करोड़ दिया तो एक करोड़ बच गया । उस एक करोड़के तीन भाग किये तो एक लाख बच गया । एक लाखके फिर तीन भाग किये तो एक हजार बच गया । एक हजारके तीन भाग किये तो सौ बच गया । उसके भी तीन भाग किये तो एक श्लोक बचा । इस प्रकार रामायणमें जो सौ करोड़ श्लोक हैं, उनको तीन भाग करके बाँटते-बाँटते अन्तमें एक अनुष्टुप् श्लोक बच गया । एक अनुष्टुप् छन्दके श्लोकमें बत्तीस अक्षर होते हैं । उनमेंसे दस-दस करके तीनोंको दे दिया । तो अन्तमें दो अक्षर बचे । भगवान् शंकरने विचार किया कि तीन अक्षर होते तो उनको भी बाँट देते । अब इन दो अक्षरोंको किसको देवें और किसको नहीं देवें । इसलिये ये दो अक्षर रा’ और म’ हम रख लेंगे । बँटवारेमें कुछ मिलना चाहिये न ! भगवान् शंकरने कहा‒‘बस हमारे तो सार यही है । राम राम !’ इन दो अक्षरोंके अन्तर्गत ही है सब रामायण । जितने शास्त्र हैं, जो कुछ भी है, भगवान्‌के नामके अन्तर्गत ही हैं । भगवान् भी वशमें हो जायँ, औरोंकी बात ही क्या है ? इसलिये यह रामनाम निर्गुण और सगुण दोनोंसे ही बढ़कर है ।

चारों वेद ढंढोर के  अन्त कहोगे राम ।
सो रज्जब पहले कहो एते ही में काम ॥

नामका प्रभाव

अब आगे भगवान्‌के नाम लेनेवाले भक्तोंको गिनाते हैं । उन लोगोंने कैसे नाम लिया, वह भी बताते हैं ।

नाम प्रसाद  संभु अबिनासी ।
साजु अमंगल  मंगल  रासी ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २६ । १)

नामके प्रसादसे ही शिवजी अविनाशी हैं और अमंगल वेषवाले होनेपर भी मंगलकी राशि हैं । शंकर अविनाशी किससे हुए ? तो कहते हैं नाम-प्रसाद’नामके प्रभावसे ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे