।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण तृतीया, वि.सं.-२०७४, रविवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

मन अपना नहीं हैयह मान लो तो मन बहुत सुगमतासे वशमें हो जायगा । जबतक मनको अपना समझोगे, तबतक मन चंचल रहेगा । लोग बड़ी शिकायत करते हैं कि मन नहीं लगता ! मन लगे कैसे ? आपने मनको समझा नहीं ! मन ऐसा है कि आप जहाँ जाते हो, मन वहीं चला जाता है । जहाँ आप नहीं जाते, वहाँ मन नहीं जाता । मन खराब नहीं है । मन तो एक इन्द्रिय है, सूक्ष्म अन्तःकरण है । करण कर्ताके अधीन होता है । रेल वहीं जाती है, जहाँ पटरी हो । जहाँ पटरी नहीं है, वहाँ रेल नहीं जाती । ऐसे ही मन वहीं जाता है, जहाँ आपने सम्बन्ध जोड़ा है । अतः मन खराब नहीं है, प्रत्युत आप खुद खराब हो !

जैसे पृथ्वी, जल, तेज आदि अपने नहीं हैं, ऐसे ही मन, बुद्धि, अहंकार भी अपने नहीं हैं । ये सब परमात्माके हैं । जो परमात्माके हैं, उनको आपने अपना मान लिया ! राजकीय वस्तुको कोई व्यक्ति अपनी मान ले तो दण्ड मिलता है ! इन वस्तुओंको भक्त भगवान्‌को दे देता है, ज्ञानी प्रकृतिको दे देता है और योगी संसारको दे देता है । अपना माननेसे मन अशुद्ध हो जाता है ।

पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, मन, बुद्धि तथा अहंकार-इनकी स्वतन्त्र सत्ता नहीं है । इनका विवेचन हमलोगोंकी दृष्टिसे किया जाता है । वास्तवमें एक परमात्माके सिवाय कुछ नहीं है‘वासुदेवः सर्वम्’ (गीता ७ । १९)

श्रोतामालासे नामजप करना अच्छा है या रामनाम लिखना अच्छा है ?

स्वामीजीदोनोंमें रामनाम लिखना अच्छा है; क्योंकि उसमें नेत्र भी लग जाते हैं, हाथ भी लग जाते हैं, मन भी लग जाता है । उपासना वह अच्छी है, जिसमें गद्गद भाव हो जाय, मन भगवान्‌में तल्लीन हो जाय । चाहे जप करो, चाहे कीर्तन करो, चाहे पाठ करो, जिसमें मन भगवान्‌में ज्यादा लगे, जो प्रेमपूर्वक किया जाय, वह बढ़िया हो जायगा ।

श्रोताआपने रोजाना साढ़े तीन लाख जप करनेकी बात कही थी, वह कैसे सम्भव है ? समझमें नहीं रहा है !
स्वामीजीआपसे जितना हो सके, कर लो । खास बात यह याद रखो कि समय खाली न जाय ।

श्रोतानामजपके समय व्यर्थ चिन्तन होता है, उसके लिये क्या करें ?

स्वामीजीबार-बार ‘हे नाथ ! हे नाथ !’ पुकारो । एक मालामें तीन-चार बार प्रार्थना करो कि ‘हे नाथ ! हे कृपासिन्धो ! व्यर्थ चिन्तनसे बचाओ !’ । मन्त्रोंसे भी प्रार्थनामें विशेष शक्ति है । आर्त होकर भगवान्‌को पुकारो कि ‘हे नाथ ! मैं अपनी शक्तिसे मिटा नहीं सका ! आप कृपा करो’ । भगवान्‌की कृपासे जो काम होता है, वह अपने पुरुषार्थसे नहीं होता । भगवान्‌की कृपासे बहुत सरलतासे काम हो जाता है । बड़े-बड़े असम्भव काम भी भगवान्‌की कृपासे सम्भव हो जाते हैं । भगवान्‌की कृपाका भरोसा रखकर नामजप करो, सब ठीक हो जायगा ।

भगवान् अपने हैं । भगवान्‌के सिवाय कोई अपना नहीं है । भगवान्‌के एक-एक रोममें करोड़ों ब्रह्माण्ड हैं‘रोम रोम प्रति लाने कोटि कोटि ब्रह्मडं’ (मानस, बाल २०१) करोड़ों ब्रह्माण्डोंमें तिल-जितनी, एक धागे-जितनी चीज भी हमारी नहीं है । पर जिनके रोम-रोममें करोड़ों ब्रह्माण्ड हैं, वे भगवान् पूरे-के-पूरे हमारे हैं !


   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे