।। श्रीहरिः ।।
इच्छाके त्याग

और

कर्तव्य-पालनसे
लाभ-२

(गत् ब्लॉगसे आगेका)

आप कह सकते है कि बड़ा परिवार है, रोटी-कपड़ेकी भी तंगी है, काम चलता नहीं फिर इच्छा किये बिना कैसे रहें ? तो इच्छा करनेसे वस्तुएँ थोड़े ही मिलेंगी । वस्तुएँ तो काम करनेसे मिलेंगी । इसलिये वस्तुओंकी इच्छा न करके काम करनेकी इच्छा करो । निकम्मे, निरर्थक मत रहो । न्याययुक्त काम करो । झूठ, कपट, बेईमानी, ठगी, धोखेबाजी मत करो । अन्तःकरणमें रुपयोंको महत्त्व मत दो । यह जो लोभ है, संग्रह करनेकी इच्छा है, इसका त्याग कर दो, तो आपका नया प्रारब्ध बन जायगा अर्थात् जो आपके भाग्यमें लिखा नहीं है, वह आपके पास आ जायगा ! परन्तु आपके लोभका त्याग हो जाना चाहिये और इतना दृढ़ निश्चय होना चाहिये कि चाहे मर जायँ पर पाप नहीं करेंगे, अन्याय नहीं करेंगे, झूठ-कपट-जालसाजी नहीं करेंगे । अगर मर भी जायँ तो क्या फर्क पड़ेगा ? मरना तो एक बार है ही; फिर पापकी पोटली साथमें लेकर क्यों मरो ? पापकी पोटली साथमें लिये बिना मर जाओ तो हर्ज क्या है ? अगर पाप किये बिना पैसा नहीं मिलता हो तो भूखे भले ही मर जाओगे, पर नरकोंमें नहीं जाओगे । अगर पाप करके जीओगे तो नरकोंमें जाओगे ही । नरकोंसे बच नहीं सकोगे, ब्रह्माजी भी बचा नहीं सकेंगे । अतः इच्छा कर्तव्यकी करो, निकम्मे मत रहो । इस विषयमें मैं चार बातें कहता हूँ—

(१) अपना सब समय अच्छे-से-अच्छे, ऊँचे-से-ऊँचे काममें लगाओ । निकम्मे मत रहो, निरर्थक समय बरबाद मत करो । ताश-चोपड़, खेल-तमाशा, बीडी-सिगरेट पीना, सिनेमा-नाटक देखना—ये सब फालतू काम हैं, तमोगुणी काम हैं, जिनसे अधोगतिमें (नीच योनियोंमें और नरकोंमें) जाना पड़ेगा—‘अधो गच्छन्ति तामसाः’ (गीता १४/१८) ऐसे व्यर्थ कामोंमें समय मत लगाओ । जिससे शरीरका निर्वाह हो, स्वास्थ्य ठीक रहे, दुनियाका हित हो, परमात्माकी प्राप्ति हो, ऐसे काममें लगे रहो ।

(२) जिस किसी कामको करो, उसको सुचारुरूपसे करो, जिससे आपके मनमें सन्तोष हो और दूसरे भी कहें कि बहुत अच्छा काम करता है । लिखना हो, पढ़ना हो, मुनीमी करना हो, बिक्री करना हो, खरीदारी करना हो आदि-आदि संसारका जो कुछ काम करना हो, उसको बड़े सुचारुरूपसे, सांगोपांग करो । माता-बहनें रसोई बनायें तो अच्छी तरहसे बनायें । सामग्री भले ही कैसी हो, पर चीज बढ़िया बनायें । भोजन ठीक तरहसे परोसें । सबको कैसे सन्तोष हो, सबको किस तरहसे सुख पहुँचे—ऐसा भाव रखकर सब काम करें ।

(३) इस बातका ध्यान रखो कि आपके पास दूसरेका हक न आ जाय । आपका हक दूसरेके पास भले ही चला जाय, पर दूसरेका हक आपके पास बिलकुल न आये ।

(४) अपने व्यक्तिगत जीवनके लिये कम-से-कम खर्चा करो । शरीर-निर्वाहके लिये, खाने-पीनेके लिये, ओढ़ने-पहननेके लिये कम खर्चा करो, साधारणरीतिसे काम चलाओ । ऐश-आराम, स्वाद-शौकीनी मत करो । अगर ऐसे काम करोगे तो आपको घाटा नहीं रहेगा, करके देख लो ।

आजकल लोग कहते हैं कि क्या करें, निठल्ले बैठे हैं, काम नहीं है । यह बिलकुल फालतू बात है । निठल्ले क्यों बैठे हो ? नाम-जप करो, कीर्तन करो, गीता-रामायण आदिका पाठ करो । घरका काम करो—घरमें झाड़ू लगाओ, बरतन धोओ, जुते साफ करो, नालियाँ साफ करो, शौचालय साफ करो । इस तरह कुछ-न-कुछ करते रहो । करना चाहो तो बहुत काम निकल सकता है । काम करनेसे अन्तःकरण निर्मल होगा । ताश-चौपड़ खेलने आदि फालतू कामोंके लिये समय ही नहीं मिलना चाहिये । छुट्टीका दिन हो तो यों ही निकम्मे फिरेंगे, फालतू घूमने चले जायँगे, सिनेमा देखेंगे, खेल करेंगे, पानी उछालेंगे, धक्का देंगे—इस तरह फालतू समय बरबाद करेंगे । यह मानव-शरीरका समय ऐसे बरबाद करनेके लिये नहीं है । तेलीके घरमें तेल होता है तो वह लोटा भरके पैर धोनेके लिये थोड़े ही है !


(शेष आगेके ब्लॉगमें)

—‘साधन-सुधा-सिन्धु’ पुस्तकसे