।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.-२०७४, सोमवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

मैं कहूँ और लोग तत्परतासे भगवान्‌में लग जायँऐसी विद्या मेरेको आती नहीं ! अगर मेरेको ऐसी विद्या आये तो सबको भगवान्‌में लगा दूँ ! आपलोग अगर चाहो तो सब भगवान्‌में लग सकते हो, इसमें कोई सन्देह नहीं है । कारण कि भगवान् हमारे हैं । भगवान्‌पर हमारा अधिकार है । क्यों अधिकार है ? क्योंकि हम भगवान्‌के अंश हैं । जैसे अपनी माँको सब-के-सब माँ कह सकते हैं, ऐसे ही सब-के-सब जीव भगवान्‌को अपना परमपिता कह सकते हैं । एक ही माँग हो कि ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । इसके सिवाय दूसरी माँग नहीं रहनी चाहिये । भगवान् यादमात्रसे प्रसन्न हो जाते हैं‘अच्युतः स्मृतिमात्रेण’ । भगवान्‌के सिवाय और कोई हमारा है ही नहीं, और कोई हमारा हुआ ही नहीं, और कोई हमारा होगा नहीं, और कोई हमारा हो सकता नहीं । प्रकृतिकी जितनी चीजें हैं, सब मिलती हैं और बिछुड़ जाती हैं । परन्तु भगवान् पहलेसे ही मिले हुए हैं और बिछुड़ते हैं ही नहीं ! कोई कितना ही दुष्ट हो, कितना ही पापी हो, कितना ही अन्यायी हो, कितना ही घातक हो, कितना ही क्रर हो, कितना ही नृशंस हो, भगवान् उसको छोड़ते नहीं । सदा उसके साथ रहते हैं । ऐसा और कौन है, बताओ ? थोड़ा अवगुण हो तो उसको सब छोड़ देते हैं, माँ-बाप छोड़ देते हैं, भाई छोड़ देते हैं, सम्बन्धी छोड़ देते हैं, कुटुम्बी छोड़ देते हैं, पड़ोसी छोड़ देते हैं, पर भगवान् नहीं छोड़ते ! अतः सबके साथ रहनेमें, शक्तिमें, महिमामें, कृपा करनेमें भगवान्‌के समान कोई नहीं है ! वे प्राणिमात्रके परम सुहद् हैं‘सुहृदं सर्वभूतानाम्’ (गीता ५ । २९) ऐसे प्रभुको भी याद नहीं रखते तो किसको याद रखोगे ? ऐसे भगवान्‌पर विश्वास नहीं करोगे तो किसपर विश्वास करोगे ? संसार विश्वास करनेलायक नहीं है । जो चीज मिलती है और बिछुड़ जाती है, उसपर विश्वास कैसे हो ? इसलिये भगवान्‌को अपना मान लो । जैसे, मीराबाईने कहा‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ । किसी--किसीको अपना मानना ही पड़ेगा, यह बित्कृल सच्ची बात है । जब किसी--किसीको अपना मानना ही पड़ेगा तो जो सबसे श्रेष्ठ है, कभी हमसे अलग नहीं होगा, उसको ही अपना मानो । आजतक हमारे कितने जन्म हुए, कैसे-कैसे शरीर मिले, पर कोई शरीर ठहरा नहीं, कोई सम्बन्ध ठहरा नहीं, पर भगवान्‌का सम्बन्ध कभी टूटा नहीं !

श्रोतागीतामे आया है कि जीवने जगत्‌को धारण कर रखा हैययेदं धार्यते जगत्‌’ (गीता ), तो यह धारण करना क्या है और यह धारण करना कैसे मिटे ?


स्वामीजीयह जगत्‌ केवल जीवकी कल्पना है । परमात्माकी दृष्टिमें जगत्‌ नहीं है और परमात्माको प्राप्त हुए महापुरुषोंकी दृष्टिमें भी जगत्‌ नहीं है । महापुरुषोंकी दृष्टिमें सब कुछ परमात्मा ही है‘वासुदेवः सर्वम्’ (गीता ७ । १९) स्वप्नमें भी जगत्का नामोनिशान नहीं है ! जगत्‌ है ही नहीं, हुआ ही नहीं, होगा ही नहीं, हो सकता ही नहीं ! यह एकदम पक्की, सच्ची बात है । केवल जीवने ही जगत्को धारण कर रखा है । भगवान् कहते हैं‘मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय’ (गीता ७ । ७) अर्थात् मेरे सिवाय किंचिन्मात्र भी कुछ नहीं है, केवल मैं-ही-मैं हूँ । केवल जीवने संसारकी कल्पना कर रखी है । संसार केवल राग-द्वेषके कारण है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे