(गत ब्लॉगसे आगेका)
जगत् साक्षात् परमात्माका स्वरूप है‒यह बात बहुत आयी है,
पर ऐसा किसीने कहा है कि इसको साक्षात् परमात्माका स्वरूप देखो,
साक्षात् परमात्मा ही मानो ? इतनी बात पता लग जाय
तो आदमी रात-दिन ‘ये भगवान् हैं ! ये भगवान्
हैं ! ये भगवान् हैं !’‒इसकी रटनमें लग जाय ! अगर विश्वास हो जाय तो आदमी पागल
हो जाय ! इतनी सीधी-सरल बात कहाँ मिलती
है ? इसका वही माहात्म्य है, जो भगवान्के
दर्शनका माहात्म्य है ! भूख लगे तो भोजन कर
लो, प्यास लगे तो जल पी लो,
नींद आये तो सो जाओ, और हरेक वस्तु-व्यक्तिमें ‘ये भगवान् हैं ! ये भगवान् हैं !
ये भगवान् हैं !’‒इसकी रात
और दिन रटन लगाओ, पीछे ही पड़ जाओ । भगवान् प्राप्त हो जायँगे
! आप करके तो देखो !
श्रोता‒मेरे द्वारा किसी व्यक्तिका घोर अपराध हो गया, पर उस व्यक्तिसे क्षमा माँगनेकी मेरी हिम्मत नहीं है, क्या करूँ ?
स्वामीजी‒आप मनसे क्षमा माँग लो । सुबह-शाम दोनों वक्त मनसे
उसकी परिक्रमा करके नमस्कार कर लो और क्षमा माँग लो । मिलनेकी कोई जरूरत नहीं है ।
कुछ दिनोंके बाद देखो तो उसका मन बदल जायगा ।
श्रोता‒द्वादशाक्षर मन्त्र जपते-जपते मेरी विलक्षण स्थिति हो गयी थी, पर अब वह स्थिति वापिस नहीं आती ! क्या करना चाहिये ?
स्वामीजी‒लोगोंको कह देनेसे भी बाधा लग जाती
है । अतः ऐसी बात किसीको कहनी नहीं चाहिये । माफी माँगो और भजन करो । भगवान्की कृपासे
ठीक हो जायगा ।
श्रोता‒नामजप श्रेष्ठ है या सेवा
? नामजप करते हैं तो सेवा
नहीं होती और सेवा करते
हैं तो नामजप नहीं होता
!
स्वामीजी‒यह बात हम नहीं मानते ! नामजप करनेसे सेवाको
पुष्टि मिलती है और सेवा करनेसे नामजपमें रुचि होती है ।
दोनों एक-दूसरेके सहायक हैं,
बाधक नहीं ।
श्रोता‒हम अपनी कमाईका आधा हिस्सा
निकालते हैं, तो वह अपने घरकी लड़कीके विवाहमें लगा सकते हैं
क्या ?
स्वामीजी‒दहेजमें न देकर अलगसे दे सकते हो ।
बहन-बेटी ब्राह्मणकी तरह
होती है ।
सबकी अलग-अलग दृष्टियाँ हैं । जैसे, एक स्त्री-शरीर हो तो उसको सिंह भोजनके रूपमें देखता
है, पुरुष स्त्रीके रूपमें देखता है, बालक
माँके रूपमें देखता है । स्त्री तो एक ही है, पर दृष्टियाँ अलग-अलग हैं । ऐसे ही संसारको भी सब एक रूपसे नहीं देखते, प्रत्युत अलग-अलग दृष्टिसे देखते हैं । परन्तु सब दृष्टियोंमें वास्तविक दृष्टि यह है कि संसार परमात्माका स्वरूप
है । इससे ऊँची कोई दृष्टि नहीं है । अगर इसी ऊँची दृष्टिसे हम देखें तो संसार परमात्माकी
प्राप्तिका खास कारण है, मुक्तिका
खास धाम है ! इसका दर्शन करनेमात्रसे कल्याण हो जाय !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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