(१२ मार्चके ब्लॉगसे आगेका)
जो भगवान्का सेवक (भक्त) प्रीतिसहित नाम-जप करता है,
वह मोहरूपी रावणकी काम,
क्रोध, लोभ, मद, पाखण्ड आदि बड़ी भारी कलियुगकी सेनाको ‘बिनु
श्रम’ बिना परिश्रमके जीत जाता है । जब मोहको ही जीत गया तो सेना कहाँ रहे बेचारी ! मोहके
साथ सारी सेना भी खतम हो जाती है, फिर क्या करता है ?
‘फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें ।’
सुखमें मस्त हुआ घूमता रहता है । प्रेम-सहित नामका स्मरण करनेसे
यह सब हो जाता है । रामजीके तो एक राजधानी है अयोध्या । नामकी राजधानी सब जगह है ।
जो भगवान्के नाम-प्रेमी होते हैं, उनका हृदय नाम महाराजकी राजधानी होती है ।
‘नफा पाया
है राम फकीरीमें ।’.......कैसी बात है ! ‘हाथमें
तुम्बी बगलमें सोटा । ये चारों ही धाम जागीरीमें ॥’
वहाँ तो एक अयोध्या ही राजधानी है,
नामके तो चारों ही धाम जागीरी है ।
फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें ।
नाम प्रसाद सोच नहि
सपनें ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २५ । ८)
रामजी राजगद्दीपर बैठ गये फिर भी लवणासुर आदिने क्या-क्या आफत
मचायी । राजगद्दीपर बैठनेपर भी रामजी सुखसे थोड़े ही रहे । नाम महाराजकी कृपासे जाग्रत्में
तो क्या शोक आवे, स्वन्नमें भी शोक-चिन्ता नहीं सताती । ऐसे मस्त हो जाते हैं
। इसलिये ‘ब्रह्म राम तें नामु बड़’
पहले ब्रह्मसे नामको बड़ा बताया,
अब रामसे बड़ा बता दिया ।
ब्रह्म राम तें नामु बड़
बरदायक
बर दानि ।
रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा २५)
इस प्रकार निर्गुण ब्रह्म और सगुण भगवान् राम इन दोनोंसे यह
नाम बड़ा है और वरदान देनेवालेको वरदान देनेवाला है । मानो भगवन्नामका जो सहारा लेता
है तो दुनियाको वरदान दे दे, इतनी ताकत उसमें आ जाती है,
सामर्थ्य आ जाती है,
ऋद्धि-सिद्धि सब कुछ उसमें आ जाती है । भुक्ति और मुक्ति कुछ
भी बाकी नहीं रहती । इसलिये दोनोंसे ही यह बड़ा है । जैसे‒
रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि ।
भगवान् शंकर वरदान देनेवाले हैं,
वे भी वरदान देते हैं तो किसके प्रभावसे-नामके प्रभावसे !
अहं भवन्नाम गृणन्कृतार्थो वसामि काश्यामनिशं भवान्या ।
मुमूर्षमाणस्य विमुक्तयेऽहं
दिशामि मन्त्र तव रामनाम ॥
(अध्यात्म, युद्धकाण्ड,
१५ । ६२)
यह जो आपका ‘राम’ नाम मन्त्र है, मरनेवालेको उसकी मुक्तिके लिये मैं इसका उपदेश देता हूँ । भगवान्
शंकरको भी दानी बना दिया नाम महाराजने । नाममें भगवान् शंकरका बहुत प्रेम है । वाल्मीकिजी
महाराजने रामायण बनायी तो सौ करोड़ श्लोकोंकी रामायण बनायी और लाकर भगवान् शंकरके आगे
रखी, जो सदा ही भगवान् रामका नाम लेनेवाले हैं,
रामचरितमें ही मस्त रहनेवाले हैं ।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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