Listen सूक्ष्म विषय‒अपने द्वारा अपने-आपको वशमें करके कामको मारनेकी प्रेरणा । इन्द्रियाणि
पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः
। मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः
परतस्तु सः ॥ ४२ ॥ एवं
बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना । जहि
शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्
॥ ४३ ॥ अर्थ‒इन्द्रियोंको (स्थूलशरीरसे) पर (श्रेष्ठ,
सबल, प्रकाशक, व्यापक तथा सूक्ष्म) कहते हैं । इन्द्रियोंसे पर मन है, मनसे भी पर बुद्धि है और जो बुद्धिसे भी पर है, वह (काम)
है । इस तरह बुद्धिसे पर ( काम)-को जानकर अपने द्वारा अपने-आपको वशमें करके हे महाबाहो
! तू इस कामरूप दुर्जय शत्रुको मार डाल ।
व्याख्या‒‘इन्द्रियाणि पराण्याहुः’‒शरीर अथवा विषयोंसे इन्द्रियाँ पर हैं । तात्पर्य यह है कि इन्द्रियोंके
द्वारा विषयोंका ज्ञान होता है, पर विषयोंके द्वारा इन्द्रियोंका ज्ञान नहीं होता । इन्द्रियाँ
विषयोंके बिना भी रहती हैं, पर इन्द्रियोंके बिना विषयोंकी सत्ता सिद्ध नहीं होती । विषयोंमें
यह सामर्थ्य नहीं कि वे इन्द्रियोंको प्रकाशित करें, प्रत्युत इन्द्रियाँ विषयोंको प्रकाशित करती हैं । इन्द्रियाँ
वही रहती हैं, पर विषय बदलते रहते हैं । इन्द्रियाँ व्यापक हैं और विषय व्याप्य हैं अर्थात् विषय
इन्द्रियोंके अन्तर्गत आते हैं, पर इन्द्रियाँ विषयोंके अन्तर्गत नहीं आतीं । विषयोंकी अपेक्षा
इन्द्रियाँ सूक्ष्म हैं । इसलिये विषयोंकी अपेक्षा इन्द्रियाँ श्रेष्ठ,
सबल, प्रकाशक, व्यापक और सूक्ष्म हैं । ‘इन्द्रियेभ्यः
परं मनः’‒इन्द्रियाँ मनको नहीं जानतीं, पर मन सभी इन्द्रियोंको जानता है । इन्द्रियोंमें भी प्रत्येक
इन्द्रिय अपने-अपने विषयको ही जानती है, अन्य इन्द्रियोंके विषयोंको नहीं;
जैसे‒कान केवल शब्दको जानते हैं,
पर स्पर्श, रूप, रस और गन्धको नहीं जानते; त्वचा केवल स्पर्शको जानती है,
पर शब्द, रूप, रस और गन्धको नहीं जानती; नेत्र केवल रूपको जानते हैं, पर शब्द, स्पर्श, रस और गन्धको नहीं जानते; रसना केवल रसको जानती है, पर शब्द, स्पर्श, रूप और गन्धको नहीं जानती; और नासिका केवल गन्धको जानती है,
पर शब्द, स्पर्श, रूप और रसको नहीं जानती; परन्तु मन पाँचों ज्ञानेन्द्रियोंको तथा उनके विषयोंको जानता
है । इसलिये मन इन्द्रियोंसे श्रेष्ठ, सबल, प्रकाशक, व्यापक और सूक्ष्म है । ‘मनसस्तु
परा बुद्धिः’‒मन बुद्धिको नहीं जानता, पर बुद्धि मनको जानती है । मन कैसा है ?
शान्त है या व्याकुल ? ठीक है या बेठीक इत्यादि बातोंको बुद्धि जानती है । इन्द्रियाँ
ठीक काम करती हैं या नहीं ?‒इसको भी बुद्धि जानती है,
तात्पर्य है कि बुद्धि मनको तथा उसके संकल्पोंको भी जानती है
और इन्द्रियोंको तथा उनके विषयोंको भी जानती है । इसलिये इन्द्रियोंसे पर जो मन है,
उस मनसे भी बुद्धि पर (श्रेष्ठ, बलवान्, प्रकाशक, व्यापक और सूक्ष्म) है । ‘यः बुद्धेः
परतस्तु सः’‒बुद्धिका स्वामी ‘अहम्’ है, इसलिये कहता है‒‘मेरी बुद्धि ।’ बुद्धि करण है और ‘अहम्’ कर्ता है । करण परतन्त्र होता है, पर
कर्ता स्वतन्त्र होता है । उस ‘अहम्’ में जो जड-अंश है, उसमें
‘काम’ रहता
है । जड-अंशसे तादात्म्य होनेके कारण वह काम स्वरूप (चेतन)-में रहता प्रतीत होता है
। वास्तवमें ‘अहम्’ में ही ‘काम’ रहता है; क्योंकि वही भोगोंकी इच्छा करता है और सुख-दुःखका भोक्ता बनता
है । भोक्ता, भोग और भोग्य‒इन तीनोंमें सजातीयता (जातीय एकता) है । इनमें सजातीयता न हो तो भोक्तामें
भोग्यकी कामना या आकर्षण हो ही नहीं सकता । भोक्तापनका जो प्रकाशक है,
जिसके प्रकाशमें भोक्ता, भोग और भोग्य‒तीनोंकी सिद्धि होती है,
उस परम प्रकाशक (शुद्ध चेतन)-में
‘काम’
नहीं है । ‘अहम्’ तक सब प्रकृतिका अंश है । उस ‘अहम्’ से भी आगे साक्षात् परमात्माका अंश
‘स्वयं’
है, जो शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि और अहम्‒इन सबका आश्रय,
आधार, कारण और प्रेरक है तथा श्रेष्ठ,
बलवान्, प्रकाशक, व्यापक और सूक्ष्म है ।
जड (प्रकृति)-का अंश ही सुख-दुःखरूपमें परिणत होता है अर्थात्
सुख-दुःखरूप विकृति जडमें ही होती है । चेतनमें विकृति नहीं है,
प्रत्युत चेतन विकृतिका ज्ञाता है;
परन्तु जडसे तादात्म्य होनेसे सुख-दुःखका
भोक्ता चेतन ही बनता है अर्थात् चेतन ही सुखी-दुःखी होता है । केवल जडमें सुखी-दुःखी
होना नहीं बनता । तात्पर्य यह है कि ‘अहम्’ में जो जड-अंश है, उसके साथ तादात्म्य कर लेनेसे चेतन भी अपनेको ‘मैं भोक्ता हूँ’ ऐसा मान लेता है । परमात्मतत्त्वका साक्षात्कार होते ही रसबुद्धि
निवृत्त हो जाती है‒‘रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते’ (गीता
२ । ५९) । इसमें
‘अस्य’
पद भोक्ता बने हुए ‘अहम्’ का वाचक है और जो भोक्तापनसे निर्लिप्त तत्त्व है,
उस परमात्माका वाचक ‘परम’
पद है । उसके ज्ञानसे रस अर्थात्
‘काम’
निवृत्त हो जाता है । कारण कि सुखके
लिये ही कामना होती है और स्वरूप सहजसुखराशि है । इसलिये परमात्मतत्त्वका साक्षात्कार
होनेसे ‘काम’
(संयोगजन्य सुखकी इच्छा) सर्वदा और सर्वथा मिट जाता
है । രരരരരരരരരര |