।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण सप्तमी, वि.सं.-२०७४, गुरुवार
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

जीवका कल्याण होगा संसारका सुख छोड़नेसे ।

कबीर  मनुआँ  एक  है,  भावे  जिधर  लगाय ।
भावे हरि की भगति करे, भावे विषय कमाय ॥

संसारके विषयोंमें लगोगे तो भगवान्‌का भजन नहीं होगा, और भजनमें लगोगे तो विषयभोग नहीं होगा । मनको चाहे भगवान्‌में लगा दो, चाहे संसारमें लगा दो, आपकी मरजी है । अगर संसारका सुख लेना हो तो भगवान्‌की आशा छोड़ दो, और भगवान्‌का भजन करना हो तो संसारकी आशा छोड़ दो । ये दोनों परस्परविरीधी हैं; क्योंकि संसार नाशवान् है और भगवान् अविनाशी । नाशवान्में लगोगे तो अविनाशी कैसे मिलेगा ?

एक विलक्षण बात है कि क्रियासे परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती । क्रियासे संसारकी प्राप्ति होती है । जो सर्वव्यापक है, उसके लिये क्रियाकी क्या आवश्यकता ? क्रियासे उसकी प्राप्ति कैसे होगी ? जहाँ आप ‘मैं हूँ’ कहते हो, वहाँ परमात्मा पूरे-के-पूरे हैं । फिर उसकी प्राप्तिके लिये कहाँ जाओगे ? क्रियासे तो उल्टे परमात्मासे दूर हो जाओगे ! जो चीज सब जगह होती है, उसको प्राप्त करनेके लिये कहीं जाना नहीं पड़ता । जहाँ आप हो, वहीं मिल जायगा । केवल प्राप्तिकी जोरदार इच्छा होनी चाहिये ।

हरि व्यापक  सर्बत्र समाना ।
प्रेम तें प्रगट होहि मैं जाना ॥
                                  (मानस बाल १८५ । २)

श्रोताव्यर्थ चिन्तनकी आदत कैसे मिटे ?

स्वामीजीएक ही उपाय हैभगवान्‌को पुकारो । यह उपाय सब चीजोंमें लागू होता है । जहाँ हमें कठिनता पड़ती हो, ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !ऐसे भगवान्‌को पुकारो । उनकी कृपासे जो काम होता है, वह अपने उद्योगसे नहीं होता ।

श्रोतामहात्मालोग ब्याजकी कमाईको पवित्र नहीं मानते, पर मेरे घरमें ब्याजकी कमाई आती है, क्या करें ?

स्वामीजीकमाईका दूसरा साधन न हो तो आपत्काल समझकर ले सकते हैं, नहीं तो विधवा आदि अपना निर्वाह कैसे करें ! व्यापारमें जो रुपये रह जायँ उनके ब्याजका इतना दोष नहीं है, पर केवल ब्याजकी कमाई बढ़िया नहीं है ।

श्रोतामेरे इष्ट हनुमान्जी हैं तो मैं भगवान्‌की शरणागति लूँ या हनुमान्जीकी शरणागति लूँ ? कौन-सी ठीक है ?

स्वामीजीहनुमान्जी भगवान्‌के भक्त हैं । भक्तकी शरणागति भी भगवान् अपनेसे कम नहीं मानते । बहुत कृपा करते हैं ! मूलसे ब्याज प्यारा होता है ! बेटेसे पोता प्यारा होता है !

श्रोताआपकी बात समझमें आती है, पर अनुभव नहीं हो रहा है !


स्वामीजीभगवान्‌की कृपासे अनुभव हो जायगायह विश्वास रखो । भगवान्‌की कृपाका भरोसा रखो । कारण कि आपने सच्ची बातको मान लिया, तो सच्ची बात सिद्ध होगी ही । आप सच्ची बातको स्वीकार कर लो, अनुभव हो जायगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे