।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र शुक्ल एकादशी, वि.सं.२०७२, मंगलवार
कामदा एकादशी-व्रत (सबका)
मातृशक्तिका घोर अपमान




(गत ब्लॉगसे आगेका)

मन जाने सब बात, जान बूझ अवगुण करे ।
क्यों चाहत कुसलात, कर दीपक कूएँ पड़े ॥

वर्तमानमें ऐसे भयंकर-भयंकर पाप हो रहे हैं कि सुनकर रोंगटे खड़े हो जायँ, आँखें डबडबा जायँ, हृदय द्रवित हो जाय ! राम-राम-राम, कितना घोर अन्याय, घोर पाप आप कर रहे हो, पर उधर आपका खयाल ही नहीं है ! मनुष्यशरीरको सबसे दुर्लभ बताया गया है‒

दुर्लभो मानुषो देहो देहिनां क्षणभङ्गुरः ।
                                       (श्रीमद्भा ११ । २ । २९)

लब्ध्वा सुदुर्लभमिदं बहुसम्भवान्ते
मानुष्यमर्थदमनित्यमपीह धीरः ।
                                      (श्रीमद्भा ११ । ९ । २९)

बड़े भाग मानुष  तनु  पावा ।
सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा ॥
                              (मानस ७ । ४३ । ७)

ऐसे दुर्लभ मनुष्य-शरीरके आरम्भको ही खत्म कर देना, काट देना जीवोंके साथ कितना घोर अपराध है, कितना अन्याय है, कितना पाप है ! मेरे मनमें बड़ा दुःख हो रहा है, जलन हो रही है, पर क्या करूँ ! जिस मनुष्य-शरीरसे परमात्माकी प्राप्ति हो जाय, उस मनुष्य-शरीरको पैदा ही नहीं होने देना, नष्ट कर देना पापकी आखिरी हद है ! किसी जीवको दुर्लभ मनुष्य-शरीर प्राप्त न हो जाय, किसीका कल्याण न हो जाय, उद्धार न हो जाय, इसलिये गर्भको होने ही नहीं देना है, पहले ही दवाइयाँ लेकर नष्ट कर देना है, गिराकर नष्ट कर देना है, काटकर नष्ट कर देना है, गर्भस्राव करके नष्ट कर देना है, गर्भपात करके नष्ट कर देना है, भूर्णहत्या करके नष्ट कर देना है; हमारा पाप भले ही हो, हम नरकोंमें भले ही जायँ, पर किसीको कल्याणका मौका नहीं मिलने देना है‒ऐसी कमर कस ली है ! अब मैं क्या करूँ ? किसको कहूँ ? और कौन सुने मेरी ? कोई सुनता नहीं ?

हम साधुओंके लिये शास्त्रोंमें कहा गया है कि चातुर्मासमें मत घूमो । हम दो महीने एक जगह रहते हैं, कई तीन महीने रहते हैं, कई चार महीने रहते हैं । कारण यह है कि चातुर्मासमें वर्षा होती है तो हरेक बीजका अंकुर उगता है । अंकुर होकर वह पौधा बनता है और फिर बड़ा होकर वृक्ष बनता है । चलने-फिरनेसे अंकुर पैरोंके नीचे आकर नष्ट हो जाते हैं । इसलिये चातुर्मासमें चलना-फिरना बन्द करते हैं, जिससे किसीकी हिंसा न हो जाय । भागवतमें आया है कि अगर हिंसापर विजय प्राप्त करनी हो तो शरीरकी चेष्टा कम करो‒‘हिंसा कायाद्यनीहया’  (७ । १५ । २३) । जब स्थावर जीवोंकी हिंसाका भी इतना विचार है कि चातुर्मासमें घूमना-फिरना मना कर दिया तो फिर जंगम जीवोंके विषयमें कहना ही क्या है ! परन्तु आज लोग जंगम जीवोंमें भी सबसे श्रेष्ठ, यहाँतक कि देवताओंसे भी श्रेष्ठ मनुष्य-शरीरका नाश करनेके लिये उद्योग कर रहे हैं, क्या दशा होगी !

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘मातृशक्तिका घोर अपमान’ पुस्तकसे


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।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र शुक्ल दशमी, वि.सं.२०७२, सोमवार
एकादशी-व्रत कल है
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

यह कलियुग महाराज कालनेमि राक्षस है, कपटका खजाना है और नाम महाराज हनुमान्‌जी हैं । हनुमान्‌जी संजीवनी लेनेके लिये जा रहे थे । रास्तेमें प्यास लग गयी । मार्गमें कालनेमि तपस्वी बना हुआ बड़ी सुन्दर जगह आश्रम बनाकर बैठ गया । रावणने यह सुन लिया था कि हनुमान्‌जी संजीवनी लाने जा रहे हैं और संजीवनी सूर्योदयसे पहले दे देंगे तब तो लक्ष्मण जी जायगा और नहीं तो मर जायगा । इसलिये किसी तरहसे हनुमान्‌को रोकना चाहिये । कालनेमिने कहा कि मैं रोक लूँगा ।’ वह तपस्वी बनकर बैठ गया । हनुमान्‌जीने साधु देखकर उसे नमस्कार किया । तुम कैसे आये हो ? महाराज ! प्यास लग गयी ।’ तो बाबाजी कमण्डलुका जल देने लगा । इतने जलसे मेरी तृप्ति नहीं होगी ।’ अच्छा, जाओ, सरोवरमें पी आओ ।’ वहाँ गये तो मकड़ीने पैर पकड़ लिया, उसका उद्धार किया । उसने सारी बात बतायी कि महाराज ! यह
कालनेमि राक्षस है और आपको कपट करके ठगनेके लिये बैठा है ।’ हनुमान्‌जी लौटकर आये तो वह बोला‒‘लो भाई, आओ ! दीक्षा दें तुम्हारेको ।’ हनुमान्‌जीने कहा‒महाराज, पहले गुरुदक्षिणा तो ले लीजिये ।’ पूँछमें लपेटकर ऐसा पछाड़ा कि प्राणमुक्त कर दिये । कलियुग कपटका खजाना है । जो नाम महाराजका आश्रय ले लेता है, वह कपटमें नहीं आता ।

राम  नाम   नरकेसरी    कनककसिपु   कलिकाल ।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २७)

राम नाम नृसिंह भगवान हैं । कलियुग महाराज हिरण्यकशिपु है और जापक जन’भजन करनेवाले प्रह्लादके समान हैं । जैसे भगवान् नृसिंहने प्रह्लादकी हिरण्यकशिपुको मारकर रक्षा की थी, ऐसे भक्तोंकी रक्षा कलियुगसे नाम महाराज करते हैं । जिमि पालिहि दलि सुरसाल’ यह रामनाम देवताओंके शत्रु राक्षसोंको (कलियुगको) मारकर भजन करनेवालोंकी रक्षा करनेवाला है ।

भायँ  कुभायँ   अनख  आलसहूँ ।
नाम जपत  मंगल  दिसि  दसहूँ ॥
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा ।
करउँ  नाइ   रघुनाथहिं  माथा ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २८ । १-२)

भावसे, कुभावसे, क्रोधसे या आलस्यसे, किसी तरहसे नाम जपनेसे दसों दिशाओंमें मंगल-ही-मंगल होता है । तुलसीदासजी महाराज कहते हैं‒ऐसे जो नाम महाराज हैं, उनका स्मरण करके और रघुनाथजी महाराजको नमस्कार करके मैं रामजीके गुणोंका वर्णन करता हूँ । प्रकरण आरम्भ किया तो बंदउँ नाम राम रघुबर को’ नाम-वन्दनासे आरम्भ किया और प्रकरणकी समाप्तिमें भी रामजीकी वन्दना करते हैं । नाम-वन्दना और नाम-महिमा करनेके बाद रामजीके गुण और रामचरितकी महिमा कहते हैं । अपनेको ऐसा नाम मिल गया, बड़ी मौजकी बात है । इसमें सबका अधिकार है ।

जाट भजो गूजर भजो  भावे भजो अहीर ।
तुलसी रघुबर नाममें  सब काहू का सीर ॥
राम दड़ी चौड़े पड़ी सब कोई खेलो आय ।
दावा नहीं सन्तदास     जीते सो ले जाय ॥

इसलिये नाम लेकर मालामाल हो जाओ, चलते-फिरते, उठते-बैठते हर समय राम राम राम राम..... ।

कबिरा सब जग  निर्धना   धनवता  नहिं  कोय ।
धनवंता सोइ जानिये जाके राम नाम धन होय ॥

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे

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।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७२, रविवार
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

भरोसो जाहि दूसरो सो करो ।
मोको तो रामको नाम कलपतरु कलि कल्यान करो ॥ १ ॥
करम, उपासन, ग्यान, बेदमत, सो सब भाँति खरो ।
मोहि तो सावनके अंधहि’ ज्यों सूझत रंग हरो ॥ २ ॥
चाटत रह्यो स्वान पातरि ज्यों कबहुँ न पेट भरो ।
सो हौं सुमिरत नाम-सुधारस पेखत परूसि धरो ॥ ३ ॥
स्वारथ औ परमारथ हू को नहिं कुंजरो-नरो ।
सुनियत सेतु पयोधि पषाननि करि कपि-कटक तरो ॥ ४ ॥
प्रीति-प्रतीति जहाँ जाकी, तहँ ताको काज सरो ।
मेरे तो माय-बाप दोउ आखर, हौं सिसु-अरनि अरो ॥ ५ ॥
संकर साखि जो राखि कहौं कछु तौ जरि जीह गरो ।
अपनो भलो राम-नामहि ते तुलसिहि समुझि परो ॥ ६ ॥
(विनय-पत्रिका, पद २२६)

जिसे दूसरेका भरोसा हो, वह भले ही करे, पर मेरे तो यह रामनाम ही कल्पवृक्ष है । अन्तमें कहते हैं‒मेरे तो माय-बाप दोउ आखर’‒मेरे तो माँ-बाप ये दोनों अक्षर र’ और म’ हैं । मैं तो इनके आगे बच्चेकी तरह अड़ रहा हूँ । यदि मैं कुछ भी छिपाकर कहता होऊँ तो भगवान् शंकर साक्षी हैं; मेरी जीभ जलकर या गलकर गिर जाय । गवाही देनेवालेसे कहा जाता है कि सच्चा-सच्चा कहते हो न ? तो गंगाजल उठाओ सिरपर !’ ऐसे भगवान् शंकर जो गंगाको हर समय सिरपर अपनी जटामें धारण किये हुए रहते हैं, उनकी साक्षीमें कहता हूँ । वे कहते हैं तुलसीदासको तो यही समझमें आया कि अपना कल्याण एक रामनामसे ही हो सकता है । इस प्रकार रामनाम लेनेसे लोक-परलोक दोनों सुधर जाते हैं । कितनी बढ़िया बात है !

नहि कलि करम न भगति बिबेकू ।
राम   नाम    अवलंबन      एकू ॥
कालनेमि  कलि   कपट   निधानू ।
नाम   सुमति  समरथ    हनुमानू ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २७ । ७-८)

वेदोंमें तीन काण्ड हैं‒कर्मकाण्ड उपासनाकाण्ड और ज्ञानकाण्ड । इसलिये कहते हैं कि कलियुगमें कर्मका भी सांगोपांग अनुष्ठान नहीं कर सकते, भक्तिका भी सांगोपांग अनुष्ठान नहीं कर सकते और ग्यान पंथ कृपान कै धारा’ वह तो कड़ा है ही, कर ही नहीं सकते । तो कहते हैं एक  रामनाम ही अवलम्बन है उसके लिये ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे

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।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७२, शनिवार
श्रीरामनवमीव्रत
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

सत्ययुगमें भगवान्‌का ध्यान लगाकर तल्लीन होनेसे परमात्माकी प्राप्ति होती थी । त्रेतायुगमें यज्ञ करनेसे और द्वापरयुगमें भगवान्‌का पूजन करनेसे प्राप्ति होती थी; परंतु कलि केवल मल मूल मलीना’ अब ध्यान दो भाई ! कलियुगमें क्या है ? क्या बतावें ? कलियुगमें पाप ही मूल हो गया है । मनुष्योंका मन पापरूपी समुद्रकी मछली बन गया है । मछलीको जैसे जलसे दूर करनेसे मुश्किल हो जाती है वह तड़पने लगती है, ऐसे आज अगर कह दिया जाय कि झूठ, कपट, ब्लैक मत करो तो उनका मन व्याकुल हो जायगा । मनुष्योंका मन पापसे कभी अलग होना चाहता ही नहीं । उनसे ध्यान, यज्ञ और पूजन कुछ नहीं बन सकते ।

नाम   कामतरु    काल   कराला ।
सुमिरत समन सकल जग जाला ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २७ । ५)

कराल काल (कलियुग) में नाम कल्पवृक्ष है । कल्पवृक्ष इसलिये बताया कि इस नामसे ध्यान, यज्ञ, पूजन आदि सब हो जायेंगे । नाम लिया उसने सब किया जोग जग्य आचार’ एक जगह व्याख्यान हो रहा था तो एक बड़े अच्छे सन्त थे, उन्होंने कहा‒‘नाम जपके सिवाय कलियुगमें दूसरा कुछ साधन नहीं हो सकता । इसमें ध्यानयोग, कर्मयोग, अष्टांगयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग कोई भी योग नहीं हो सकता । कलियुगमें केवल भगवान्‌का नाम ही लिया जा सकता है । इसलिये नाम-जप करना चाहिये ।’ ऐसे उन्होंने नामकी महिमा कही । उसके बाद पासमें बैठे महात्माने अपने व्याख्यानमें कहा‒‘बात बिलकुल ठीक है । नाम-जपके बिना कुछ नहीं हो सकता, पर नाम महाराजकी कृपासे ध्यान भी हो जायगा, यज्ञ भी हो जायगा, दान भी हो जायगा, पूजन भी हो जायगा, सब कुछ हो जायगा । नाम-जपसे अगर ये नहीं हुए तो नामकी महिमा ही क्या हुई ?

बड़े-बड़े साधन भी नाम महाराजकी कृपासे सुगम हो जायेंगे । यज्ञ, दान, पूजन, ध्यान, भजन चाहे जो करो, नाम महाराजका सहारा लेकर करोगे तो सब तरहकी योग्यता आ जायगी । जगत्‌के जालको शान्त करनेवाला नाम महाराज है ।

राम नाम कलि अभिमत दाता ।
हित परलोक लोक पितु माता ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २७ । ६)

इस कलियुगमें रामनाम मनचाहा फल देनेवाला है । परलोकमें हित करनेवाला है अर्थात् भगवान्‌का परम धाम दिलानेवाला है और लोकमें माता-पिताके समान हित करता है । गोस्वामीजी महाराज कहते हैं‒बालकका पालन-पोषण माँ-बापके समान कौन कर सकता है ! पिताजी बाहरकी और माँ भीतरकी सब तरहसे रक्षा करती है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे

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