(गत ब्लॉगसे आगेका)
जीवका कल्याण होगा संसारका सुख छोड़नेसे ।
कबीर मनुआँ एक
है, भावे जिधर लगाय
।
भावे हरि की भगति करे, भावे विषय
कमाय ॥
संसारके विषयोंमें लगोगे तो भगवान्का भजन नहीं होगा, और भजनमें लगोगे तो
विषयभोग नहीं होगा । मनको चाहे भगवान्में लगा दो, चाहे संसारमें
लगा दो, आपकी मरजी है । अगर संसारका
सुख लेना हो तो भगवान्की आशा छोड़ दो, और भगवान्का भजन करना हो तो संसारकी आशा छोड़ दो । ये दोनों परस्परविरीधी हैं; क्योंकि संसार नाशवान् है
और भगवान् अविनाशी । नाशवान्में लगोगे तो अविनाशी कैसे मिलेगा
?
एक विलक्षण बात है कि क्रियासे परमात्माकी प्राप्ति नहीं
होती । क्रियासे संसारकी प्राप्ति होती है । जो सर्वव्यापक है, उसके लिये क्रियाकी
क्या आवश्यकता ? क्रियासे उसकी प्राप्ति कैसे होगी ? जहाँ आप ‘मैं हूँ’ कहते हो, वहाँ परमात्मा पूरे-के-पूरे हैं । फिर उसकी प्राप्तिके लिये कहाँ जाओगे ?
क्रियासे तो उल्टे परमात्मासे दूर हो जाओगे ! जो
चीज सब जगह होती है, उसको प्राप्त करनेके लिये कहीं जाना नहीं
पड़ता । जहाँ आप हो, वहीं मिल जायगा । केवल प्राप्तिकी जोरदार
इच्छा होनी चाहिये ।
हरि व्यापक सर्बत्र समाना ।
प्रेम तें प्रगट होहि मैं
जाना ॥
(मानस बाल॰ १८५ । २)
श्रोता‒व्यर्थ चिन्तनकी आदत कैसे मिटे
?
स्वामीजी‒एक ही उपाय है‒भगवान्को पुकारो ।
यह उपाय सब चीजोंमें लागू होता है । जहाँ हमें कठिनता पड़ती हो, ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’‒ऐसे भगवान्को पुकारो । उनकी कृपासे जो काम होता
है, वह अपने उद्योगसे नहीं होता
।
श्रोता‒महात्मालोग ब्याजकी कमाईको पवित्र नहीं मानते, पर मेरे घरमें ब्याजकी कमाई आती है, क्या करें ?
स्वामीजी‒कमाईका दूसरा साधन न हो तो आपत्काल
समझकर ले सकते हैं, नहीं तो विधवा आदि अपना निर्वाह कैसे करें ! व्यापारमें जो रुपये रह जायँ उनके ब्याजका इतना दोष नहीं है, पर केवल ब्याजकी कमाई बढ़िया नहीं है ।
श्रोता‒मेरे इष्ट हनुमान्जी हैं तो मैं भगवान्की
शरणागति लूँ या हनुमान्जीकी शरणागति लूँ ? कौन-सी ठीक है
?
स्वामीजी‒हनुमान्जी भगवान्के भक्त हैं
। भक्तकी शरणागति भी भगवान् अपनेसे कम नहीं मानते । बहुत कृपा करते हैं ! मूलसे ब्याज प्यारा होता है ! बेटेसे पोता प्यारा होता
है !
श्रोता‒आपकी बात समझमें आती है, पर अनुभव नहीं हो रहा
है !
स्वामीजी‒भगवान्की कृपासे अनुभव हो जायगा‒यह विश्वास रखो । भगवान्की कृपाका भरोसा रखो । कारण कि आपने सच्ची बातको
मान लिया, तो सच्ची बात सिद्ध होगी ही । आप सच्ची बातको स्वीकार
कर लो, अनुभव हो जायगा ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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