गोस्वामीजने कहा है‒
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु ।
जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु ॥
(मानस, बालकाण्ड २६)
हौं तो सदा खर को असवार, तिहारोइ नामु
गयंद चढ़ायो ॥
(कवितावली, उत्तर॰ ६०)
मैं कितना अयोग्य था, पर आपकी कृपाने कितना योग्य बना दिया
! इसलिये भगवान्की कृपाकी ओर देखो । हम जो कुछ बने हैं,
अपनी बुद्धि, बल, विद्या, योग्यता, सामर्थ्यसे नहीं बने हैं । जहाँ मनमें अपनी बुद्धि,
बल आदिसे बननेकी बात आयी, वहीं अभिमान आता है कि हमने ऐसा किया, हमने वैसा किया ।
इस अभिमानसे बचनेके लिये भगवान्को पुकारो । अपने बलसे नहीं बच सकते, प्रत्युत
भगवान्की कृपासे ही बच सकते हैं । भगवान्की स्मृति समस्त विपत्तियोंका नाश
करनेवाली हैं‒
हरिस्मृतिः सर्वविपद्विमोक्षणम्’
(श्रीमद्भागवत ८/१०/५५)
इसलिये भगवान्को याद करो, भगवान्का नाम लो, भगवान्के
चरणोंकी शरण लो । उनके
सिवाय और कोई रक्षा करनेवाला नहीं हैं । भगवान्के बिना संसारमात्र अनाथ है ।
भगवान्के कारणसे ही संसार सनाथ है । चलती चक्कीमें सब दाने पिस जाते हैं,
पर जिस कीलके आधारपर चक्की चलती है, उस कीलके पास जो दाने चले जाते हैं, वे
पिसनेसे बच जाते हैं‒‘कोई हरिजन ऊबरे कील माकड़ी पास’ ।
इसलिये प्रभुके
सिवाय अभिमानसे बचनेका कोई उपाय नहीं है ।
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
‒ ‘मेरे
तो गिरधर गोपाल’ पुस्तकसे
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