।। श्रीहरिः ।।


वस्तुओंका सदुपयोग और व्यक्तिओंकी सेवा


गत ब्लोगसे आगेका.....
स्वामीजी— बहुत वर्ष हो गए, बताऊ आपको ...जब मै कलकत्ते गया था । कोई विक्रम संवत १९९८९-९०-९२ की बात है, संवत्सर पूरा याद नहीं हैं, इन वर्षोंकी बात है । तो मेरे पास एक कपड़ा था ओढनेका । तो वहाँ मेरे पास एक सज्जन आये, उन्होंने कहा की मेरे पास ओढनेका कपड़ा नहीं है । तो मैंने दिया नहीं, तो पीछे मनमें आया की तेरेको तो मिल ही जाता, उसको दे ही देता । तो अभीतक वह बात चुभती है । मौके पर आदमी सदुपयोग नहीं करता तो वह मौक़ा चूक जाता है । वह मौक़ा थोड़े ही मिलता है पीछे !! अपरिचित आदमी मारवाडका वहाँ आया की मेरेको झाडा लगता है, ओढनेके लिए कपड़ा नहीं है । वह बात मेरेको कई बार याद आई । अभी यह बात कही की वस्तुका सदुपयोग करो । वो कर लो वख्त पर, नहीं तो पश्चाताप करना पड़ेगा । और फिर आपसे होगा नहीं । मेरेको बात याद है । बिलकुल दे ही देता, एक–दो दिन शियां मर जाता(ठण्ड लगती )और क्या होता ?
श्रोता— आपके पास एक ही था कपड़ा तो ?
स्वामीजी— हाँ ! ओढनेवाला एक ही था और तो थे कपडे । ओढनेके लिए धुसा था वो एक ही था ।
श्रोता— सर्दी उसको लग रही थी, फिर आपको लगती !
स्वामीजी— मेरे पास और कपड़ा नहीं था इस लोभसे तो नहीं दिया । नहीं दिया तो वह बात चुभती रही, आज याद आयी है । कई दिन वह बात चुभती रही भीतर में कि गलती की है । तो यह बात आपको इस वास्ते कही है की वख्त पर वो काम नहीं करनेसे फिर बड़ी मुश्किल होती है । ‘ समय चूक की हूक ‘, समय चूक की हूक भीतर में चुभती रहती है । इस वास्ते ‘ समय चुकी पुनि क्या पछिताने, क्या वर्षा कृषि सुखाने ‘ । तो चुको मत । सदुपयोग करनेमें चुको मत । अब वह बात थोड़े ही पीछे आ सकती है ? न वो वस्तु पीछे रहती है, न वह व्यक्ति मिलती है, न वह मौका मिल सकता है ? वह तो गया, हाथ से निकल गया । तो ‘ शुभस्य शीघ्रम् ‘, शुभ काम करना हो तो, सदुपयोग करना हो तो जल्दी कर लेना चाहिए ।
और जाना हुआ असत् यह है की उसका सम्बन्ध रहेगा नहीं । वह कपड़ा अभी मेरे पास नहीं है । कहाँ गया ? कैसे गया ? किसको दिया ? मेरेको याद नहीं है । वह तो नहीं है, यह बात सच्ची है । और पहले नहीं थी, वह बात भी सच्ची है । यह बात है महाराज ! तो आप वस्तुओंका सदुपयोग और व्यक्तिओंकी सेवा करें । न वस्तुयें रहेगी, न व्यक्तिए रहेगी और न आप रहोगे ! यह सेवा और सदुपयोग जितना बन जाय, उतना बन जाय । और कुछ कुछ नहीं रहेगा । वस्तु मिलती और बिछुडती रहती है । सदुपयोग हो जाय तो बढ़िया बात है । अच्छे विचार रखनेवाला यदि वख्त पर चूक जाता है तो उसको भीतर में चुभती है, और किसीको तो चुभती ही नहीं । बकरियोंका गला काट देते है ,टुकड़ा-टुकड़ा कर देते है, आदमी को काट दे, मार दे, उसको क्या याद आवे ? वस्तु मिलती और बिछुडती रहती है । सदुपयोग हो जाय तो बढ़िया बात है ।
जमनाजीके किनारे एक आदमी मरा पड़ा था, उस पर पूर्जा लिखा हुआ था की मैंने धन के लिए मार दिया; ६ आना की पैसे मिले । उसके पाससे ६ आना ही मिले ! और मार दिया मनुष्यको !! अ़ब उसको क्या याद आवे की मैंने तो मार दिया ! चुभेगी ? उसको क्या चुभेगी ! वह तो मार देता है, कतल कर देता है । परन्तु जिसके मनमें सद्भाव है और अच्छा उपयोग करना चाहता है, और वख्त पर नहीं हो तो वह चुभता है । गायको काट दे, मनुष्यको मार दे, उसको क्या चुभे ?
श्रोता— जिसने मार दिया, उसको पश्चाताप हुआ क्या ?
स्वामीजी— ना, कोई नहीं हुआ । उसने लिखा की वख्त पर ऐसा धोखा होता है, मैंने धनके लिए मार दिया और ६ आना-पैसे मिले । मानो मिला कुछ नहीं और अनर्थ कर दिया !! ऐसे आदमी से अगर मोके पर वस्तु देकर सेवा चूक जाय तो याद रहेगी ? चुभेगी क्या ?? जिसका विचार अच्छा है, साधन करता है, साधन परायण है; वह चुकता है तो उसको याद आती है । याद आती है तो उसको फायदा होता है , फिर आगे ऐसी चूक नहीं होती । और यदि भूल हो जाय तो उस भूलका पश्चाताप नहीं करना, परन्तु आगेके लिए सावधान हो जाना, यह भूल का सदुपयोग है । कही गलती हो गई तो...हाय ! हाय !! गलती हो गई ! गलतीकी चिंता नहीं करनी पर ऐसी गलती आगे नहीं करेंगे...ऐसी गलती आगे नहीं ही करेंगे..!! इस बात पर जोर लगाना चाहिए, जितना लगा सको उतना अधिक से अधिक !! तो काम पड़ते ही चट काम हो जायेगा, फिर गलती नहीं होगी; यह बात है । कोई गलती हो जाय तो गलतीकी चिंता करते है आदमी कि मेरे आज चूक हो गई, भूल हो गई । तो भूल हो गई, उसकी चिंता तो करते है, पर ऐसी भूल आगे न हो उसपर जोर नहीं लगाते ! और सदुपयोग यह है की ऐसी भूल आगे नहीं करेंगे, चाहे कुछ भी हो जाय ! तो उसका सुधार जरुर होगा । भूलसे भी सुधार होता है । सावधानीसे भी सुधार होता है । यह भूलसे एक शिक्षा मिलाती है ।
श्रोता— संग्रहका लोभ है, वह सदुपयोग नहीं करने देता ।
स्वामीजी — हाँ ! तो शिक्षा किस वास्ते है ? अपने इकठ्ठे होकर बात करते है, उसका क्या मतलब है ? इसका मतलब है की काम, क्रोध, लोभका त्याग करना । लोभके कारणसे यह बात होती है । अतः लोभका त्याग करना ही सिखना है । और क्या सिखाना है बताओ ? यहाँ हम इकट्ठे हुए है, किस वास्ते हुए है ? कोई धन मिलता नहीं, और कुछ मिलता नहीं । ऐसी जो भूलें होती है, उसका त्याग करो । लोभ नर्कोंका दरवाजा है । और मिलना कुछ नहीं है । जितना लोभ करोगे, संग्रह करोगे....मर जाओगे, वस्तुएँ छूट जायेगी; रह जायेगी यहाँ पर ही और नरक जाना पड़ेगा इसमें संदेह नहीं है । वस्तुयें तो साथमें रहेगी नहीं और नर्कोंका दुःख भोगना ही पड़ेगा ! मिला कुछ नहीं, अनर्थ हो गया —यह बात है । यह बात ठीक है कि लोभके कारणसे त्याग कर नहीं सकता, दे नहीं सकता, अतः लोभका त्याग करना है । आज से ही मनुष्य यह बात भीतरसे पकड़ ले कि अब लोभके वशीभूत होकर के दुरुपयोग नहीं करना है । मौका पड़े वहाँ ठीक तरहसे उपयोग कर देना है । मै यह नहीं कहता की सब कुछ छोड़ दो ! सब कुछ दे दो, यह नहीं कहता हूँ !! जैसे अपने लिए वस्तुओंको काम में लेते हो, ऐसे ही औरों के लिए भी काममें लेना चाहिए । उनको आवश्यकता हो तो वह देना चाहिए । अपने पास ज्यादा है और उसको आवश्यकता है तो उतनी चीज आप उसको दे दो । जैसे बहुतसा रसोईमें बना हुआ भोजन है । अपने जितना पेट भरें, उतना खाते है । ऐसे एक आदमी भूखा है, उसका पेट भर जाय उतना उसको दे दो । उसमें भी लोभ करते हो तो बहुत अनर्थ होगा । यह मनुष्य के लायक बात नहीं है । मनुष्यपणेकी बात है ही नहीं यह ! यह तो साधारण मनुष्यकी बात है कि हम भोजन करते है तो उसको भूखा कैसे रखे ? है अन्न हमारे पासमें । अगर हमारे पास अन्न थोडा है तो कहें, भाई ! आधा आप ले ले, आधा मै ले लूँ । दोनों पालें थोडा-थोडा, आधा तो हो जायगा न, ऐसा ! —यह सदुपयोग है वस्तुका । अतः इसमें सावधान रहो, वस्तुका सदुपयोग करो और व्यक्तियोंकी सेवा करो ।
नारायण..... नारायण......... नारायण............ नारायण............नारायण
—दि.२१/०६/१९९० प्रातः ५ बजे प्रार्थनाकालीन प्रवचनसे