।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण अष्टमी, वि.सं.-२०७४, शुक्रवार
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताआजकल ब्याह-शादीमें खड़े-खड़े खाते हैं, यह ठीक है या गलत है ?

स्वामीजीबिल्कुल बेठीक है । कोरी मूर्खता भरी है ! आजकल मूर्खता बढ़ रही है ! यह कलियुगकी लीला है ! कलियुगकी लीलामें प्रवेश मत करो । हमारे शास्त्रोंने बुद्धको अवतार माना है, पर बुद्धकी बातको नहीं माना है । गीताने कहा है‒‘तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ’ (गीता १६ । २४) ‘कर्तव्य-अकर्तव्यकी व्यवस्थामें शास्त्र ही प्रमाण है’ । शास्त्रकी आज्ञाके अनुसार चलो तो बहुत लाभ होगा ।

कलियुगके समयमें आप सत्संगमें आ गयेयह मामूली बात नहीं है ! यह बड़ी श्रेष्ठ, बड़ी उत्तम बात है ! अगर यह मान लो कि सब कुछ भगवान् ही हैं तो निहाल हो जाओगे ! ऐसी विलक्षण, अलौकिक बातें हरेक जगह मिलती नहीं हैं ! आप कई जगह सत्संगमें जाओ तो आपको पता लगे ! जड-चेतनका ठीक तरहसे विवेक हरेक जगह नहीं मिलता ! जो इस सत्संगकी तात्त्विक बातोंको ठीक समझेगा, वह दूसरी जगह ठहर सकेगा नहीं !

गीता-जैसा ग्रन्थ आपको कहीं मिलेगा नहीं । लोग जानते नहीं ! टीका करते हैं गीताजीकी, पर बात करते हैं अपने सम्प्रदायकी ! पहले सम्प्रदायके ग्रन्थ पढ़कर फिर गीता पढ़ते तो गीता समझमें नहीं आयेगी । वासुदेवः सर्वम् की बात कितनी जगह मिलती है, आप ढूँढकर देख लो ! ऐसा मौका मिलता नहीं है ! आप जगह-जगह भटको तो पता लगे ! उपनिषदोंमें आया है कि ऐसी बातें सुननेको भी नहीं मिलतीं‘श्रवणायापि बहुभिर्यो न लभ्यः’ (कठोपनिषद् १ । २ । ७) ऐसी विचित्र बातें भगवान्‌की कृपासे ही मिलती हैं, अपने उद्योगसे नहीं । अभी पता नहीं लगता । समय बीतनेपर पता लगेगा ! मेरेपर एक असर है कि भगवान्‌की कोई विलक्षण ही कृपा है ! भगवान्‌की जितनी कृपा है, ऐसी योग्यता हमारेमें नहीं है ।

यह जो बात आपको कही है, इस बातपर आप ध्यान दो । किसी सन्तके, किसी महात्माके किसी विवेचनमें यह आया है कि तुम इनको भगवान्‌का स्वरूप समझो ? यह बात नयी है ! ‘सब जग ईस्वररूप है’यह तो सभी कहते हैं, पर इनमें परमात्माका रूप देखोऐसा किसी महात्माने कहा हो तो बताओ ? सब जगत्‌ परमात्माका स्वरूप हैयह बात तो प्रसिद्ध है, पर आप अभी इस संसारको परमात्माका स्वरूप समझोयह बात किसी महात्माने, किसी ग्रन्थने कही हो, यह हमें याद नहीं है । आपको नयी बात बताते हैं, पर आप ध्यान नहीं देते !


यहाँ वटवृक्षके नीचे एक आदमीने सेठजी (श्रीजयदयालजी गोयन्दका)-से कहा कि आप मेरेको भगवान्‌के दर्शन कराओ । सेठजीने कहा कि मेरी सामर्थ्य नहीं है कि दर्शन करा दूँ । उसने ज्यादा कहा तो सेठजी बोले कि मेरी बात आप मान लोगे ? उसने कहा कि हमारा आपपर विश्वास है कि आप झूठ नहीं बोलते । सेठजीने सूर्यकी ओर संकेत करते हुए कहा कि ये साक्षात् परमात्मा हैं । वह आदमी बोला कि ये तो हम देखते ही हैं ! सेठजी बोले कि तभी तो मैंने कहा कि तुम विश्वास नहीं करोगे । सूर्य भगवान् हैंयह शास्त्रोंमें आया है कि नहीं, बताओ ? शंकर, शक्ति, गणेश, विष्णु और सूर्यये पाँच ईश्वरकोटिके देवता हैं । ये साक्षात् ईश्वर हैं । आप मानो नहीं तो हम क्या करें ? उपनिषदोंमें आया है कि मैं एक ही बहुत रूपोंसे हो जाऊँ‘सदैक्षत बहु स्यां प्रजायेयेति’ (छान्दोग्य ६ । २ । ३) तो बहुत रूपसे कौन हुआ ?

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे