भगवन्नाम-जपसे भगवान्की बारम्बार स्मृति होती है । जैसे बिगुल बजनेसे सैनिक सजग हो जाता है, वैसे ही जपसे मनरूपी सैनिक
सावधान होता है । इसी प्रकार सत्संग करनेसे, साधुओंके दर्शनसे भगवान् याद आ जाते
हैं, जिस प्रकार सिपाहीके देखनेसे राजा याद आ जाता है और जब भजन-चर्चा चलती है,
तब ‘खूब गुजरेगी, मिल बैठेंगे दीवाने दो’
वाली कहावत चरितार्थ होती है । अर्थात् भगवान्का निरन्तर चिन्तन होने लगता है ।
भगवच्चर्चा चलती है तो मन उसमें रम जाता है । कण्ठ गद्गद हो जाता है, नेत्रोमें
आँसू आने लगते हैं । गोस्वामीजी कहते हैं–
हिय फाटउ फूटहुँ नयन जरउ सो तन केहि काम ।
द्रवै
स्त्रवै पुलकै नहीं
तुलसी सुमिरत राम ॥
भागवतमें भी कहा है–
तदश्मसारं हृदयं वतेदं
यद् गृह्यमाणैर्हरिनामधेयैः ।
न विक्रियेताथ यदा विकारो नेत्रे जलं गात्ररुहेषु हर्षः ॥
(२/३/२४)
कबीरदासजी भी कहते हैं‒
सुमिरन सों सुधि लाइए, ज्यों सुरभी सूत माहिं ।
कह कबीर चारो चरत छिनहूँ बिसरत
नाहिं ॥
ऐसा नित्य-निरन्तर चिन्तन करनेके लिए भगवान् कहते हैं । यह
बात हुई ।
दूसरी बात है‒ ‘मद्भक्तो भव’‒इसका
तात्पर्य यह है कि मेरी आज्ञाका प्रेमपूर्वक पालन कर ।
अग्या सम न सुसाहिब सेवा ।
भगवान्की आज्ञापालन ही सेवा है । आदरपूर्वक भगवान्की एक
आज्ञापालन करनेसे ही भगवान् प्रसन्न हो जाते हैं ।
श्रीरामचन्द्रजी कहते हैं‒
सो सेवक प्रियतम मम सोई ।
मम अनुसासन मानइ जोई ॥
भगवान्की प्रसन्नता प्राप्त होनेपर फिर क्या
बाकी रह सकता है । एक पिताके कई
लड़के हैं । उनमें पिताको अत्यन्त प्यारा वह होगा, जो पिताकी आज्ञाका पालन करेगा ।
गुरुसे कह शिष्य विशेष लाभ उठायेगा, जो गुरु-आज्ञामें तत्पर होगा । आज्ञापालनसे पूज्यकी सारी शक्ति आज्ञा-पालकमें उतर आती है । इस
विषयमें यह बात विशेष समझनेकी है कि श्रद्धेय पुरुष जिस क्षण किसी बताके लिये आज्ञा दें, उसी
क्षण उसका पालन करना चाहिये । इससे विशेष लाभ होता है । असली आज्ञा वही है, जो मालिकके अनुकूल हो, हमारे लिये भले ही प्रतिकूल
हो । इसी तरह भगवदाज्ञापालन करनेवाला
ही भगवद्भक्त है ।
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