।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण द्वादशी, वि.सं.-२०७४, बुधवार
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोतापरमात्माकी प्राप्तिमें भविष्यकी अपेक्षा नहीं है, कैसे ?

स्वामीजीजो वस्तु दूर हो, उसके लिये रास्ता होता है । सर्वव्यापक वस्तुके लिये रास्ता नहीं होता । उसकी प्राप्तिमें क्रिया भी कारण नहीं होती । परमात्मा सब जगह समान रीतिसे परिपूर्ण हैं । जहाँ आप हो, वहाँ परमात्मा पूरे-के-पूरे हैं । उनके समान सर्वव्यापक वस्तु कोई है ही नहीं । वे केवल चाहनासे मिल जाते हैं । संसारकी कोई चीज चाहनामात्रसे नहीं मिलती, पर परमात्मा चाहनामात्रसे मिलते हैं । जैसे परमात्मा अद्वितीय हैं तो उनकी चाहना भी अद्वितीय होनी चाहिये । एक परमात्माके सिवाय दूसरी कोई चाहना न हो तो परमात्माकी प्राप्ति हो ही जायगी । कोई भी चाहना मत रखो तो परमात्माकी प्राप्ति हो जायगी ।

चाह चूहड़ी रामदास, सब नीचों में नीच ।
तू तो केवल ब्रह्म था, चाह न होती बीच ॥

आप कुछ भी चाहना मत रखो, अगर परमात्माकी प्राप्ति न हो तो मेरा कान पकड़ना !

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गोस्वामीजी महाराजने रामायण लिखी तो सबसे पहले नमस्कार किया । उसमें उन्होंने गुरुजीको जो नमस्कार किया, उस सोरठेमें भी विलक्षणता है । पहलेके सभी सोरठोंके अन्तमें ‘बदन, सदन’, ‘गहन, दहन’, ‘नयन, सयन’ और ‘अयन, मयन’ शब्द आये हैं, पर गुरु-वन्दनामें ‘हरि निकर’ शब्द आये हैं‒

बंदउँ  गुरु  पद  कंज  कृपा  सिंधु नररूप हरि ।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर ॥
                                                 (मानस, बाल ५)


ऐसा पहलेके किसी सोरठेमें नहीं आया है । तात्पर्य है कि जिससे ज्ञान मिला है, उस गुरुके बराबर कोई नहीं है । गोस्वामीजी मामूली कवि नहीं थे । जिनसे लाभ हुआ है, उनके प्रति उनकी कितनी कृतज्ञता है ! सेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दका रोजाना स्नान एवं नित्यकर्म करनेके बाद बैठकर नाड़ीजप करते थे; क्योंकि नाड़ीजपसे उनको लाभ हुआ था । सेठजीके पिता खूबचन्दजीकी बात सुनी कि उनकी बूढ़ी दादीजी थीं । ज्यादा चलना-फिरना न होनेसे वे प्रायः खाटपर बैठी रहतीं । खूबचन्दजी रोजाना खाटकी परिक्रमा करके माँजीको दण्डवत् करके नमस्कार करते थे । तात्पर्य है कि माँ-बापका और गुरुका जो आदर करेगा, उसका आदर होगा । उसमें विलक्षणता आयेगी । माँ-बापके प्रति, गुरुके प्रति, पूज्यजनोंके प्रति जितना अधिक भाव होगा, उतना लाभ होगा ही ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे