।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल द्वितीया, वि.सं.२०७१, शुक्रवार
मानसमें नाम-वन्दना


(गत ब्लॉगसे आगेका)

          काशीमें वरुणा’ और असी’ दोनों नदियों गंगामें आकर मिलती हैं । उनके बीचका क्षेत्र वाराणसी’ है । इस क्षेत्रमें मण्डूकमतस्याः कृमयोऽपि काश्यां त्यक्त्वा शरीरं शिवमाप्नुवन्ति ।’ मछली हो या मेढक हो या अन्य कोई जीव-जन्तु हों, आकाशमें रहनेवाले हों या जलमें रहनेवाले हों या थलमें रहनेवाले जीव हों, उनको भगवान् शंकर मुक्ति देते हैं । यह है काशीवासकी महिमा ! काशीकी महिमा बहुत विशेष मानी गयी है । यहाँ रहनेवाले यमराजकी फाँसीसे दूर हो जायँ, इसके लिये शंकरभगवान् हरदम सजग रहते हैं । मेरी प्रजाको कालका दण्ड न मिले‒ऐसा विचार हृदयमें रखते हैं ।


अध्यात्मरामायणमें भगवान् श्रीरामकी स्तुति करते हुए भगवान् शंकर कहते है‒जीवोंकी मुक्तिके लिये आपका रामनामरूपी जो स्तवन है, अन्त समयमें मैं इसे उन्हें सुना देता हूँ, जिससे उन जीवोंकी मुक्ति हो जाती है‒अहं हि काश्यां....दिशामि मन्त्रं तव रामनाम ॥’

जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं ।
अंत राम  कहि  आवत  नाहीं ॥

अन्त समयमें रामकहनेसे वह फिर जन्मता-मरता नहीं । ऐसारामनाम है । भगवान्‌ने ऐसा मुक्तिका क्षेत्र खोल दिया । कोई भी अन्नका क्षेत्र खोले तो पासमें पूँजी चाहिये । बिना पूँजीके अन्न कैसे देगा ? भगवान् शंकर कहते हैं‒‘हमारे पास रामनामकी पूँजी है । इससे जो चाहे मुक्ति ले लो ।’

मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खानि अध हानि कर ।
जहँ  बस  संभु भवानि  सो  कासी  सेइअ  कस  न ॥

यह काशी भगवान् शंकरका मुक्ति-क्षेत्र है । यह  ‘रामनामकी पूँजी ऐसी है कि कम होती ही नहीं । अनन्त जीवोंकी मुक्ति कर देनेपर भी इसमें कमी नहीं आती । आवे भी तो कहोंसे ! वह अपार है, असीम है । नामकी महिमा कहते-कहते गोस्वामीजी महाराज हद ही कर देते हैं । वे कहते हैं‒

कहीं कहाँ लगि  नाम  बड़ाई ।
रामु न सकहिं नाम गुन गाई ॥
                                                (मानस, बालकाण्ड, दोहा २६ । ८)

भगवान् श्रीराम भी नामका गुण नहीं गा सकते । इतने गुणरामनाममें हैं । महामंत्र जोइ जपत महेसू’‒इसका दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि यह महामन्त्र इतना विलक्षण है कि महामन्त्र रामनाम जपनेसे ईश’ भी महेश हो गये । महामन्त्रका जप करनेसे आप भी महेशके समान हो सकते हैं । इसलिये बहिनों, माताओं एवं भाइयोंसे कहना है कि रात-दिन, उठते-बैठते, चलते-फिरते हरदम अपने तोरामनाम लेते ही रही । भगवान्‌का नाम है तो सीधा-सादा; परन्तु इससे स्थिति बड़ी विलक्षण हो जाती है ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!!

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे

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।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.२०७१, गुरुवार
शारदीय नवरात्रारम्भ
मानसमें नाम-वन्दना



 (गत ब्लॉगसे आगेका)

रामनाम जपनेवाले जितने सन्त महात्मा हुए हैं । आप विचार करके देखो ! उनमें कितनी ऋद्धि-सिद्धि, कितनी अलौकिक विलक्षणता आ गयी थी ! रामनाम जपमें अलौकिकता है, तब न उनमें आयी ? नहीं तो कहाँसे आती ? इसलिये यह रामनाम गुणोंका खजाना है । यह सत्त्व, रज और तमसे रहित है और गुणोंके सहित भी है एवं व्यापक भी है । यहाँ इस प्रकार रामनाम में ’, ‘आ’ और इन तीन अक्षरोंकी महिमाका वर्णन हुआ और तीनोंकी महिमा कहकर उनकी विलक्षणता बतलायी । यहाँतक रामनामके अवयवोंका एक प्रकरण हुआ । अब गोस्वामीजी राम नामकी महिमा कहना प्रारम्भ करते हैं‒

महामन्त्रकी महिमा

महामंत्र जोइ जपत महेसू ।
कासीं मुकुति हेतु उपदेसू ॥
                                            (मानस, बालकाण्ड, दोहा १९ । ३)

यह रामनाम महामन्त्र है, जिसे महेश्वर’भगवान् शंकर जपते हैं और उनके द्वारा यह रामनाम-उपदेश काशीमें मुक्तिका कारण है । ’, ‘आ’ और ’‒इन तीन अक्षरोंके मिलनेसे यह रामनाम तो हुआ महामन्त्र’ और बाकी दूसरे सभी नाम हुए साधारण मन्त्र ।

सप्तकोट्यो महामन्त्राश्चित्तविभ्रमकारकाः ।
एक एव  परो  मन्त्रो रामइत्यक्षरद्वयम् ॥

सात करोड़ मन्त्र हैं, वे चित्तको भ्रमित करनेवाले हैं । यह दो अक्षरोंवाला रामनाम परम मन्त्र है । यह सब मन्त्रोंमें श्रेष्ठ मन्त्र है । सब मन्त्र इसके अन्तर्गत आ जाते हैं । कोई भी मन्त्र बाहर नहीं रहता । सब शक्तियाँ इसके अन्तर्गत हैं ।

यह रामनाम काशीमें मरनेवालोंकी मुक्तिका हेतु है । भगवान् शंकर मरनेवालोंके कानमें यह रामनाम सुनाते हैं और इसको सुननेसे काशीमें उन जीवोंकी मुक्ति हो जाती है । एक सज्जन कह रहे थे कि काशीमें मरनेवालोंका दायाँ कान ऊँचा हो जाता है‒ऐसा मैंने देखा है । मानो मरते समय दायें कानमें भगवान् शंकर रामनाम मन्त्र देते हैं । इस विषयमें सालगरामजीने भी कहा है‒
                     जग में जितेक जड़ जीव जाकी अन्त समय,
                                जम के जबर जोधा खबर लिये करे ।
                     काशीपति विश्वनाथ वाराणसी वासिन की,
                     फाँसी यम नाशन को शासन दिये करे ॥
                     मेरी प्रजा ह्वेके किम पे हैं काल दण्डत्रास,
                                सालग विचार महेश यही हिये करे ।
                     तारककी भनक पिनाकी यातें प्रानिन के,
                              प्रानके पयान समय कानमें किये करे ॥

जब प्राणोंका प्रयाण होता है तो उस समय भगवान् शंकर उस प्राणीके कानमेंरामनाम सुनाते हैं । क्यों सुनाते हैं ? वे यह विचार करते हैं कि भगवान्‌से विमुख जीवोंकी खबर यमराज लेते हैं, वे सबको दण्ड देते हैं; परन्तु मैं संसारभरका मालिक हूँ । लोग मुझे विश्वनाथ कहते हैं और मेरे रहते हुए मेरी इस काशीपुरीमें आकर यमराज दण्ड दे तो यह ठीक नहीं है । अरे भाई ! किसीको दण्ड या पुरस्कार देना तो मालिकका काम है । राजाकी राजधानीमें बाहरसे दूसरा आकर ऐसा काम करे तो राजाकी पोल निकलती है न ! सारे संसारमें नहीं तो कम-से-कम वाराणसीमें जहाँ मैं बैठा हूँ, यहाँ आकर यमराज दखल दे‒यह कैसे हो सकता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे

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।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
आश्विन अमावस्या, वि.सं.२०७१, बुधवार
अमावस्या, मातामहश्राद्ध
मानसमें नाम-वन्दना



 (गत ब्लॉगसे आगेका)

अगुन अनूपम गुन निधान सो’‒यह रामनाम निर्गुण अर्थात् गुण रहित है । सत्त्व, रज और तमसे अतीत है, उपमारहित है और गुणोंका भण्डार है, दया, क्षमा, सन्तोष आदि सद्‌गुणोंका खजाना है, नाम लेनेसे ये सभी आप-से-आप आ जाते हैं । यहरामनाम सगुण और निर्गुण दोनोंका वाचक है । आगेके प्रकरणमें आयेगा‒

अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी ।
उभय  प्रबोधक  चतुर  दुभाषी ॥
                             (मानस, बालकाण्ड, दोहा २१ । ८)

यह  ‘रामनाम सगुण और निर्गुण‒दोनोंको जनाने-वाला है । इसलिये सगुण उपासक भीरामनाम जपते और निर्गुण उपासक भीरामनाम जपते हैं । सगुण-साकारके उपासक हों, चाहे निर्गुण-निराकारके उपासक हों रामनामका जप सबको करना चाहिये । यह दोनोंकी प्राप्ति करा देता है ।

रामनाम अमृतके समान है; जैसे, बढ़िया भोजनमें घी और दूध मिला दो तो वह भोजन बहुत बढ़िया बन है । ऐसे ही रामनामको दूसरे साधनोंके साथ करो, चाहे केवलरामनामका जप करो, यह हमें निहाल कर देगा ।

रामनामके समान तो केवल रामनाम ही है । यह सब साधनोंसे श्रेष्ठ है । नामके दस अपराधोंमें बताया गया है‒‘धर्मान्तरैः साम्यम्’[1] नामके साथ किसीकी उपमा दी जायगी तो वह नामापराध हो जायगा । मानो नाम अनुपम है । इसमें उपमा नहीं लग सकती । इसलिये नाम’ को किसीके बराबर नहीं कह सकते ।

भगवान् श्रीराम शबरीके आश्रमपर पधारे और शबरीको कहने लगे‒

नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं ।
सावधान सुनु  धरु  मन  माहीं ॥
                          (मानस, अरण्यकाण्ड, दोहा ३५ । ७)

‒‘मैं तुझे अब अपनी नवधा भक्ति कहता हूँ । तू सावधान होकर सुन और मनमें धारण कर ।’ नवधा भक्ति कहकर अन्तमें कहते हैं‒सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें ॥’ (मानस, अरण्यकाण्ड, दोहा ३६ । ७) तेरेमें सब प्रकारकी भक्ति दृढ़ है ।’ शबरीको भक्तिके प्रकारोंका पता ही नहीं; परंतु नवधा भक्ति उसके भीतर आ गयी । किस प्रभावसे ?  ‘रामनामके प्रभावसे ! ऐसी उसकी लगन लगी कि रामनाम जपते हुए रामजीके आनेकी प्रतीक्षा निरन्तर करती ही रही । इस कारण ऋषि-मुनियोंको छोड़कर शबरीके आश्रमपर भगवान् खुद पधारते हैं ।

गुन निधान सो’ यह नाम’ गुणोंका खजाना है, मानो रामनाम लेनेसे कोई गुण बाकी नहीं रहता । बिना जाने ही उसमें सद्‌गुण, सदाचार अपने-आप आ जाते हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे



[1] सन्निन्दाऽसति नामवैभवकथा श्रीशेशयो-
र्भेदधीरश्रद्धा श्रुतिशास्त्रदैशिकगिरां नाम्न्यर्थवादभ्रमः ।
नामास्तीति निषिद्धवृत्तिविहितत्यागौ हि
धर्मान्तरैः साम्यं नामजपे शिवस्य च हरेर्नामापराधा दश ॥

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