(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒मेरे एक भाईका तो देहान्त
हो गया और एक भाई
बीमार रह रहा है ! इससे मनमें बड़ी अशान्ति है, बड़ा दुःखी हूँ क्या करना
चाहिये ?
स्वामीजी‒भाईको सच्चे हृदयसे भगवान्के अर्पण
कर दो । उसमें मोह, अपनापन मत रखो । वह जीये तो भगवान्का, मरे
तो भगवान्का ! चिन्ता करे तो भगवान् करे ! रोये तो भगवान् रोये ! मैं क्यों रोऊँ ? हृदयसे उसको भगवान्को दे दो तो इसमें उसका कल्याण है ।
मोह रखनेसे आपका भी नुकसान है, उसका
भी नुकसान है । भगवान्को दे दो तो आपको भी फायदा और उसको भी फायदा ।
सच्ची बात यही है कि सब भगवान्के हैं । हमने अपना मान
रखा है, वास्तवमें अपना है
नहीं, अपना था नहीं, अपना रहेगा नहीं,
अपना हो सकता नहीं । भाई जन्मसे पहले अपना था क्या ? अगर अभी अपना है तो उसको बचा लो । अपना है तो अपना वश चलता है क्या ?
क्या वह सदा अपना रहेगा ? अपना रह सकता ही नहीं
। फिर चिन्ता किस बातकी ? आप भाईकी बात कहते हैं, यह शरीर भी अपना नहीं है ! क्या आप शरीरको अपनी मरजीके
मुताबिक रख सकते हो ? मरजीके मुताबिक नहीं रख सकते तो फिर वह
अपना कैसे ?
श्रोता‒गायको जूठा भोजन दे सकते
हैं कि नहीं ?
स्वामीजी‒गायको जूठन नहीं देना चाहिये । ठण्डी
रोटी भी नहीं देनी चाहिये । देनी वह चीज चाहिये, जो आप खा
सकते हो । जो आप नहीं खा सकते, वह देनेका अधिकार नहीं है । उसको
बाहर रख दो, चाहे कोई खाये । लोग रद्दी चीजका दान करते हैं । क्या
खेतमें रद्दी बीज बोते हो ?
ज्ञान भगवान्का है, किसी व्यक्तिका नहीं । वह ज्ञान जिससे
मिले, उसको गुरु मान लो । जैसे, भगवान्के
नामका जप करना चाहिये‒यह ज्ञान हमें जिस व्यक्ति अथवा पुस्तकसे
हुआ, वह हमारा गुरु हो गया, चाहे आप जानें
या न जानें, मानें या न मानें । बनाये
हुए गुरुसे कल्याण नहीं होता ।
आप ऋषिकेशसे अपनी गाड़ीकी लाइट करो तो हरिद्वार दीखेगा
नहीं । परन्तु जितना रास्ता दीखे, उतना चलना शुरू कर दो तो हरिद्वार पहुँच जाओगे
। इसी तरह आपको जितना ज्ञान हो, उसके अनुसार चलना शुरू कर दो तो परमात्मातक पहुँच
जाओगे ।
मैं गुरु बनता नहीं हूँ, पर जो बात
गुरु बताता है, वही तो मैं बताता हूँ ! वह बात बताता हूँ, जो गुरु भी न बताये ! अगर आप सच्चे हृदयसे भगवान्में लग जाओ तो भले ही मुझे गुरु मान लो !
न आपको कोई बाधा है, न मुझे ! गुरु जो बात बतायेगा, उससे कम नहीं बताऊँगा !
गुरूका अभाव मत मानो । सच्चे हृदयसे भगवान्में लग जाओ, फिर सब ठीक हो जायगा । मैं चेला बनाता नहीं, पर काम गुरूका
ही करता हूँ ! आप भगवान्में लग जाओ तो मैं अपनेपर आपकी बड़ी कृपा
मानूँगा ! गुरु हाथ नहीं जोड़ता, पर मैं
हाथ जोड़कर कहता हूँ कि आप सच्चे हृदयसे भगवान्में लग जाओ ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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