।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र अमावस्या, वि.सं.२०७१, शुक्रवार
अमावस्या
मानसमें नाम-वन्दना



(१२ मार्चके ब्लॉगसे आगेका)

जो भगवान्‌का सेवक (भक्त) प्रीतिसहित नाम-जप करता है, वह मोहरूपी रावणकी काम, क्रोध, लोभ, मद, पाखण्ड आदि बड़ी भारी कलियुगकी सेनाको बिनु श्रम’ बिना परिश्रमके जीत जाता है । जब मोहको ही जीत गया तो सेना कहाँ रहे बेचारी ! मोहके साथ सारी सेना भी खतम हो जाती है, फिर क्या करता है ? फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें ।’ सुखमें मस्त हुआ घूमता रहता है । प्रेम-सहित नामका स्मरण करनेसे यह सब हो जाता है । रामजीके तो एक राजधानी है अयोध्या । नामकी राजधानी सब जगह है । जो भगवान्‌के नाम-प्रेमी होते हैं, उनका हृदय नाम महाराजकी राजधानी होती है ।

‘नफा पाया है राम फकीरीमें ।’.......कैसी बात है ! हाथमें तुम्बी बगलमें सोटा । ये चारों ही धाम जागीरीमें ॥’ वहाँ तो एक अयोध्या ही राजधानी है, नामके तो चारों ही धाम जागीरी है ।

फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें ।
नाम प्रसाद सोच  नहि सपनें ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २५ । ८)

रामजी राजगद्दीपर बैठ गये फिर भी लवणासुर आदिने क्या-क्या आफत मचायी । राजगद्दीपर बैठनेपर भी रामजी सुखसे थोड़े ही रहे । नाम महाराजकी कृपासे जाग्रत्‌में तो क्या शोक आवे, स्वन्नमें भी शोक-चिन्ता नहीं सताती । ऐसे मस्त हो जाते हैं । इसलिये ब्रह्म राम तें नामु बड़’ पहले ब्रह्मसे नामको बड़ा बताया, अब रामसे बड़ा बता दिया ।

ब्रह्म  राम  तें   नामु  बड़   बरदायक   बर  दानि ।
रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २५)

इस प्रकार निर्गुण ब्रह्म और सगुण भगवान् राम इन दोनोंसे यह नाम बड़ा है और वरदान देनेवालेको वरदान देनेवाला है । मानो भगवन्नामका जो सहारा लेता है तो दुनियाको वरदान दे दे, इतनी ताकत उसमें आ जाती है, सामर्थ्य आ जाती है, ऋद्धि-सिद्धि सब कुछ उसमें आ जाती है । भुक्ति और मुक्ति कुछ भी बाकी नहीं रहती । इसलिये दोनोंसे ही यह बड़ा है । जैसे‒

रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि ।

भगवान् शंकर वरदान देनेवाले हैं, वे भी वरदान देते हैं तो किसके प्रभावसे-नामके प्रभावसे !

अहं भवन्नाम गृणन्कृतार्थो वसामि काश्यामनिशं भवान्या ।
मुमूर्षमाणस्य  विमुक्तयेऽहं  दिशामि मन्त्र  तव  रामनाम ॥
(अध्यात्म, युद्धकाण्ड, १५ । ६२)

यह जो आपका रामनाम मन्त्र है, मरनेवालेको उसकी मुक्तिके लिये मैं इसका उपदेश देता हूँ । भगवान् शंकरको भी दानी बना दिया नाम महाराजने । नाममें भगवान् शंकरका बहुत प्रेम है । वाल्मीकिजी महाराजने रामायण बनायी तो सौ करोड़ श्लोकोंकी रामायण बनायी और लाकर भगवान् शंकरके आगे रखी, जो सदा ही भगवान् रामका नाम लेनेवाले हैं, रामचरितमें ही मस्त रहनेवाले हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे