।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
    माघ शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.२०७६ शनिवार
       शीघ्र भगवत्प्राप्ति कैसे हो ?


अपने-अपने इष्टदेवके स्वरूपको ध्यान करते हुए आप इसी समय हे नाथ ! हे नाथ ! ऐसे पुकारते हुए शान्त....चुपचाप.....उनके चरणोंमें गिर जायँ । ऐसा मान लें कि हम उनके चरणोंमें ही पड़े हैं और सदा उनके चरणोंमें ही पड़े रहना है । इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं करना है, क्योंकि करनेके आधारपर भगवान्‌को ख़रीदा नहीं जा सकता । उनकी प्राप्तिमें अपनेको कभी अयोग्य न माने । जो सर्वथा अयोग्य या अनधिकारी होता है वही भगवच्चरणोंकी शरण होनेका अधिकारी होता है । जिसको संसारमें कोई पद या अधिकार नहीं मिलता, वह परमात्मप्राप्तिका अधिकारी होता है । भगवान्‌के चरणोमें गिर जाना बहुत बड़ा भजन है । इसलिये ऐसा मानते हुए उनके चरणोंमें गिर जायँ कि यह हाड़-मांसका अपवित्र शरीर तथा मन-बुद्धि-इन्द्रियाँ हमारे नहीं हैं और हम उनके नहीं हैं । हमारे केवल प्रभु हैं और हम केवल प्रभुके हैं ।

पूरी गीता कहनेके बाद भगवान्‌ने सम्पूर्ण गोपनीयोंसे भी अतिगोपनीय बात यह कही‒

सर्वधर्मान्परित्यज्य      मामेकं   शरणं   व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
(गीता १८/६६)

‘सम्पूर्ण धर्मों (कर्तव्यकर्मोंके आश्रय) को त्यागकर केवल एक मेरी शरणमें आ जा । मैं तुझे सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त कर दूँगा । तू शोक मत कर ।’

इसलिये दूसरे सब आश्रय त्यागकर एक प्रभुका ही आश्रय ले लें, क्योंकि यही टिकेगा, दूसरे आश्रय तो कभी टिक ही नहीं सकते ।

अंतहि तोहि तजैंगे पामर ! तू न तजै अब ही ते ।
मन         पछितैहैं          अवसर          बीते ॥

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒ ‘साधकोंके प्रति’ पुस्तकसे