।। श्रीहरिः ।।

प्रेम चाहते हो ?

रामायणजी में भगवान शंकरजी कहते है कि हरी व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रगट हो ही मैं जाना' परमात्मा सब जगह समान रूपसे परिपूर्ण व्यापक है प्रेमसे प्रगट होते है — यह उनका नियम है अतः प्रेम बहुत बढ़िया चीज है दो संप्रदाय है, एकमें ज्ञानको बढ़िया मानते है और एकमें प्रेम-भक्ति को ! यह दो मत मुख्य है उत्तर भारतमें ज्ञानकी प्रधानता है, दक्षिण भारतमें प्रेमकी प्रधानता है गीताजीमें हमें पहले ज्ञानकी प्रधानता दिखती थी, अब भाव बदल गया और प्रेमकी प्रधानता दिखती है विशेषतासे !
प्रेम क्या चीज है ? भगवान् जाने !! प्रेम कैसे होता है ? इसमें हमें एक बात मिली है कि अपनेपनसे प्रेम होता है भगवान् के साथ अपनापन हो कि मैं भगवान् का अंश हूँ यह हो जाय तो प्रेम हो जाय 'ईश्वर अंश जीव अविनाशी', अपना माने तो प्रेम हो जाय, हम अंश हुए और भगवान् अंशी हुए यह ठीक स्वीकार कर ले तो प्रेम हो जाय, क्योंकि अपनी चीज सबको अच्छी लगती है अपनी फटी जुती, फटा कपड़ा भी ईमानदार आदमीको अच्छा लगता है प्रभु जैसे है वैसे हमारे है 'मेरापन' — खास चीज है जैसे मीराबाईने कहा — 'मेरे तो गिरधर गोपाल, दुसरो ना कोई' एक अनन्य भावसे ....'एक आसरो, एक बल, एक आस विश्वास' हो जाय !
सज्जनों यह बड़ा धोखा है की स्त्री अपनी है, बच्चे अपने है, माँ-बाप अपने है !! बचना तो कठीन है ! भाई, मित्र, कुटुम्बी, जातिवाले अपने है — यह बहुत बड़ी आफत है इससे कैसे बचें बताओ ? बहुतोंको मेरा, अपना मान रखा है — यही बाधा है वास्तवमें भगवान् अपने है और कोई अपना है नहीं ! साथमें रह सकेगें नहीं और भगवान् कभी साथ छोड़ेंगे नहीं — यह विलक्षण बात है भगवान् साथ छोड़ सकते ही नहीं; चाहे आप स्वर्गमें जाओ, चाहे नरकमें जाओ और चाहे मृत्युलोकमें जाओ !! भगवान् तो साथ ही रहेंगे !! 'ईश्वरः सर्व भूतानाम् हृदेशेर्जुन तिष्ठति' ,सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो' तो वे परमात्मा हमें कैसे छोड़ सकते है ?? तो हमारे भगवान् के सिवाय कोई अपना नहीं है, ऐसा स्वीकार कर लें तो प्रेम हो जाय पर यह मानना कठिन है ! आप लोग हिम्मत करो तो बात ठीक बैठ जाय ! 'मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो ना कोई' — यह जो मीराबाईने कही, बात सच्ची है । पर सभी के सभी धोखेमें आ गए !! 'आदि विद्या अटपटी घर घर बीच अडी, कहो कैसे समजाय ये कुएमें भांग पड़ी' सभी कहते है की मेरा बेटा है, मेरे माँ-बाप है, मेरे जातिवाले है....कुएमें भांग पड़ी है ! बताओ, कोई इलाज बताओ ??
मीराबाईको बालकपनसे ही धुन लग गई की 'मेरे तो गिरधर गोपाल दुसरो ना कोई', ऐसी धुन लग जाय; यही असली उपाय है, और कोई साथ रहनेवाला नहीं है भगवान् कहते है कि मैं छोडूंगा नहीं और आप कहते है की हम मानेगें नहीं !! तो हम क्या करें बताओ ?? मुश्किल हो गई !! आपने कमर कस ली कि भगवान् हमारे नहीं है और दुसरे माँ-बाप आदि हमारे है अरे मान लो, मान लो भाई ! सच्ची बात मान लो !! सिवाय भगवान् के सब मिलने और बिछुडनेवाले है — यह बात हमें बहुत बढ़िया लगी मिलने- बिछुडनेवाले अपने नहीं है, इसमें संदेह नहीं है यह बात आप मान लो
ईश्वरका लक्षण बताया है कि कैसा होता है ? तो ' ईश्वरः सर्व भूतानाम् हृदेशेर्जुन तिष्ठति', अब क्या करें ? भगवान् तो छोड़ते नहीं और आपने कमर कस ली कि हम मानेगें नहीं दुसरी बातें तो सब मानेगें परन्तु भगवान् अपने है, वह नहीं मानेगें !! मीराबाई पक्की भक्त है ऐसे भक्त बहुत थोड़े हुए है 'दूसरा न कोई' — यह नहीं मानते है अपनापन यह है कि भगवान् के सिवाय मेर कोई नहीं है दुसरे सब मिलने-बिछुडनेवाले है और भगवान् हरदम साथमें रहते है अपने भगवान् ही है — यह पक्का विचार कर लो, मान लो तो बहुत बढ़िया बात है ! भगवान् कहते है 'सब मम प्रिय, सब मम उपजाए', 'ममैवांशो जीवलोके' 'सबसे ऊँची प्रेम सगाई' , प्रेमका सम्बन्ध सबसे ऊँचा है गीताजीमें भी महात्मा, सर्वज्ञ आदि शब्द भक्तोंके लिए ही आये है ज्ञानीको भगवान् ने सर्वज्ञ नहीं कहा है गीताजी में ! 'सर्व भाव भजी, कपट तजी; मोहि परम प्रिय सोई', सर्वभावेन् भारतः' ....आदि भगवान् कहते है — 'पिताहमस्य जगतः', माताधाता पितामहः'; अपना कुटुम्बी भगवान् ही है 'सदसच्चाहमर्जुन', 'वासुदेवः सर्वंम्' एक बात मान लें पक्की ,मीराबाईकी तरह, फिर सब ठीक हो जायेगा ! 'मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो ना कोई' मेरे तो भगवन है । सुरदासके श्याम, तुलसीके राम, मीराके गिरधर गोपाल, नरसीके शामळीया शेठ !! भगवान् कहते है, 'नरसीजी हमारे आदि शेठ है और मैं उनका आदि गुमास्ता(नौकर) हूँ उनसे ही पेट भरते है बड़ी विचित्र बात है तो अपने भगवान् है आपको राम, श्याम, शामळीया शेठ... जो अच्छा लगे वह कह दो, मान लो !! '

दि.१७/१२/२००० प्रातः ५ बजेके प्रार्थनाकालीन