।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.-२०७४, गुरुवार
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोतामेरे एक भाईका तो देहान्त हो गया और एक भाई बीमार रह रहा है ! इससे मनमें बड़ी अशान्ति है, बड़ा दुःखी हूँ क्या करना चाहिये ?

स्वामीजीभाईको सच्चे हृदयसे भगवान्‌के अर्पण कर दो । उसमें मोह, अपनापन मत रखो । वह जीये तो भगवान्‌का, मरे तो भगवान्‌का ! चिन्ता करे तो भगवान् करे ! रोये तो भगवान् रोये ! मैं क्यों रोऊँ ? हृदयसे उसको भगवान्‌को दे दो तो इसमें उसका कल्याण है । मोह रखनेसे आपका भी नुकसान है, उसका भी नुकसान है । भगवान्‌को दे दो तो आपको भी फायदा और उसको भी फायदा ।

सच्ची बात यही है कि सब भगवान्‌के हैं । हमने अपना मान रखा है, वास्तवमें अपना है नहीं, अपना था नहीं, अपना रहेगा नहीं, अपना हो सकता नहीं । भाई जन्मसे पहले अपना था क्या ? अगर अभी अपना है तो उसको बचा लो । अपना है तो अपना वश चलता है क्या ? क्या वह सदा अपना रहेगा ? अपना रह सकता ही नहीं । फिर चिन्ता किस बातकी ? आप भाईकी बात कहते हैं, यह शरीर भी अपना नहीं है ! क्या आप शरीरको अपनी मरजीके मुताबिक रख सकते हो ? मरजीके मुताबिक नहीं रख सकते तो फिर वह अपना कैसे ?

श्रोतागायको जूठा भोजन दे सकते हैं कि नहीं ?

स्वामीजीगायको जूठन नहीं देना चाहिये । ठण्डी रोटी भी नहीं देनी चाहिये । देनी वह चीज चाहिये, जो आप खा सकते हो । जो आप नहीं खा सकते, वह देनेका अधिकार नहीं है । उसको बाहर रख दो, चाहे कोई खाये । लोग रद्दी चीजका दान करते हैं । क्या खेतमें रद्दी बीज बोते हो ?

ज्ञान भगवान्‌का है, किसी व्यक्तिका नहीं । वह ज्ञान जिससे मिले, उसको गुरु मान लो । जैसे, भगवान्‌के नामका जप करना चाहियेयह ज्ञान हमें जिस व्यक्ति अथवा पुस्तकसे हुआ, वह हमारा गुरु हो गया, चाहे आप जानें या न जानें, मानें या न मानें । बनाये हुए गुरुसे कल्याण नहीं होता ।

आप ऋषिकेशसे अपनी गाड़ीकी लाइट करो तो हरिद्वार दीखेगा नहीं । परन्तु जितना रास्ता दीखे, उतना चलना शुरू कर दो तो हरिद्वार पहुँच जाओगे । इसी तरह आपको जितना ज्ञान हो, उसके अनुसार चलना शुरू कर दो तो परमात्मातक पहुँच जाओगे ।


मैं गुरु बनता नहीं हूँ, पर जो बात गुरु बताता है, वही तो मैं बताता हूँ ! वह बात बताता हूँ, जो गुरु भी न बताये ! अगर आप सच्चे हृदयसे भगवान्‌में लग जाओ तो भले ही मुझे गुरु मान लो ! न आपको कोई बाधा है, न मुझे ! गुरु जो बात बतायेगा, उससे कम नहीं बताऊँगा ! गुरूका अभाव मत मानो । सच्चे हृदयसे भगवान्‌में लग जाओ, फिर सब ठीक हो जायगा । मैं चेला बनाता नहीं, पर काम गुरूका ही करता हूँ ! आप भगवान्‌में लग जाओ तो मैं अपनेपर आपकी बड़ी कृपा मानूँगा ! गुरु हाथ नहीं जोड़ता, पर मैं हाथ जोड़कर कहता हूँ कि आप सच्चे हृदयसे भगवान्‌में लग जाओ ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे