।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
    माघ शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७६ बुधवार
            भक्तिकी सुलभता


विचार करनेसे स्पष्ट ज्ञात होता है कि आजके मनुष्यका जीवन स्वकीय शिक्षा, सभ्यता और संस्कृतिके परित्यागके कारण विलासयुक्त होनेसे अत्यधिक खर्चीला हो गया है । जीवन-निर्वाहकी आवश्यक वस्तुओंका मूल्य अधिक बढ़ गया है । व्यापर तथा नौकरी आदिके द्वारा उपार्जन बहुत कम होता है । इन कारणोंसे मनुष्योंको परमार्थ-साधनके लिये समयका मिलना बहुत ही कठिन हो रहा है और साथ-ही-साथ केवल भौतिक उद्देश्य हो जानेके कारण जीवन भी अनेक चिन्ताओंसे घिरकर दुःखमय हो गया है । ऐसी अवस्थामें कृपालु ऋषि-मुनि एवं सन्त-महात्माओं द्वारा त्रिताप-सन्तप्त प्राणियोंको शीतलता तथा शान्तिकी प्राप्ति करानेके लिये ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, हठयोग, अष्टांगयोग, लययोग, मन्त्रयोग और राजयोग आदि अनेक साधन कहे गये हैं और वे सभी साधन वास्तवमें यथाधिकार मनुष्योंको परमात्माकी प्राप्ति कराकर परम शान्ति प्रदान करनेवाले हैं । परन्तु इस समय कलि-मलग्रस्त विषय-वारि-मनोमीन प्राणियोंके लिये‒जो अल्प आयु, अल्प शक्ति तथा अल्प बुद्धिवाले हैं‒परम शान्ति तथा परमानन्दप्राप्तिका अत्यन्त सुलभ तथा महत्त्वपूर्ण साधन एकमात्र भक्ति ही है । उस भक्तिका स्वरूप प्रीतिपूर्वक भगवान्‌का स्मरण ही है, जैसा कि श्रीमद्भागवतमें भक्तिके लक्षण बतलाये हुए भगवान्‌ श्रीकपिलदेवजी अपनी मातासे कहते हैं‒

मद्गुणश्रुतिमात्रेण       मयि    सर्वगुहाशये ।
मनोगतिरविच्छिन्ना यथा गंगाम्भसोऽम्बुधौ ॥
लक्षणं भक्तियोगस्य   निर्गुणस्य ह्युदाहृतम् ।
अहैतुक्यव्यवहिता या      भक्तिः पुरुषोत्तमे ॥
सालोक्यसार्ष्टिसामीप्यसारूप्यैकत्वमप्युत ।
दीयमानं न गृह्णन्ति    विना  मत्सेवनं जनाः ॥
स एव भक्तियोगाख्य    आत्यन्तिक उदाहृतः ।
येनातिव्रज्य त्रिगुणं        मद्भावायोपपद्यते ॥
(३/२९/११-१४)

अर्थात्‌ जिस प्रकार गंगाका प्रवाह अखण्डरूपसे समुद्रकी ओर बहता रहता है, उसी प्रकार मेरे गुणोंके श्रवणमात्रसे मनकी गतिका तैलधारावत् अविच्छिन्नरूपसे मुझ सर्वान्तर्यामीके प्रति हो जाना तथा मुझ पुरुषोत्तममें निष्काम और अनन्य प्रेम होना‒यह निर्गुण भक्तियोगका लक्षण कहा गया है । ऐसे निष्काम भक्त, दिये जानेपर भी, मेरे भजनको छोड़कर सालोक्य, सार्ष्टि, सामीप्य, सारूप्य और सायुज्य मोक्षतक नहीं लेते । भगवत्सेवाके लिये मुक्तिका भी तिरस्कार करनेवाला यह भक्तियोग ही परम पुरुषार्थ अथवा साध्य कहा गया है । इसके द्वारा पुरुष तीनों गुणोंको लाँघकर मेरे भावको‒मेरे प्रेमरूप अप्राकृत स्वरूपको प्राप्त हो जाता है ।

इसी प्रकार श्रीमधुसुदनाचार्यने भी भक्तिरसायनमें लिखा है‒

द्रुतस्य भगवद्धर्माद्धारावाहिकतां गता ।
सर्वेशे मनसो वृत्तिर्भक्तिरित्यभिधीयते ॥

अर्थात्‌ भागवत-धर्मोंका सेवन करनेसे द्रवित हुए चित्तकी भगवान्‌ सर्वेश्वरके प्रति जो तैलधारावत् अविच्छिन्न वृत्ति है, उसीको भक्ति कहते हैं ।


उपर्युक्त लक्षणोंसे सिद्ध होता है कि अनन्य भावयुक्त भगवत्स्मृति ही भगवद्भक्ति हैं ।

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।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
    माघ शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७६ मंगलवार
         सब कुछ परमात्माका है


भगवान्‌ने गीतामें कहा है‒
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥ (७/१९)

अर्थात्‌ ‘सब कुछ परमात्मा ही हैं’‒ऐसा अनुभव करनेवाला महात्मा अत्यंत दुर्लभ है । दुर्लभ होनेके कारण यह बात हमारे माननेमें नहीं आती तो कोई हर्ज नहीं । आपके भीतर यह इच्छा जाग्रत रहनी चाहिये कि यह बात हमारे माननेमें कैसे आये ! एकान्तमें, अकेले बैठाकर विचार करो । सच्ची बातको स्वीकार कर लो तो जिसको भगवान्‌ने दुर्लभ महात्मा कहा है, वह महात्मा आप बन जाओगे । सच्ची बातको काटनेकी चेष्टा न करके जाननेकी चेष्टा करो । आपका व्यवहार भी ठीक हो जायगा, परमार्थ भी ठीक हो जायगा । सच्ची बातको स्वीकार कर लो तो वह माननेमें आ ही जायगी, चाहे आज आ जाय या दिनोंके बाद, महिनोंके बाद अथवा वर्षोंके बाद ! सच्ची बात अनुभवमें आयेगी ही‒यह नियम है । इसलिये सच्ची बातको आज ही और अभी स्वीकार कर लो ।
सब कुछ परमत्मा ही हैं‒इस बातको स्वीकार करना है । सच्ची बातको स्वीकार करनेमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिये । आप मानो चाहे नहीं मानो, सच्ची बात अन्तमें सच्ची ही रहेगी । अगर आप मान लो तो बड़ी भारी लाभ है । अगर आज मान लो और आज ही मृत्यु हो जाय तो मानी हुई बात नष्ट नहीं होगी । सच्ची बातकी जितनी स्वीकृति हो गयी, उतनी स्वीकृति किसी भी जन्ममें मिटेगी नहीं । किसी भी जन्ममें जाओ, वहीं तैयार मिल जायगी‒‘पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः’ (गीता ६/४४) । सच्ची बात आपने जितनी स्वीकार कर ली, उतनी आपके पास पूँजी हो गयी । अब वह कभी मिटेगी नहीं । सत्संगके संस्कार कभी मिटते नहीं । आप चाहें तो इसी जन्ममें सच्ची बातकी स्वीकृति हो जायगी । सच्ची बात कभी मिटती नहीं और झूठी बात टिकती नहीं । हरदम इस बातका मनन करो कि सच्ची बात यही है तो चट काम हो जायगा । जैसे दूर कोई मन्दिर हो और वहाँ जानेका सीधा रस्ता हो तो हम वहाँ पहुँच ही जायँगे । ऐसे ही हमें ‘वासुदेवः सर्वम्’ (सब कुछ परमात्मा ही है)‒यहाँतक पहुँचना है । कारण कि अन्तिम, सर्वश्रेष्ठ और सच्ची बात यही है । यह भगवान्‌के वचन हैं । भगवान्‌के समान हमारा सुहृद कोई है नहीं, हो सकता नहीं । इसलिये इस बातको आप सरलतासे, सच्चे हृदयसे अभी स्वीकार कर लो ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒ ‘सब साधनोंका सार’ पुस्तकसे

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